जयंती विशेष: 8 साल की उम्र में पहली परफार्मेंस, जेल में भी तबला बजाया करते थे लच्छू महाराज
लच्छू महाराज अपने तबला वादन के लिए देश-विदेश में प्रसिद्ध थे। उन्होंने कई बॉलीवुड फिल्मों में भी काम किया था।
नई दिल्ली, जेएनएन। भारत के महान तबला वादक लच्छू महाराज की आज 74वीं जयंती है। इस मौके पर गूगल ने डूडल बना कर उन्हें याद किया है। लच्छू महाराज अपने तबला वादन के लिए देश-विदेश में प्रसिद्ध थे। उन्होंने कई बॉलीवुड फिल्मों में भी काम किया था। उन्होंने देश-दुनिया के बड़े आयोजनों में तबला वादन किया। आइए जानते हैं कौन हैं लच्छू महाराज।
गूगल ने दी श्रद्धांजलि
गूगल ने डूडल बना कर लच्छू महाराज को श्रद्धांजलि अर्पित की है। आज के डूडल में गूगल ने होम पेज पर लच्छू जी महाराज की एक पेंटिंग बनाई है। इसमें लच्छू जी महाराज गाते और तबला बजाते दिख रहे हैं।
लच्छू महाराज का था मनमौजी अंदाज
लच्छू महाराज का जन्म यूपी के वाराणसी में 16 अक्टूबर 1944 को हुआ था। उनका असली नाम लक्ष्मी नारायण था, मगर बाद में वह लच्छू महाराज के नाम से मशहूर हुए। लच्छू महाराज 12 भाई बहन थे, जिनमें वो चौथे नंबर पर थे। उन्होंने टीना नाम की फ्रांसीसी महिला से शादी की थी। बॉलीवुड एक्टर गोविंदा उनके भांजे हैं।
लच्छू महाराज वाराणसी में ही पले-बढ़े और बनारस घराने में ही तबला वादन की शिक्षा ग्रहण की। लच्छू महाराज पक्के बनारसी थे। आज भी वे अपने मनमौजी अंदाज के चलते बनारस में याद किए जाते हैं। उन्हें लोग इसलिए मनमौजी कहते थे क्योंकि वे सिर्फ अपने मन से ही तबला बजाते थे।
8 साल की उम्र में दी पहली थी परफॉर्मेंस
लच्छू महाराज ने गायन, वादन और नृत्य तीनों में ही निपुणता हासिल की थी और अपनी मेहनत के दम पर ही स्वतंत्र तबला वादन और संगत दोनों में महारथ हासिल की थी। जब वो सिर्फ 8 साल के थे तो उन्होंने पहली परफॉर्मेंस मुंबई में दी थी। उन्होंने अपनी तबला वादन की कला से बॉलीवुड में भी खूब नाम कमाया। लच्छू महाराज ने महल (1949), मुगल-ए-आजम (1960), छोटी छोटी बताना (1965) और पकीएजह (1972) जैसी फिल्मों में काम किया।
जेल में बजाया तबला
1975 में जब आपातकाल लगा तब वे भी जेल गए थे। यहां वे मशहूर समाजवादी नेताओं जॉर्ज फर्नांडिस, देवव्रत मजुमदार और मार्कंडेय को तबला बजाकर सुनाया करते थे। ये उनके विरोध करने का तरीका था। लच्छू महाराज समय के बड़े पाबंद थे। एक बार उन्हें तबला वादन के लिए आकाशवाणी बुलाया गया, लेकिन जिन महोदय ने बुलाया था, वे खुद 5 मिनट लेट आए। लच्छू महाराज को यह बात अच्छी नहीं ली और वे बिना कार्यक्रम किए ही वापस आ गए।
पद्मश्री लेने से इनकार
वर्ष 1972 में केंद्र सरकार ने उनको पद्मश्री से सम्मानित करने का फैसला किया, लेकिन उन्होंने ‘पद्मश्री’ लेने से मना कर दिया था। उन्होंने कहा था कि श्रोताओं की वाह और तालियों की गड़गड़ाहट ही कलाकार का असली पुरस्कार होता है।
मुस्लिम बंधुओं ने भी दिया कंधा
72 साल की उम्र में 27 जुलाई 2016 को हार्ट अटैक से उनका निधन हो गया था। बनारस के मनिकर्णिका घाट पर ही उनका अंतिम संस्कार हुआ था। लच्छू महाराज के दालमंडी स्थित आवास के आसपास रहने वाले तमाम मुस्लिम बंधु भी तबला वादक के जाने से शोकाकुल थे। वाहन से पार्थिव शरीर के पहुंचते ही उनके आवास में जाकर मुस्लिम बंधुओं ने उन्हें श्रद्धांजलि अर्पित की। शवयात्रा शुरू होने पर नन्हे खां, शकील अहमद, मोहम्मद सोआलीन, मोहम्मद कलीम, इकराम इलाही, मुन्ने खा व कामरान अली आदि लोगों ने उन्हें कंधा भी दिया।