Exclusive : बुकर पुरस्कार से सम्मानित लेखिका गीतांजलि श्री बोलीं, दूर देश में बैठे लोग हमारी भाषा और किरदारों से रिश्ता कर रहे हैं कायम
64 वर्षीय लेखिका गीतांजलि श्री का कहना है पुरस्कार मिलना बड़ी उपलब्धि है लेकिन उससे ज्यादा महत्वपूर्ण यह है कि दूसरे परिवेश में दूर देश में बैठे हुए लोग हमसे हमारी भाषा और किरदारों से एक रिश्ता कायम कर रहे हैं।
रुमनी घोष, नई दिल्ली। 9 मार्च 2022..शाम का वक्त था। फोन की कोई तीन-चार घंटी बजते ही लेखिका गीतांजलि श्री ने फोन उठा लिया। तब उनकी पुस्तक रेत समाधि (टूम आफ सैंड) बुकर के लिए शार्ट लिस्ट हुई ही थी। उनकी आवाज में कोई अधीरता, कोई उद्वेग नहीं था। पुरानी यादों से गुजरते हुए वह अपने लेखन के सफर को टटोल रही थीं। ..और बुकर जीतने के बाद शुक्रवार को जब वह लंदन में बोल रही थीं, तब भी उनकी आवाज और अंदाज में कोई बदलाव नजर नहीं आया। बस एक चीज, जिसे वह बार-बार महसूस कर रही थीं वह है कि हिंदी का घेरा अब और ज्यादा प्रकाश की जद में आ गया है। वह कहती हैं जीवन में बड़े बदलाव धीरे और चुपके से होते हैं। यह बदलाव भी बड़ा है..उनके लिए और हिंदी के लिए भी।
अपनी कृति से हिंदी की चमक और धमक दोनों बढ़ाने वाली 64 वर्षीय लेखिका गीतांजलि श्री का कहना है पुरस्कार मिलना बड़ी उपलब्धि है, लेकिन उससे ज्यादा महत्वपूर्ण यह है कि दूसरे परिवेश में दूर देश में बैठे हुए लोग हमसे, हमारी भाषा और किरदारों से एक रिश्ता कायम कर रहे हैं। बुकर पुरस्कार मिलने के बाद गीतांजलि श्री ने गुरुवार को लंदन में कहा बुकर निश्चित रूप से इस उपन्यास को कई और लोगों तक ले जाएगा, जिन तक अन्यथा यह नहीं पहुंच पाता। यह किताब बुकर की लांग लिस्ट में आई तब से हिंदी के बारे में बहुत कुछ लिखा गया। मुझे अच्छा लगा कि मैं इसका माध्यम बनी।
जन्म मैनपुरी, कर्मस्थल दिल्ली
जन्म मैनपुरी में 1957 में हुआ था। वह कहती हैं मैनपुरी से मेरा रिश्ता सिर्फ जन्म का ही है। कर्म क्षेत्र तो दिल्ली ही है। वर्तमान में वह 95 वर्षीय मां के साथ नई दिल्ली में रहती हैं। वह बताती हैं मेरे पिता आइएएस ए. पांडे मूलत: गाजीपुर के करइल के रहने वाले थे। पदस्थापना के दौरान उत्तर प्रदेश के अलग-अलग शहरों में रहे। जब उनकी पदस्थापना मैनपुरी थी, तो मैं वहां पैदा हुई। फिर वाराणसी, प्रयागराज जैसे कई शहरों में रहे। मेरे पिताजी की साहित्य में बहुत रुचि थी। वह लिखते भी थे, जिसकी वजह से सुमित्रानंद पंत जैसे बड़े साहित्यकारों व कई शायरों का घर पर बहुत आना-जााना था। शायद बचपन और किशोरावस्था में मेरे मन पर उन्हीं स्मृतियों की छाया जाने-अनजाने पड़ती रही। हालांकि उस समय मुझे यह अहसास नहीं था कि मैं लिख सकती हूं। स्नातक के बाद दो-तीन साल शिक्षण व शोध कार्य से जुड़ी रही, फिर लेखन में जुट गईं।
अगली पुस्तक सह-सा:
गीतांजलि श्री की अगली पुस्तक सह-सा तैयार है। सह-सा के कई अर्थ हैं.. अचानक, सहने जैसा, साथ-सा आदि है। उनकी अन्य पुस्तकें माई, हमारा शहर उस बरस, तिरोहित, खाली जगह अनुगूंज है।
तब 100 रुपये का नोट दिया था..अब पिताजी खुश होते
वह बताती हैं हर अभिभावक की तरह मेरे पिता चाहते थे कि मैं एक पारंपरिक जीवन जियूं। अपनी बात मनवाने के लिए उन्होंने एक बार जन्मदिन पर 100 रुपये का नोट दिया और शर्त रखी कि जिससे चाहो शादी कर लो, लेकिन वह ब्राह्मण और आइएएस होना चाहिए। तब मैंने इन्कार कर दिया था। आज वह होते तो बहुत खुश होते कि मैंने अपने लिए सही रास्ता चुना था।
हिंदी साहित्य अंतरराष्ट्रीय स्तर पर पहुंचेगा
साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित कवयित्री अनामिका ने कहा कि यह एक नए तरह की शुरुआत है। औपनिवेशिक प्रखंड के देश की भाषा सीखकर स्त्री अनुवादक सर्वश्रेष्ठ कृतियों की अनुवाद कर रही है। उपन्यास में बेटी और मां का जो बहनापा है, वही लेखक और अनुवादक के बीच हो गया है। उपन्यास में कई प्रयोग किए गए हैं। नई तरह की भाषा है।
सम्मान के बाद अनुवाद भी बढ़ेगा
साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित लेखिका नमिता गोखले ने कहा कि गीतांजलि श्री और डेजी राकवेल दोनों ही बेहतरीन साहित्यकार हैं। जब एक विस्तारवाले साहित्य को उसी तरह का अनुवादक मिलता है तो साहित्य प्रभावी हो जाता है। यदि उन्हें कोई शब्द समझ नहीं आता तो कई बार ट्विटर पर पूछती हैं। हिंदी साहित्य को अंतरराष्ट्रीय फलक पर विस्तार मिलेगा। सम्मान के बाद अनुवाद भी बढ़ेंगे।
राजकमल प्रकाशन के प्रबंध निदेशक अशोक महेश्वरी ने कहा कि रेत-समाधि ने इंटरनेशनल बुकर प्राइज की सूची में शामिल होकर अपनी क्षमता पहले ही साबित कर दी थी। अब इसने वह पुरस्कार हासिल कर लिया है। इससे स्पष्ट है कि हिन्दी समेत भारतीय भाषाओं के उत्कृष्ट लेखन की तरफ दुनिया का ध्यान तेजी से जा रहा है।