Engineer's Day : गूगल ने डूडल बनाकर भारत रत्न विश्वेश्वरैया को किया याद
आज महान इंजीनियर डॉ. एम. विश्वेश्वरैया की 157वीं जयंती है। भारत में उनके जन्मदिन को इंजीनियर्स डे के रूप में मनाया जाता है।
नई दिल्ली (जेएनएन)। आज पूरे भारत में इंजीनियर्स दिवस मनाया जा रहा है। आज महान इंजीनियर डॉ. एम. विश्वेश्वरैया की 157वीं जयंती है। भारत में उनके जन्मदिन को 'इंजीनियर्स डे' के रूप में मनाया जाता है। इस मौके पर गूगल ने डूडल बनाकर उन्हें याद किया। एम. विश्वेश्वरैया का पूरा नाम मोक्षगुंडम विश्वेश्वरैया था। कई साल पहले जब बेहतर इंजीनियरिंग और तकनीकी सुविधाएं नहीं थी, तब उन्होंने ऐसे विशाल बांध का निर्माण पूरा करवाया जो भारत में इंजीनियरिंग की अद्भुत मिसाल के तौर पर गिना जाता है।
कौन थे विश्वेश्वरैया : उनका जन्म 1860 में आज ही कर्नाटक में हुआ था। 1912 से 1918 तक वह मैसूर के दीवान थे।
उपलब्धि : उन्होंने पानी रोकने वाले ऑटोमेटिक फ्लडगेट का डिजायन तैयार कर पेटेंट कराया। इसे 1903 में पहली बार पुणे के खड़कवासला जलाशय में इस्तेमाल किया गया। मैसूर में कृष्णा राजा सागर बांध के निर्माण में उन्होंने चीफ इंजीनियर के रूप में भूमिका निभाई थी। उस समय इसके जलाशय को एशिया के सबसे बड़े जलाशय का दर्जा हासिल था। हैदराबाद के लिए उन्होंने बाढ़ से बचाने का सिस्टम डिजायन तैयार किया, जिसने उन्हें दुनिया भर में प्रसिद्ध कर दिया। विशाखापट्टनम बंदरगाह को समुद्री कटाव से बचाने के लिए प्रणाली विकसित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी।
उत्कृष्ट डिजायनर : विश्वेश्वरैया ने दक्षिण बेंगलुरु में जयनगर के पूरे क्षेत्र को डिजायन और प्लान किया था। जयनगर की नींव 1959 में रखी गई थी। माना जाता है कि उनके द्वारा डिजायन किया गया इलाका एशिया में सबसे अच्छे नियोजित लेआउट में से एक था।
सम्मान : अपने उत्कृष्ट कार्यों के चलते भारत सरकार ने उन्हें 1955 में भारत रत्न से सम्मानित किया। ब्रिटिश नाइटहुड अवार्ड से भी उन्हें सम्मानित किया गया।
कर्म के प्रति समर्पित : आयु के जिस पड़ाव पर आम आदमी शारीरिक और मानसिक रूप से शिथिल पड़ जाता है, उस उम्र में उनकी मानसिक सक्रियता गजब की थी। 90 साल की उम्र में उन्होंने बिहार में गंगा पर मोकामा पुल के स्थान के लिए अपनी तकनीकी सलाह दी।
छोड़ चले दुनिया : 12 अप्रैल, 1962 को दुनिया को अलविदा कह गए।
एम विश्वेश्वरैया का जन्म 15 सितंबर 1861 को मैसूर के कोलार जिले स्थित चिक्काबल्लापुर तालुक में एक तेलुगु परिवार में हुआ था। उनके पिता श्रीनिवास शास्त्री संस्कृत के विद्वान और आयुर्वेद चिकित्सक थे। विश्वेश्वरैया की मां का नाम वेंकाचम्मा था। उनके पूर्वज आंध्र प्रदेश से यहां आकर बस गए थे। उन्हें भारत के सर्वोच्च सम्मान भारत रत्न से सम्मानित किया गया था।
जब देश आजाद नहीं था, तब एम. विश्वेश्वरैया ने कृष्णराजसागर बांध, भद्रावती आयरन ऐंड स्टील वर्क्स, मैसूर संदल ऑयल ऐंड सोप फैक्टरी, मैसूर विश्वविद्यालय, बैंक ऑफ मैसूर समेत अन्य कई महान उपलब्धियों में एम. विश्वेश्वरैया ने अभूतपूर्व योगदान दिया। उनके बहुमूल्य योगदान के लिए एम. विश्वेश्वरैया को 'कर्नाटक का भागीरथ' भी कहा जाता था।
एम. विश्वेश्वरैया ने नई ब्लॉक प्रणाली का आविष्कार किया था, जिसके अंतर्गत स्टील के दरवाजे बनाए गए जो बांध के पानी के बहाव को रोकने में मदद करती थी। उनकी इस प्रणाली की काफी तारीफ हुई और आज भी यह प्रणाली पूरी दुनिया में प्रयोग में लाई जा रही है, जिसके बाद उन्हें 1909 में मैसूर राज्य का चीफ इंजीनियर नियुक्त किया गया। विश्वेश्वरैया ने वहां की आधारभूत समस्याओं जैसे अशिक्षा, गरीबी, बेरोजगारी, बीमारी को लेकर कुछ मूलभूत काम किए।