शिवेश प्रताप। भारत के ऊर्जा मंत्री आर. के. सिंह और यूरोपीय ऊर्जा आयुक्त कादरी सिमसन ने हाल ही में पहले यूरोपीय संघ-भारत हरित हाइड्रोजन फोरम का उद्घाटन किया। यूक्रेन संकट के साथ ही यूरोप की गैस के कारण रूस पर निर्भरता को कम करने की प्रतिबद्धता में सिमसन ने कहा कि यूरोप और भारत को हरित ऊर्जा की बड़े पैमाने पर स्वीकार्यता के साथ हाइड्रोजन पर ध्यान केंद्रित करना होगा। हरित ऊर्जा और हाइड्रोजन इकोनमी के क्षेत्र में यूरोपीय संघ के लिए भारत एक प्रमुख रणनीतिक भागीदार है। यूरोपीय संघ के भारत के साथ इस रणनीतिक साझेदारी के लिए हमें मोदी सरकार के हाइड्रोजन ऊर्जा के लिए की गई दूरगामी तैयारियों की प्रशंसा करनी चाहिए।
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने 15 अगस्त 2021 को राष्ट्रीय हाइड्रोजन मिशन का आरंभ किया। वर्ष 2021-22 के केंद्रीय बजट में वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने हरित ऊर्जा स्रोतों से हाइड्रोजन उत्पन्न करने के लिए इस मिशन को शुरू करने का प्रस्ताव रखा था। 17 फरवरी, 2022 को नवीन और नवीकरणीय ऊर्जा मंत्रालय ने हरित हाइड्रोजन के निर्माण के लिए विभिन्न प्रोत्साहनों और तरीकों का विवरण देते हुए एक 13 सूत्रीय हरित हाइड्रोजन नीति की घोषणा की। हाइड्रोजन अर्थव्यवस्था से आशय उस प्रणाली से है जिसमें अधिकांश ऊर्जा आवश्यकताओं की पूर्ति, हाइड्रोजन से प्राप्त होगी।
मोदी सरकार के प्रयास
राष्ट्रीय हाइड्रोजन मिशन का आरंभ भारत को दुनिया का हाइड्रोजन पावरहाउस बनाने के उद्देश्य से किया गया है। वर्ष 2022 में हाइड्रोजन नीति की घोषणा करने वाला भारत विश्व का 18वां देश है। इस योजना के तहत मोदी सरकार जीवाश्म ईंधन को प्रतिस्थापित करने हेतु हाइड्रोजन को आदर्श ईंधन मान कर चल रही है, न कि लिथियम-आयन बैटरी को। सरकार का लक्ष्य है कि वर्ष 2030 तक भारत 50 लाख टन हाइड्रोजन का उत्पादन करने में सक्षम हो सके। दरअसल भारत कच्चे खनिज तेल का तीसरा सबसे बड़ा आयातक है। हमारी ऊर्जा जरूरतों का 84 प्रतिशत आयात किया जाता है। ऐसे में किसी युद्ध या तनाव की दशा में कच्चे तेल की कीमतों का सर्वाधित दुष्परिणाम भारत को भुगतना पड़ता है। आयात पर बढ़ती निर्भरता का अंदाजा ऐसे लगाया जा सकता है कि 2020 की तुलना में 2021 में भारत ने दोगुना रकम कच्चे तेल की खरीद पर खर्च की। यह हमारे वर्तमान राजकोषीय घाटे में कोढ़ में खाज की स्थिति पैदा करने जैसा है जिससे देश में ‘बैलेंस आफ पेमेंट’ की समस्या जन्म लेती है। देश का राजकोषीय घाटा 23 अरब डालर है जो जीडीपी का 2.7 प्रतिशत है, जो तेल के बढ़ते आयात से और बढ़ जाएगा। इसलिए हरित हाइड्रोजन एक संकट मोचक है।
ऊर्जा आधारित मानवीय गतिविधियां समय के साथ तेजी से बढ़ रही हैं। ऐसे में सभी की ऊर्जा आवश्यकताओं को पूरा करना भी चुनौती है, क्योंकि आने वाले वर्षों में हमारी ऊर्जा आवश्यकता 14,500 टेरावाट प्रति घंटे हो जाएगी। इस संदर्भ में एक विडंबना यह भी है कि हमारे देश में आज पारंपरिक ईंधन यानी कोयला और जीवाश्म ईंधन का प्रयोग किया जा रहा है जो जलवायु परिवर्तन का एक बड़ा कारण है। चाहे 1992 का रियो समिट हो या फिर 2015 का पेरिस एग्रीमेंट, विश्व अब कार्बन उत्सर्जन पर रोक लगाने के बारे में गंभीरता से विचार कर रहा है।
नरेन्द्र मोदी सरकार देश के दूरगामी भविष्य और विकास को लेकर अपनी नीतियां बनाती है। वर्ष 2070 तक सरकार ‘कार्बन तटस्थता’ का लक्ष्य प्राप्त करने के क्रम में वर्ष 2030 तक कार्बन उत्सर्जन को 50 प्रतिशत तक कम करना चाहती है। लिथियम-आयन बैटरी सस्ती होने के साथ ही कम दूरी के लिए ही उपयुक्त है। हवाईजहाज, बड़ी मशीनों एवं पानी के जहाजों के संचालन में लिथियम-आयन बैटरी आधारित ऊर्जा उपयुक्त नहीं है। इस कारण से हमें इनके संचालन में जीवाश्म ईंधनों का ही प्रयोग करना पड़ता है। हाइड्रोजन एक शुद्ध ऊर्जा है जिसके सीधे प्रयोग एवं उच्च ऊर्जाधारिता के कारण इसे लंबी या अधिक दूरी की ऊर्जा गतिविधियों में भी प्रयोग किया जा सकता है। टेस्ला कंपनी की कार में सबसे कांपैक्ट बैटरी का भी वजन आधा टन है और मजे की बात है कि उतनी ऊर्जा आवश्यकता को कुछ किलो हरित हाइड्रोजन द्वारा पूर्ण किया जा सकता है। विश्व ऊर्जा काउंसिल के अनुसार एक किलो पेट्रोल की अपेक्षा एक किलो हाइड्रोजन तीन गुना अधिक ऊर्जा पैदा करती है।
सरकार यह जानती है कि लिथियम-आयन बैटरी के विनिर्माण में लिथियम, ग्रेफाइट, कोबाल्ट और मैगनीज जैसी सामग्री की आवश्यकता पड़ती है। इसमें लिथियम सबसे महत्वपूर्ण है एवं भारत लिथियम का न ही सबसे बड़ा उत्पादक है और न ही हमारे पास इसके अधिक भंडार हैं। ऐसे में हमें कच्चे माल के लिए चिली आदि देशों पर निर्भर होना पड़ेगा।
ग्रीन हाइड्रोजन में लाभ की संभावनाओं के साथ ही कई चुनौतियां भी हैं। हाइड्रोजन एक उच्च ज्वलनशील पदार्थ है एवं इसके व्यापक प्रयोग से दुर्घटनाओं की भी आशंका रहती है। जैसे वर्ष 2011 में जापान के फुकुशिमा नाभिकीय संयंत्र में एक छोटे लीकेज से ब्लास्ट हो गया एवं नाभिकीय रेडिएशन पूरे क्षेत्र में फैल गया, तो लाखों लोग विस्थापित हुए। वैसे तमाम जटिलताओं और चुनौतियों के होते हुए भी ग्रीन हाइड्रोजन में अपार संभावनाएं हैं जिससे भारत अपनी कई समस्याओं का समाधान कर सकता है।
[तकनीकी-प्रबंध सलाहकार]