Move to Jagran APP

लगातार गिर रहा भूजल का स्तर, देश में 16 करोड़ लोगों को शुद्ध पेयजल तक नसीब नहीं

ग्रामीण और शहरी आबादी के लिए पर्याप्त और सुरक्षित पेयजल की व्यवस्था के लिए सरकार जलापूर्ति एजेंसियों और समुदायों को साथ मिलकर काम करना होगा।

By Dhyanendra SinghEdited By: Published: Sun, 02 Jun 2019 05:17 PM (IST)Updated: Sun, 02 Jun 2019 05:17 PM (IST)
लगातार गिर रहा भूजल का स्तर, देश में 16 करोड़ लोगों को शुद्ध पेयजल तक नसीब नहीं
लगातार गिर रहा भूजल का स्तर, देश में 16 करोड़ लोगों को शुद्ध पेयजल तक नसीब नहीं

भरत शर्मा। जहां जल है वहीं जीवन है। तभी तो सभी सभ्यताएं नदियों के तीरे ही पुष्पित-पल्लवित हुईं। कभी जिस जल की उपलब्धता की सहूलियत को देखते हुए नदियों के किनारे आज के महानगरों का अभ्युदय हुआ, लगता है कुछ साल बाद वहां से लोगों का पलायन शुरू हो जाएगा। लेकिन सभी लोग जाएंगे कहां? शहरों की तरह ही गांवों में भी तो जल संकट खड़ा हो गया है।

loksabha election banner

अभी यह गर्मियों के दौरान है। धीरे-धीरे इसकी आवृत्ति और प्रवृत्ति में इजाफा होगा। दरअसल पानी की नहीं, प्रबंधन की समस्या है। हर साल बारिश की बूंदों ही सहेज लें तो साल भर धरतीवासियों का गला तर हो सकेगा। पहले जगह-जगह ताल, तलैया, पोखर जैसे तमाम जलस्रोत थे। जमीन कच्ची थी। बारिश होती थी, तो पानी स्वत: रिसकर भूजल रिचार्ज करता रहता था।

आज जलस्नोत बचे नहीं। जमीन का कंक्रीटीकरण हो चुका है। ऐसे में प्राकृतिक रूप से भूजल को ऊपर उठाने की बात बेमानी लगती है। इसलिए धरती की कोख से जो जितना पानी इस्तेमाल करे, उससे वहां उतना पानी जमा करना सुनिश्चित कराना होगा। इसके लिए चाहे सामाजिक चेतना को जाग्रत करना पड़े चाहे कानून की सख्ती दिखानी पड़े। जलस्रोतों के रखरखाव और पुनर्निर्माण पर भी जोर देना होगा

वैश्विक रूप से दो तिहाई आबादी साल के कम से कम एक महीने गंभीर जल संकट से जूझती है लेकिन भारत में स्थान और भौगोलिक स्थिति के हिसाब से यह समयावधि एक से आठ महीने हो जाती है। आज भी देश में 16 करोड़ से ज्यादा लोगों को उनके घर के नजदीक स्वच्छ पेयजल नसीब नहीं है। देश में 21 फीसद संचारी रोग जल से जुड़े हैं। हर साल पांच वर्ष आयु से कम के 1.4 लाख बच्चे डायरिया के शिकार बन जाते हैं।

गर्मियों के दौरान भूजल स्तर नीचे गिरता है और सतह पर मौजूद पानी सूख जाता है इससे अधिकांश ग्रामीण भारत की जल उपलब्धता में अप्रत्याशित गिरावट आती है। महत्वाकांक्षी राष्ट्रीय ग्रामीण पेयजल कार्यक्रम के बावजूद ग्रामीण इलाकों में स्वच्छ पेयजल मयस्सर नहीं है। एक तो करेला दूसरे नीम चढ़ा यह हुआ कि 2014 से सरकार ग्रामीण इलाकों में पेयजल के मद में जारी किए जाने वाले धन में लगातार कटौती करती जा रही है और स्वच्छ भारत मिशन का हिस्सा बढ़ता जा रहा है।

2009 में पेयजल की फंडिंग में हिस्सेदारी 87 फीसद थी, 2019 तक यह घटकर 31 फीसद रह गई। पहाड़ी क्षेत्रों में पेयजल के एकमात्र स्रोत झरने रह गए हैं। ये भी गैरनियोजित विकास के चलते तेजी से खत्म होते जा रहे हैं। जैसे-जैसे शहर बढ़ रहे हैं, शहरी गरीबों खासतौर पर झुग्गी-झोपड़ियों में रहने वालों को आपूर्ति व्यवस्था की समस्या झेलनी पड़ रही है। पच्चीस फीसद भारतीय शहरों की आबादी को प्रतिदिन एक घंटे से कम की जलापूर्ति होती है और झुग्गियों में रहने वाली 6.5 करोड़ शहरी आबादी की स्थिति बदतर है।

कई चुनौतियों के बीच उन्हें पीने के पानी की अपर्याप्त और असुरक्षित आपूर्ति की वजह से मुफ्त वाटर टैंकर के लिए लंबे समय तक इंतजार और झगड़ा करना पड़ता है या अधिक कीमत पर पानी खरीदना पड़ता है। मुंबई में 54 फीसद आबादी मलिन बस्तियों में रहती है और आपूर्ति किए गए पानी का केवल 5 फीसद ही उपयोग कर पाती है।

अधिकांश शहरों में वितरण में बड़ी मात्रा में पानी बर्बाद हो जाता है, क्योंकि बुनियादी ढांचा पुराना और लीकेज युक्त है। शिमला में हालिया जल संकट आपूर्ति की कमी से नहीं बल्कि दोषपूर्ण प्रणाली से पैदा हुआ था। सप्लाई किए जा रहे पानी की गुणवत्ता भी एक प्रमुख मुद्दा है क्योंकि सार्वजनिक और निजी दोनों जल आपूर्ति भूजल पर निर्भर हैं, जो रोगजनकों और आर्सेनिक फ्लोराइड, लोहा और नाइट्रेट से दूषित हो सकती हैं। अत्यधिक दोहन के कारण भूजल तालिका भी तेजी से गिर रही है।

इस पर करें अमल

  • राष्ट्रीय ग्रामीण पेयजल कार्यक्रम की फंडिंग को उसके मूल स्तर पर बहाल करना होगा और स्वच्छ भारत मिशन के साथ बराबर रखना होगा क्योंकि बिना पानी के स्वच्छता में सुधार नहीं हो सकता है। अमृत कार्यक्रम के तहत पर्याप्त और सुरक्षित पेयजल की आपूर्ति को महत्वपूर्ण भाग बनाना होगा।
  • पहाड़ी और पानी की कमी वाले क्षेत्र में एकल उपयोग प्रणाली के बजाय बहु जल प्रणाली को डिजाइन और कार्यान्वित करना होगा। यह महिलाओं और बच्चों को कठिन परिश्रम से छुटकारा भी दिलाएगा और समय की बचत भी करेगा।
  • सभी जल निकायों और झीलों का संरक्षण और कायाकल्प करना होगा।
  • कस्बों और शहरों से अपशिष्ट जल का 100 फीसद उपचार सुनिश्चित करना होगा। रिड्यूस, रिसाइकिल, रियूज और रिकवर सिद्धांत पर अमल करें।
  • पुनर्भरण कार्यक्रमों को प्रभावी बनाकर सुनिश्चित करें कि सभी संरचनाएं सही ढंग से काम कर रही हैं।
  • प्रभावित क्षेत्रों में, वर्षा जल निकायों का निर्माण, सुरक्षित स्थानों से सतही जल परिवहन और सर्वोत्तम उपयोग का पालन करें।
  • व्यर्थ में पानी का उपयोग न हो उसके लिए जागरूकता पैदा करनी होगी और न मानने पर जुर्माना लगे।
  • अनियमित जल माफियाओं और अनुचित लाभ प्राप्त करने वाले निजी पानी आपूर्तिकर्ता की जगह नियमित लघु पानी के उद्यमों को लें, जो स्थानीय स्तर पर स्वामित्व वाले, स्व-स्थायी और सुरक्षित रूप से सस्ता पीने का पानी प्रदान करने के लिए प्रशिक्षित हैं।

(सीनियर विजिटिंग फेलो, इक्रियर और एमरिटस वैज्ञानिक, आइडब्ल्यूएमआइ)

लोकसभा चुनाव और क्रिकेट से संबंधित अपडेट पाने के लिए डाउनलोड करें जागरण एप


Jagran.com अब whatsapp चैनल पर भी उपलब्ध है। आज ही फॉलो करें और पाएं महत्वपूर्ण खबरेंWhatsApp चैनल से जुड़ें
This website uses cookies or similar technologies to enhance your browsing experience and provide personalized recommendations. By continuing to use our website, you agree to our Privacy Policy and Cookie Policy.