गूगल ने डूडल बना कर कमलादेवी को किया याद, नेशनल स्कूल ऑफ ड्रामा इनकी देन
आज गूगल ने डूडल बना कर कमलादेवी चट्टोपाध्याय को श्रद्धांजलि अर्पित की है। आज कमलादेवी चट्टोपाध्याय का 115वां जन्मदिवस है।
नई दिल्ली, (जेएनएन)। आज गूगल ने डूडल बना कर भारत की समाज सुधारक और स्वतंत्रता सेनानी कमलादेवी चट्टोपाध्याय को श्रद्धांजलि अर्पित की है। आज कमलादेवी चट्टोपाध्याय का 115वां जन्मदिवस है। कमलादेवी का भारतीय हस्तकला के क्षेत्र में अतुल्य योगदान है। आज भारत में नेशनल स्कूल ऑफ ड्रामा, संगीत नाटक एकेडमी , क्राफ्ट कौंसिल ऑफ़ इंडिया जैसे जाने-माने संस्थान कमलादेवी की दूरदृष्टि का परिणाम है और उनके इसी काम की झलक गूगल के बनाए डूडल में दिखाई दे रही है।
कमलादेवी ने आजादी के बाद भारतीय हथकरघा और रंगमंग में नई जान फूंकने में अहम भूमिका निभाई. आज भारत में परफॉर्मिंग आर्ट से जुड़े कई संस्थान कमलादेवी के विजन का ही नतीजा हैं। जिसमें नेशनल स्कूल ऑफ ड्रामा, संगीत नाटक एकेडमी, सेंट्रल कॉटेज इंडस्ट्रीज इम्पोरियम और क्राफ्ट काउंसिल ऑफ इंडिया शामिल हैं।
बचपन में ही उठ गया पिता का साया
कमलादेवी चट्टोपाध्याय का जन्म 3 अप्रैल, 1903 को मंगलोर (कर्नाटक) में हुआ था। उनके पिता मंगलोर के डिस्ट्रिक्ट कलेक्टर थे। कमलादेवी जब सिर्फ सात साल की ही थीं, उसी समय उनके पिता का निधन हो गया था।
शादी के दो साल बाद पति की मौत
कमलादेवी की 14 साल की उम्र में ही शादी कर दी गई थी, लेकिन दो साल बाद ही उनके पति कृष्ण राव की मौत हो गई।
हरेंद्र नाथ चट्टोपाध्याय की दूसरी शादी
चेन्नई के क्वीन मेरीज कॉलेज में पढ़ाई के दौरान उनकी मुलाकात सरोजिनी नायडू की छोटी बहन से हुई और उन्होंने उनकी मुलाकात अपने भाई हरेंद्र नाथ चट्टोपाध्याय से कराई और इस तरह उनकी दोस्ती हुई और फिर वे विवाह बंधन में बंध गए। विधवा विवाह और जाति-बिरादरी से अलग विवाह करने की वजह से वे आलोचना की शिकार भी हुईं लेकिन उन्होंने इसकी परवाह नहीं की।
कमलादेवी ने फिल्मों में भी आजमाई अपनी किस्मत
कमलादेवी ने फिल्मों में भी अपनी किस्मत आजमाई। उन्होंने दो साइलेंट (मूक) फिल्मों में काम किया। इसमें से एक कन्नड़ फिल्म इंडस्ट्री की पहली साइलेंट फिल्म थी। फिल्म का नाम था 'मृच्छकटिका (1931)।' इसके बाद वे एक बार फिल्मों में नजर आईं। वे 'तानसेन' फिल्म में के.एल. सहगल और खुर्शीद के साथ नजर आईं। उसके बाद कमलादेवी ने 'शंकर पार्वती (1943)' और 'धन्ना भगत (1945)' जैसी फिल्में भी की।
आजादी के आंदोलन में कमलादेवी का सहयोग
कमलादेवी पति हरेंद्रनाथ चट्टोपाध्याय के साथ लंदन चली गई थीं, लेकिन जब 1923 में उन्हें गांधीजी के असहयोग आंदोलन के बारे में पता चला तो वे भारत आ गईं और आजादी के आंदोलन में कूद गईं। उन्होंने गांधीजी के नमक सत्याग्रह में भी हिस्सा लिया था। हालांकि हरेंद्रनाथ से उनका तालाक हो गया था। आजादी के बाद देश का विभाजन हो गया था, और शरणार्थियों को बसाने के लिए जगह की तलाश थी, उस समय कमलादेवी ने गांधीजी से अनुमति लेकर टाउनशिप बसाने का जिम्मा लिया और बापू ने कहा था कि तुम्हें सरकार की कोई मदद नहीं लेनी होगी। इस तरह फरीदाबाद सामने आया जहां 50,000 शरणार्थियों को रहने की जगह मिली। इसे सहकारिता की संकल्पना पर स्थापित किया गया था।