1990 के बाद ग्लेशियरों से बनी झीलों का आकार 50 फीसद बढ़ा, नासा ने सैटेलाइट डाटा के आधार पर किया दावा
दुनियाभर में ग्लेशियरों से बनी झीलों का आयतन (वॉल्यूम)1990 के बाद से लगभग 50 फीसद बढ़ गया है। इसका कारण यह है कि जलवायु परिवर्तन के कारण ग्लेशियर तेजी से पिघले हैं।
नई दिल्ली, आइएएनएस। दुनियाभर में ग्लेशियरों से बनी झीलों का आयतन (वॉल्यूम)1990 के बाद से लगभग 50 फीसद बढ़ गया है। इसका कारण यह है कि जलवायु परिवर्तन के कारण ग्लेशियर तेजी से पिघले हैं। अमेरिकी अंतरिक्ष एजेंसी नासा द्वारा जारी एक सैटेलाइट डाटा में यह बात सामने आई है। नासा ने 30 साल के डाटा के आधार पर यह दावा किया है।
नेचर क्लाइमेट चेंज नामक जर्नल में प्रकाशित इस शोध में पता चला है कि माउंट एवरेस्ट के पास स्थित लेक इम्जा का आयतन 1990 से अब तक तीन गुना बढ़ गया है। शोधकर्ताओं का कहना है कि इस अध्ययन के निष्कर्ष इन झीलों के संभावित खतरों का आकलन करने में सहायता कर सकते हैं और समुद्र के स्तर में वृद्धि के अनुमान की सटीकता में सुधार करने में मदद करते हैं।
कनाडा की कैलगरी यूनिवर्सिटी से इस अध्ययन के मुख्य लेखक डैन शुगर ने कहा, 'हम जानते हैं कि पिघला हुआ पानी तुरंत महासागरों में नहीं समाता। लेकिन अब तक हमारे पास यह अनुमान लगाने के लिए कोई डाटा नहीं था कि कितना पानी झीलों या भूजल में संग्रहित हो रहा है।' उन्होंने कहा कि अध्ययन से पता चलता है कि वर्तमान में ग्लेशियरों से बनी झील का आयतन लगभग 156 घन किलोमीटर है।
ऐसे किया अध्ययन
इस अध्ययन के लिए शोधकर्ताओं की एक अंतरराष्ट्रीय टीम ने हिमालय सहित उनके उसके आसपास की पर्वत श्रृंखलाओं में मौजूद दो दर्जन ग्लेशियल यानी ग्लेशियर से बनी झीलों का अध्ययन करने के लिए सैटेलाइट इमेजिंग और अन्य रिमोट सेंसिंग डेटा का उपयोग किया। नासा और अमेरिकी भूगर्भ सर्वे प्रोग्राम के तहत लैंड्टऐट सेटेलाइट मिशन से हासिल 250000 से अधिक तस्वीरों को देखने के बाद जलवायु परिवर्तन की विभीषिका आंकी है।
मोराइन से क्षतिग्रस्त होती हैं झीलें
इसके अलावा शोधकर्ताओं ने अंटार्कटिका को छोड़कर दुनिया के सभी हिमाच्छादित क्षेत्रों की 1990 से पांच चरणों में जांच कर यह पता लगाया कि हिमनद झीलों का आयतन कैसे बदल रहा है। शोधकर्ताओं ने कहा कि ग्लेशियल झीलें सामान्य झीलों की तरह स्थिर नहीं होती हैं। इनमें अक्सर बर्फ और ग्लेशियरों का तलछट (जिसे मोराइन कहा जाता है) गिरता रहता है, जिससे ये झीलें क्षतिग्रस्त होती रहती है और इनके आकार में बदलाव आते रहता है। कई बार ज्यादा मात्रा में बर्फ के गिरने से बड़े पैमाने पर बाढ़ आने का खतरा भी बना रहा है। शोधकर्ताओं ने कहा यदि झीलें अपने बांधों का तोड़ देती हैं तो महाविनाश हो सकता है। पिछली सदी में ऐसी ही विनाशकारी घटनाओं में भारी-जनधन की हानि भी हुई थी। उन्होंने कहा कि आज भी जलवायु परिवर्तन के कारण ही ग्लेशियरों के किनारे टूट रहे हैं, जिसका ताजा उदाहरण इस साल मई में पाकिस्तान के हुंजा घाटी में आई बाढ़ है।