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भारत को अंतरिक्ष तक पहुंचाने वाले डॉ विक्रम साराभाई को 100वीं जयंती पर देश कर रहा याद

विक्रम साराभाई को भारत के स्पेस प्रोग्राम का जनक माना जाता है। उन्होंने भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (ISRO) की स्थापना की थी।

By TaniskEdited By: Published: Mon, 12 Aug 2019 08:12 AM (IST)Updated: Mon, 12 Aug 2019 09:55 AM (IST)
भारत को अंतरिक्ष तक पहुंचाने वाले डॉ विक्रम साराभाई को 100वीं जयंती पर देश कर रहा याद

नई दिल्ली, जेएनएन। भारतीय वैज्ञानिक विक्रम अंबालाल साराभाई की आज 100वीं जंयती है। 12 अगस्त 1919 को अहमदाबाद में जन्में विक्रम साराभाई ने भारत को अंतरिक्ष तक पहुंचाया। उन्हें आज पूरा देश याद कर रहा है। उनको भारत के स्पेस प्रोग्राम का जनक माना जाता है। उन्होंने भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (ISRO) की स्थापना की थी। 

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देश कर रहा याद, गूगल ने खास डूडल बनाया
भारत के राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने डॉ विक्रम साराभाई को याद करते हुए ट्वीट किया, 'डॉ. विक्रम साराभाई की जन्म शती पर उन्हें सादर नमन। भारतीय अंतरिक्ष कार्यक्रम के जनक और भारतीय विज्ञान के पुरोधा डॉ. साराभाई ने विविध क्षेत्रों में संस्थाओं का निर्माण किया और वैज्ञानिकों की कई पीढ़ियों का मार्गदर्शन किया। देश उनकी सेवाओं को हमेशा याद रखेगा।'

मध्य प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने  डॉ विक्रम साराभाई को याद करते हुए ट्वीट किया 'भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन इसरो की स्थापना कर भारतीय स्पेस प्रोग्राम को नई ऊंचाई पर ले जाने वाले महान वैज्ञानिक स्व. विक्रम साराभाई की जयंती पर नमन।आपकी दीर्घदृष्टि से ही भारत आज अंतरिक्ष के क्षेत्र में एक के बाद एक सफलताए प्राप्त कर नए आयाम गढ़ रहा है।' 

भाजपा नेता डॉ दिनेश शर्मा ने ट्वीट किया, 'शिक्षाविद एवं कला पारखी के साथ-साथ अंतरिक्ष अनुसंधान के क्षेत्र में भारत को अंतरराष्ट्रीय जगत पर सम्मान दिलाने वाले महान अंतरिक्ष वैज्ञानिक पद्मविभूषण डॉ. विक्रम साराभाई जी की जयंती पर शत् शत् नमन।' 

झारखंड के सीएम रघुवर दास ने ट्वीट किया, 'भारतीय अंतरिक्ष कार्यक्रम के जनक डॉ. विक्रम साराभाई की जयंती पर शत-शत नमन।' भाजपा नेता कैलाश विजयवर्गीय ने ट्वीट किया 'अंतरिक्ष अनुसंधान के क्षेत्र में भारत को अंतर्राष्ट्रीय मानचित्र पर स्थान दिलाने के साथ-साथ आणविक ऊर्जा, इलेक्ट्रानिक्स और अन्य क्षेत्रों में भी अहम योगदान देने वाले पद्मभूषण श्री विक्रम साराभाई जी की जयंती पर सादर नमन...।' इसके अलावा साराभाई को उनकी 100वीं जंयती पर गूगल ने खास डूडल बनाकर याद किया।

 

पीआरएल की स्थापना
इन्होंने कैंब्रिज यूनिवर्सिटी से डॉक्टरेट हासिल करने से पहले गुजरात कॉलेज में पढ़ाई की। इसके बाद अहमदाबाद में ही उन्होंने फिजिकल रिसर्च लेबोरेटरी (पीआरएल)  की स्थापना की। इस समय उनकी उम्र महज 28 साल थी। 

आजादी की लड़ाई में भी भरपूर योगदान 

पीआरएल की सफल स्थापना के बाद की डॉ साराभाई ने कई संस्थानों की स्थापना में महत्वपूर्ण योगदान दिया। तकनीकी समाधानों के अलावा इनका और इनके परिवार ने आजादी की लड़ाई में भी भरपूर योगदान दिया।

IIM Ahmdabad की स्थापना कराई 
परमाणु उर्जा आयोग के चेयरमैन रहने के साथ-साथ उन्होंने अहमदाबाद के उद्योगपतियों की मदद से आइआइएम अहमदाबाद(IIM Ahmdabad) की भी स्थापना की। भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन में भी इनकी महत्वपूर्ण भूमिका रही। सेटेलाईट इंस्ट्रक्शनल टेलीवीजन एक्सपेरिमेंट (SITE)  के लांच में भी साराभाई ने अहम भूमिका निभाई जब इन्होंने 1966 में नासा से इसेक लिए बातचीत की।


होमी भाभा ने रॉकेट लॉन्चिंग स्टेशन स्थापित करने में की मदद
भारत के परमाणु विज्ञान कार्यक्रम का जनक डॉ. होमी भाभा ने भारत में पहला रॉकेट लॉन्चिंग स्टेशन स्थापित करने में विक्रम साराभाई का समर्थन किया। पहली उड़ान 21 नवंबर, 1963 को सोडियम वाष्प पेलोड के साथ लॉन्च की गई थी। 

देश के पहले सेटेलाईट लांच में अहम भूमिका
देश के पहले सेटेलाईट आर्यभट्ट को भी लांच करने में इनकी अहम भूमिका रही। ‘नेहरू विकास संस्थान’ के माध्यम से उन्होंने गुजरात की उन्नति में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई। वह देश-विदेश की अनेक विज्ञान और शोध सम्बन्धी संस्थाओं के अध्यक्ष और सदस्य थे। 

भारत को अब्‍दुल कलाम जैसी प्रतिभा दिया
डॉ. साराभाई अपने दौर के उन गिने-चुने वैज्ञानिकों में से एक थे जो अपने साथ काम करने वाले वैज्ञानिकों और खासकर युवा वैज्ञानिकों को आगे बढ़ने में मदद करते थे। उन्होंने डॉ.अब्दुल कलाम के करियर के शुरुआती चरण में उनकी प्रतिभाओं को निखारने में अहम भूमिका निभाई। डॉ.कलाम ने खुद कहा था कि वह तो उस फील्ड में नवागंतुक थे। डॉ.साराभाई ने ही उनमें खूब दिलचस्पी ली और उनकी प्रतिभा को निखारा। 

कई पुरस्कार से नवाजे गए
विक्रम साराभाई को 1962 में शांति स्वरूप भटनागर पुरस्कार मिला। उन्हें 1966 में पद्म भूषण और 1972 में पद्म विभूषण (मरणोपरांत) से सम्मानित किया गया था। 1971 में महज 52 साल की उम्र में उनका निधन हो गया।

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