हाड़ कंपाने वाली सर्दी की तमाम वजहों में से ग्लोबल वार्मिंग भी बड़ा कारक
पेड़ों के तनों में कार्बन डाईआक्साइड सोखने की अद्भुत क्षमता होती है। हरियाली के अभाव में यही कार्बन उत्सर्जन वायुमंडल में जाकर मौसम को गड़बड़ा रहा है।
नई दिल्ली [जागरण स्पेशल]। कड़ाके की ठंड से जनजीवन बेहाल हुआ। जीवन का हर पहलू इसके प्रतिकूल असर से हलकान रहा। रिकॉर्ड टूटे। मौसम विभाग बताता है कि 119 साल पहले ऐसा जाड़ा पड़ा था। केवल सर्दी की बात नहीं है। गर्मी और बरसात के मौसम में भी ऐसे ही रिकॉर्ड टूटते हैं। कम समय में अधिकाधिक बारिश का और गर्मी में दिनोंदिन रिकॉर्ड तोड़ता पारा। इस हाड़ कंपाने वाली सर्दी की तमाम वजहों में से ग्लोबल वार्मिंग भी कारक माना गया।
वैज्ञानिकों ने सिद्ध कर दिया है कि मौसम के सहज रूप-रंग में आई ये विकृति ग्लोबल वार्मिंग के चलते ही है। वे इसका इलाज भी सुझाते हैं। तमाम उपायों में धरती को फिर से उसके गहने यानी हरियाली से आच्छादित करना इसका कुदरती कारगर समाधान है। साल 2020 की पूर्व संध्या पर इस दिशा में खुशखबरी भी मिली। पिछले दो साल में देश के वन क्षेत्र में पांच हजार वर्ग किमी की वृद्धि हुई है। देश का 21.67 फीसद हिस्सा हरियाली से आच्छादित हो चुका है। पेड़ों के तनों में कार्बन डाईआक्साइड सोखने की अद्भुत क्षमता होती है। हरियाली के अभाव में यही कार्बन उत्सर्जन वायुमंडल में जाकर मौसम को गड़बड़ा रहा है।
दुनिया के कई देशों में जंगल तेजी से काटे जा रहे हैं, भारत से इस आशय की खबर राहत देती है। जलवायु परिवर्तन को लेकर तय वैश्विक लक्ष्यों को हासिल करने में भारत हमेशा संजीदा रहा है। हमारी संस्कृति-सभ्यता प्रकृति को ईश्वर का दर्जा देती है। जलवायु परिवर्तन के मोर्चे पर दूसरे देशों के लिए भारत मिसाल बनता दिख रहा है। वे हमसे सीख सकते हैं कि अपनी परंपरा से प्रकृति और पर्यावरण कैसे बचाए जा सकते हैं। नया साल 2020 का पहला सप्ताह है। ये संकल्प सप्ताह के नाम से जाना जाता है। आइए, इस मौके पर हम संकल्प लें, कि धरती की हरियाली को कम नहीं होने देंगे और इस साल कम से कम एक पौधा लगाकर पेड़ बनने तक उसकी देखभाल करेंगे।
मवेशियों के लिए चारा
27 करोड़ मवेशियों को चारा उपलब्ध कराते हैं। हालांकि इससे 78 फीसद जंगलों को नुकसान पहुंच रहा है। 18 फीसद जंगल बुरी तरह से प्रभावित हो रहे हैं। ये हर साल जानवरों के लिए 74.1 करोड़ टन चारा उपलब्ध कराते हैं।
स्वस्थ बनाते हैं
खुद को कीटों से बचाने के लिए पेड़-पौधे फाइटोनसाइड रसायन हवा में छोड़ते हैं। इसमें एंटी बैक्टीरियल खूबी होती है। सांस के जरिए जब ये रसायन हमारे शरीर में जाता है तो हमारी रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ जाती है।
मिट्टी का कटाव रोकते हैं
आठ करोड़ हेक्टेयर भूमि हवा और पानी से मिट्टी के कटाव से गुजर रही है। 50 फीसद भूमि को इसके चलते गंभीर नुकसान हो रहा है। भूमि की उत्पादकता घट रही है। इस भूमि को पेड़-पौधों के जरिए ही बचाया जा सकता है।
बिजली की बचत
यदि किसी घर के आसपास पौधे लगाए जाएं तो ये गर्मियों के दौरान उस घर की एयर कंडीशनिंग जरूरत को 50 फीसद तक कम कर देते हैं। घर के आसपास पेड़ पौधे लगाने से बगीचे से वाष्पीकरण बहुत कम होता है। नमी भी बरकरार रहती है।
अर्थव्यवस्था में योगदान
औद्योगिक क्रांति से पहले दुनिया के सभी देश अपनी अधिकांश जरूरतें जंगल से ही पूरी करते थे। भारत की जीडीपी में वनों का 0.9 फीसद योगदान है। इनसे ईंधन के लिए सालाना 12.8 करोड़ टन लकड़ी प्राप्त होती है। हर साल 4.1 करोड़ टन टिंबर मिलता है। महुआ, शहद, चंदन, मशरूम, तेल, औषधीय पौधे प्राप्त होते हैं।
32.87 लाख वर्ग किलोमीटर
देश का कुल वन क्षेत्र 7.12 लाख वर्ग किलोमीटर
वनों पर प्रत्यक्ष-परोक्ष 40 रूप से आश्रित आबादी
40 करोड़ आबादी प्रत्यक्षअप्रत्यक्ष रूप से वनों पर निर्भर है। इनकी आय में वन उत्पादों का 40 से 60 फीसद योगदान है।
6.4 लाख गांवों में से 2 लाख गांव जंगलों में या इनके आसपास बसते हैं।