हर्षवर्धन ने की समलैंगिकों के अधिकारों की वकालत
स्वास्थ्य मंत्री हर्षवर्धन ने समलैंगिकों को उनके मानवाधिकारों की रक्षा का भरोसा दिलाया है। उन्होंने कहा कि उनके अधिकारों को सुनिश्चित करना सरकार का काम है। समलैंगिकता को अपराध ठहराने वाले सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद से यह वर्ग काफी आशंकित है। साथ ही हर्षवर्धन ने स्वास्थ्य मंत्रालय की रिपोर्ट में माना है
नई दिल्ली, जागरण ब्यूरो। स्वास्थ्य मंत्री हर्षवर्धन ने समलैंगिकों को उनके मानवाधिकारों की रक्षा का भरोसा दिलाया है। उन्होंने कहा कि उनके अधिकारों को सुनिश्चित करना सरकार का काम है। समलैंगिकता को अपराध ठहराने वाले सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद से यह वर्ग काफी आशंकित है। साथ ही हर्षवर्धन ने स्वास्थ्य मंत्रालय की रिपोर्ट में माना है कि देश में डॉक्टर और अस्पतालों की उपलब्धता दयनीय स्थिति में है।
केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री हर्षवर्धन ने बृहस्पतिवार को कहा, 'समलैंगिकों के भी मानवाधिकार हैं। यह सरकार का दायित्व है कि वह उनकी रक्षा करे।' हालांकि, उनकी पार्टी ने समलैंगिकता को अपराध घोषित करने वाले सुप्रीम कोर्ट के फैसले का खुलकर समर्थन किया था, लेकिन इस बारे में पूछे जाने पर उन्होंने कुछ भी कहने से इन्कार कर दिया। उन्होंने बृहस्पतिवार को मंत्रालय की ओर से तैयार की गई रिपोर्ट 'राष्ट्रीय स्वास्थ्य विवरण' भी जारी की। इस रिपोर्ट में बताया गया है कि इस समय देश में स्वास्थ्य संबंधी आधारभूत सुविधाओं की भारी किल्लत है। देश भर में सरकारी और गैर-सरकारी क्षेत्र के सभी अस्पतालों को मिलाकर कुल 6.2 लाख मरीजों को ही भर्ती करने की सुविधा उपलब्ध है। इसी तरह देश की सवा अरब आबादी के लिए महज नौ लाख डॉक्टर ही उपलब्ध हैं।
रिपोर्ट बताती है कि कालाजार के मामले में बिहार की स्थिति बहुत बुरी है। देश भर में इस बीमारी के 77.6 फीसद मरीज अकेले इसी राज्य में पाए गए हैं। कालाजार से होने वाली मौतों में 85 फीसद सिर्फ बिहार में ही हुई हैं। इसी तरह मलेरिया के सबसे अधिक मामले ओडिशा में सामने आए और इससे सबसे ज्यादा मौतें महाराष्ट्र में हुई। स्वाइन फ्लू के सबसे ज्यादा मामले दिल्ली में हुए, लेकिन इससे सबसे ज्यादा मौतें गुजरात में हुई। हालांकि, हर्षवर्धन ने स्वास्थ्य संबंधी आंकड़ों की उपलब्धता को लेकर अभी बहुत प्रयास की जरूरत बताई। उन्होंने कहा, 'अगर चुनाव आयोग और जनगणना कार्यालय के पास देश की पूरी आबादी के आंकड़े उपलब्ध हो सकते हैं, तो स्वास्थ्य मंत्रालय के पास क्यों नहीं?'