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ग्लोबल वार्मिंग धरती के लिए भले ही अभिशाप, लेकिन समुद्री यातायात के लिए बनी वरदान

आर्कटिक से होकर गुजरने वाला यह रास्ता आमतौर पर साल में तीन महीने के लिए खुलता है लेकिन ग्लोबल वार्मिंग की वजह से इस वर्ष यह अधिक समय तक आवाजाही के लिए खुला।

By Sanjay PokhriyalEdited By: Published: Mon, 03 Sep 2018 09:28 AM (IST)Updated: Mon, 03 Sep 2018 09:28 AM (IST)
ग्लोबल वार्मिंग धरती के लिए भले ही अभिशाप, लेकिन समुद्री यातायात के लिए बनी वरदान

नई दिल्ली [जागरण स्पेशल]। धरती के लिए ग्लोबल वार्मिंग भले ही अभिशाप हो, लेकिन समुद्री रास्ते से कारोबार करने वालों के लिए ये किसी वरदान से कम नहीं साबित हो रही है। इसी प्रक्रिया के चलते पृथ्वी के उत्तरी समुद्री रास्ते से इस वर्ष पहले के मुकाबले कहीं अधिक मालवाहक जहाज गुजर रहे हैं।

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आर्कटिक से होकर गुजरने वाला यह रास्ता आमतौर पर साल में तीन महीने के लिए खुलता है लेकिन ग्लोबल वार्मिंग की वजह से इस वर्ष यह अधिक समय तक आवाजाही के लिए खुला हुआ है। यह रास्ता दक्षिणी जल मार्ग के मुकाबले तकरीबन छह हजार किमी छोटा है। इस साल आर्कटिक में तापमान 30 डिग्री तक पहुंचने के कारण भारी मात्रा में बर्फ पिघली है। इससे मालवाहक कंपनियों को भले ही फायदा मिल रहा हो, लेकिन यह पर्यावरण संतुलन के लिहाज से ठीक नहीं है।

उत्तरी समुद्री रास्ता

रूस और नॉर्वे की सीमा पर मौजूद मर्मांस्क से अलास्का में र्बेंरग की खाड़ी तक यह रास्ता जाता है। यहां से गुजरने वाले सभी जहाजों को रूस से अनुमति लेनी पड़ती है। हालांकि इस रास्ते समय कम लगता है लेकिन इसका खर्च बढ़ जाता है क्योंकि यहां से गुजरने वाले जहाजों को अपने बर्फ को तोड़ते हुए रास्ता बनाने वाला परमाणु संचालित जहाज लेकर जाना पड़ता है।

तापमान वृद्धि का गंभीर असर

ग्लोबल वार्मिंग बढ़ने के साथ 2030 तक आर्कटिक से गुजरने वाले समुद्री रास्ते में चार फीट मोटी बर्फ तोड़ने में सक्षम जहाज भी आवाजाही कर सकेंगे। 2045 से 2060 तक आर्कटिक की बर्फ के लगातार पिघलने से सामान्य मालवाहक जहाज भी आसानी से इस रास्ते से गुजर सकेंगे।

आर्कटिक में तेजी से पिघलेगी बर्फ

दुनिया में सर्वाधिक कार्बन उत्सर्जन समुद्री यातायात से पैदा होता है। ऐसे में अगर उत्तरी समुद्री रास्ते से जहाजों का आवागमन बढ़ेगा तो वहां की बर्फ ज्यादा पिघलेगी। 


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