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डिजिटल उत्पादों के आयात पर शुल्क की व्यवस्था होने से सरकार की बढ़ेगी आमदनी

राजस्व वृद्धि के साथ डिजिटल क्रांति भारत में डिजिटल उत्पादों का व्यापक पैमाने पर आयात किया जाता है। परंतु बहुत कम उत्पादों पर आयात शुल्क का प्रविधान है। इससे राजस्व की हानि होती है लिहाजा यह विचारणीय मसला है।

By Sanjay PokhriyalEdited By: Published: Tue, 28 Jun 2022 12:11 PM (IST)Updated: Tue, 28 Jun 2022 12:11 PM (IST)
डिजिटल उत्पादों के आयात पर शुल्क की व्यवस्था होने से सरकार की बढ़ेगी आमदनी। प्रतीकात्मक

डा. अश्विनी महाजन। इलेक्ट्रानिक ट्रांसमिशन पर सीमा शुल्क के स्थगन को विश्व व्यापार संगठन के 12वें मंत्रिस्तरीय सम्मेलन में फिर से कायम रखा गया है, जबकि इसका अंत करने के लिए सम्मेलन के आरंभ से ही भारत ‘मुखर प्रयास’ कर रहा था। कुछ लोग कहते हैं, यह अमेरिका के दबाव के कारण हुआ है, दूसरों को लगता है कि भारत ने इसकी अन्य ‘लाभों’ के लिए सौदेबाजी की है। वैसे भारत ने कहा था कि वह सीमा शुल्क पर इस रोक का विरोध करेगा, क्योंकि इससे हमारे डिजिटल विकास को नुकसान पहुंचने के अलावा राजस्व की भी हानि हो रही है। इस कारण घरेलू कारोबारियों को बड़ी वैश्विक तकनीकी कंपनियों से प्रतिस्पर्धा का सामना करना पड़ता है।

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उल्लेखनीय है कि विश्व व्यापार संगठन के आरंभ के समय इलेक्ट्रानिक उत्पादों का व्यापार बहुत सीमित था। ऐसी स्थिति में, विश्व व्यापार संगठन के दूसरे मंत्रिस्तरीय सम्मेलन 1998 में इलेक्ट्रानिक उत्पादों के व्यापार पर टैरिफ को अस्थायी रूप से निलंबित कर दिया गया था और इस बीच विकास की जरूरतों के संदर्भ में वैश्विक इलेक्ट्रानिक व्यापार से संबंधित मुद्दों का अध्ययन करने के लिए निर्णय लिया गया था।

विकसित देश इलेक्ट्रानिक उत्पादों के आयात पर शुल्क लगाने के निर्णय को कई बहाने से स्थगित करते रहे। आज केवल भारत में ही 30 अरब डालर से अधिक के इलेक्ट्रानिक उत्पाद आयात किए जा रहे हैं। यदि 10 प्रतिशत टैरिफ भी लगा दिया जाए तो सरकार को तीन अरब डालर से ज्यादा का राजस्व मिलेगा। हाल के एक अध्ययन के अनुसार, विकासशील देश वर्ष 2017-2019 की अवधि में केवल 49 डिजिटल उत्पादों के आयात से 56 अरब डालर के राजस्व की प्राप्ति कर सकते थे। इस अवधि में अति अल्पविकसित देश आठ अरब डालर का राजस्व प्राप्त कर सकते थे।

यहां मुद्दा केवल राजस्व के नुकसान का नहीं है, यह भारत जैसे देश के विकास के लिए यह एक बड़ा मुद्दा है, जहां स्टार्ट-अप और साफ्टवेयर कंपनियां विभिन्न प्रकार के इलेक्ट्रानिक उत्पाद बनाने में सक्षम हैं, जहां हम फिल्में और अन्य मनोरंजन उत्पाद बना सकते हैं। लेकिन जब ऐसे सभी उत्पादों को बिना किसी शुल्क के आयात किया जाता है, तो उन्हें स्वदेशी रूप से उत्पादित करने के लिए प्रोत्साहन नहीं मिलता है। ई-उत्पादों पर यह टैरिफ स्थगन वास्तव में अमेरिका, यूरोपीय देशों और चीन को लाभान्वित करते हुए आत्मनिर्भर भारत के हमारे प्रयासों को नुकसान पहुंचा रहा है। विश्व व्यापार संगठन के हालिया सम्मेलन की शुरुआत में भारत ने एक साहसिक रुख के साथ शुरुआत की और वाणिज्य मंत्री ने कहा कि 24 वर्षो से जारी इस स्थगन की समीक्षा की जानी चाहिए।

विश्व व्यापार संगठन के पहले के मंत्रिस्तरीय सम्मेलनों में पिछले 24 वर्षो में, विकसित दुनिया इलेक्ट्रानिक ट्रांसमिशन को हर सम्मेलन के बाद आसानी से रोक लगवाती रही है। दरअसल 12वां सम्मेलन, ऐसा पहला सम्मेलन था, जहां उन्हें विकासशील देशों के कुछ प्रतिरोध का सामना करना पड़ा। इससे एक उम्मीद जगी थी कि टैरिफ अधिस्थगन आखिरकार खत्म हो जाएगा। लेकिन इस लड़ाई में भी हार हुई और एक बार फिर से विकासशील देशों को संबंधित लाभ से वंचित ही रखा गया।

राजस्व वृद्धि के साथ डिजिटल क्रांति : भारत ने डिजिटल वाणिज्यिक और सार्वजनिक सेवाओं, डिजिटल भुगतान और सरकारी हस्तांतरण के क्षेत्र में महत्वपूर्ण प्रगति की है। साफ्टवेयर में निश्चित तौर पर भारत की ताकत को कम करके नहीं आंका जा सकता। हाल ही में भारत ने स्वदेशी 5जी में विशेष उपलब्धि हासिल की है। हमने अपने स्वयं के डिजिटल उत्पादों को विकसित करना शुरू कर दिया है। सीमा शुल्क लगाने से हमारे डिजिटल उद्योगों के लिए समान अवसर प्रदान करने में मदद मिल सकती है, जो अभी शैशव अवस्था में हैं। यदि हम देखें, तो बहुत सारे वीडियो गेम, संगीत, फिल्में और ओटीटी सामग्री आदि सहित ऐसी अन्य वस्तुओं को अधिस्थगन के कारण सीमा शुल्क से मुक्त प्रसारित किया जा रहा है। यदि यह स्थगन समाप्त हो जाता है, तो ऐसी सेवाओं की विशिष्ट खपत कम हो जाएगी। इससे मूल्यवान विदेशी मुद्रा बचाने में मदद मिलेगी और सरकार को राजस्व के रूप में लाभ भी होगा, जिसका उपयोग विकास और लोक कल्याण के लिए किया जा सकता है।

बड़ी टेक कंपनियों का खेल : जब से बड़ी टेक कंपनियों को यह ज्ञात हो गया कि भारत और अन्य विकासशील देश टैरिफ स्थगन को समाप्त करने पर जोर दे रहे हैं, उन्होंने अपनी-अपनी सरकारों के माध्यम से इन प्रयासों को विफल करने के प्रयास शुरू कर दिए। अपनी बड़ी टेक कंपनियों की प्रतिक्रियाओं के आधार पर, विकसित देशों ने एक मजबूत प्रयास किया और हमेशा की तरह उन्होंने विश्व व्यापार संगठन के 12वें मंत्रिस्तरीय सम्मेलन में भी स्थगन को नवीनीकृत करने के लिए सभी राजनयिक और दबाव वाली रणनीति का इस्तेमाल किया। यह उल्लेखनीय है कि जब विकासशील देश ‘विशेष और विभेदक उपचार’ (एस एंड डीटी) की मांग कर रहे हैं, विकसित देश रिवर्स एस एंड डीटी का आनंद ले रहे हैं। यह खत्म होना चाहिए। वैसे सम्मेलन संपन्न हो गया है और इस स्थगन की समाप्ति के लक्ष्य को 13वें सम्मेलन तक बढ़ा दिया गया है। भारत को इसके लिए, इलेक्ट्रानिक ट्रांसमिशन की परिभाषा, इसके दायरे और प्रभाव जैसे मुद्दों का गहन अध्ययन करते हुए, दृढ़ दृष्टिकोण के साथ कोई कसर नहीं छोड़नी चाहिए।

[प्रोफेसर, दिल्ली विश्वविद्यालय]


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