यूपी में ही चलेगा गायत्री प्रजापति का ट्रायल, गवाह अंशु गौड़ की याचिका पर विचार से सुप्रीम कोर्ट ने किया इनकार
यह याचिका मामले में गवाह अंशु गौड़ ने दाखिल की थी साथ ही याचिका में अंशु ने जान को खतरा बताते हुए सुरक्षा दिलाने की मांग की थी। इस मामले में गायत्री प्रजापति 15 मार्च 2017 से जेल में हैं।
जागरण ब्यूरो, नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने उत्तर प्रदेश के पूर्व मंत्री गायत्री प्रजापति के खिलाफ लंबित दुष्कर्म के मामले की सुनवाई प्रदेश के बाहर स्थानांतरित करने और जांच सीबीआइ को सौपने की मांग वाली याचिका पर विचार करने से मंगलवार को इनकार कर दिया। यह याचिका मामले में गवाह अंशु गौड़ ने दाखिल की थी साथ ही याचिका में अंशु ने जान को खतरा बताते हुए सुरक्षा दिलाने की मांग की थी। इस मामले में गायत्री प्रजापति 15 मार्च 2017 से जेल में हैं।
न्यायमूर्ति अशोक भूषण की अध्यक्षता वाली तीन सदस्यीय पीठ ने अनुच्छेद 32 के तहत दाखिल याचिका पर विचार करने से इनकार करते हुए याचिकाकर्ता के वकील से कहा कि वह न तो इस मामले में शिकायतकर्ता है और न ही गवाह है फिर वे किस आधार पर केस ट्रांसफर करने की मांग कर रहे हैं। वकील ने कहा कि याचिकाकर्ता की जान को खतरा है कोर्ट उसे सुरक्षा दिलाए। इस पर पीठ ने कहा कि वह इसके लिए उचित अथारिटी के समक्ष जाएं। कोर्ट का नकारात्मक रुख देखते हुए वकील ने याचिका वापस ले ली और कोर्ट ने याचिका को वापस लिये जाने के कारण खारिज घोषित कर दिया।
इससे पहले याचिका पर बहस करते हुए वकील ने केस प्रदेश से बाहर स्थानांतरित करने की मांग करते हुए कहा कि मामले में अभियुक्त गायत्री प्रजापति पिछली सरकार में मंत्री थे और अभी भी प्रभावी व्यक्ति है। उसे हाईकोर्ट ने जमानत दे दी थी। इस पर पीठ ने कहा कि वह अलग मामला और अलग आधार था और इस कोर्ट ने जमानत रद की है।
अंशु गौड़ ने याचिका में निष्पक्ष जांच और ट्रायल न हो पाने का आरोप लगाते हुए मांग की थी कि सुप्रीम कोर्ट मामले की जांच उत्तर प्रदेश पुलिस से लेकर सीबीआइ या एनआइए अथवा किसी निष्पक्ष एजेंसी को सौंपे और कोर्ट की निगरानी में नये सिरे से मामले की जांच कराई जाए। इसके अलावा अन्य संबंधित मामलों की भी जांच सीबीआइ को सौंपी जाए। साथ ही कहा था कि गायत्री प्रजापति को भी लखनऊ जेल से किसी अन्य जेल स्थानांतरित किया जाए। गौड़ का कहना था कि वह इस मामले मे गवाह है इसलिए उस पर दबाव बनाने के लिए उसके खिलाफ कई झूठे मुकदमें दाखिल कराए गए हैं, कोर्ट उन मामलों में दंडात्मक कार्रवाई पर रोक लगाए।