गुटका-तंबाकू से मुक्ति दिलाने में जुटे दंत चिकित्सक
मुबंई [ओमप्रकाश तिवारी]। मुंबई के टाटा मेमोरियल कैंसर अस्पताल में सबसे लंबी कतार मुंह के कैंसर से पीड़ित रोगियों की नजर आती है। लेकिन अब इस बीमारी के विरुद्ध देश के दंतचिकित्सकों ने योजनाबद्ध अभियान छेड़ दिया है। इस मुहिम के सकारात्मक परिणाम भी नजर आने लगे हैं।
मुबंई [ओमप्रकाश तिवारी]। मुंबई के टाटा मेमोरियल कैंसर अस्पताल में सबसे लंबी कतार मुंह के कैंसर से पीड़ित रोगियों की नजर आती है। लेकिन अब इस बीमारी के विरुद्ध देश के दंतचिकित्सकों ने योजनाबद्ध अभियान छेड़ दिया है। इस मुहिम के सकारात्मक परिणाम भी नजर आने लगे हैं।
प्राप्त आंकड़ों के मुताबिक हर साल देश में पांच से छह लाख लोग गुटका-तंबाकू से होनेवाले कैंसर का शिकार होते हैं। सन् 2015 तक इस आंकड़े में 30 प्रतिशत वृद्धि होने की संभावना है। अनेक राज्य सरकारों द्वारा गुटका प्रतिबंधित करने के बावजूद इसकी कालाबाजारी से उपलब्धता एवं खानेवालों की लत पर कोई खास असर दिखाई नहीं देता, क्योंकि गुटका खानेवाले इसे छोड़ने का मन ही नहीं बना पाते। मन बनाने और मन बदलने की इस कठिन मुहिम को हाथ में लिया है भारतीय दंतचिकित्सक संघ [आईडीए] ने। देश भर में फैले उसके हजारों दंतचिकित्सक सदस्य निस्स्वार्थ भाव से जॉनसन एंड जॉनसन कंपनी द्वारा शुरू की गई राष्ट्रीय तंबाकू मुक्ति क्विटलाइन - 1800227787 की मदद से इस मुहिम को बिना किसी शोरशराबे के आगे बढ़ा रहे हैं।
मुंबई निवासी पेशे से होम्योपैथ डॉक्टर जीतेंद्रउपाध्ये स्वयं दिन में 15-20 पुड़िया गुटका चबा जाते थे। उनकी इस लत से उनके साथ-साथ पूरा परिवार परेशान था। लेकिन लत थी कि छूटने का नाम नहीं ले रही थी। एक दिन उनकी पत्नी ने उपरोक्त क्विटलाइन नंबर पर संपर्क किया तो उन्हें उनके नजदीकी दंतचिकित्सक डॉ. दिनेश के पटेल से मिलने की सलाह दी गई। डॉ. पटेल के योजनाबद्ध परामर्श एवं इलाज से तीन माह में ही डॉ. जीतेंद्र उपाध्ये का गुटखा पूरी तरह छूट गया। आईडीए के राष्ट्रीय महासचिव डॉ. अशोक ढोबले बताते हैं कि मुंबई के डॉ. पटेल की तरह ही देश भर में करीब 700 दंतचिकित्सक नशामुक्ति की इस पविद्द मुहिम से जुड़े हैं।
डॉ. ढोबले के अनुसार आईडीए द्वारा प्रशिक्षित ये चिकित्सक बिना कोई शुल्क लिए मुंबई के बोरीवली से उत्तर प्रदेश के बलिया तक गुटका-तंबाकू की लत से पीड़ित व्यक्ति का इलाज कर रहे हैं। अगले कुछ वर्षो में देश भर में ऐसे चिकित्सकों की संख्या बढ़ाकर 5000 तक पहुंचाने का लक्ष्य है। ये चिकित्सक गुटका-तंबाकू या सिगरेट से पीड़ित की लत को गहराई से समझकर निकोरेट च्यूइंगगम के जरिए उसकी निकोटीन प्रतिस्थापन थेरेपी [एनआरटी] शुरू करते हैं। अधिकतम 12 सप्ताह में इस च्यूइंगगम की संख्या कम करते-करते इसे शून्य पर लाया जाता है। यह कोर्स खत्म होते-होते व्यसनी अपने व्यसन को भूल चुका होता है।
जितने छोटे, उतने खोटे :-
भारत के छोटे राज्यों के लोग गुटका-तंबाकू एवं सिगरेट का सेवन करने में सबसे आगे हैं। अपेक्षाकृत कम आबादी वाले पूर्वोत्तर के पांच राज्य इसमें सबसे ऊपर हैं। पूरे भारत में ये नशा करनेवालों की संख्या जहां 35 फीसद है, वहीं पूर्वोत्तर के मिजोरम में 67 प्रतिशत, नागालैंड में 57 प्रतिशत, द्दिपुरा में 56 प्रतिशत, मेघालय में 55 फीसद एवं मणिपुर में 54 फीसद है। पूर्वोत्तर के इन पांच राज्यों के बाद उत्तरभारत का बिहार राज्य में 54 फीसद एवं छत्तीसगढ़ में 53 फीसद एवं झारखंड में 50 फीसद लोग विभिन्न प्रकार के नशे की लत से पीड़ित हैं। दुर्व्यसनों के मामले में गोवा को सबसे बेहतर माना जा सकता है। वहां सिर्फ नौ फीसद लोग नशा करते हैं।
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