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कर्नाटक : कलश को लेकर 40 साल का झगड़ा चार दिनों में निपटा, गरुण सिद्धेश्वर मंदिर की रथयात्रा से जुड़ा है मामला

बगलकोट जिले के कानूनी सेवा अधिकरण (डीएलएसए) के सचिव और मामले में मध्यस्थ बनीं हेमलता बसप्पा हुल्लुर ने बताया कि 1970 से यह मामला अदालतों में एक कलश को लेकर चला आ रहा था। हालांकि औपचारिक अदालत में यह मामला 2007 में ही आया।

By Neel RajputEdited By: Published: Sun, 24 Jan 2021 11:17 PM (IST)Updated: Sun, 24 Jan 2021 11:17 PM (IST)
कर्नाटक : कलश को लेकर 40 साल का झगड़ा चार दिनों में निपटा, गरुण सिद्धेश्वर मंदिर की रथयात्रा से जुड़ा है मामला
यह मसला पिछले हफ्ते महज चार दिनों में जिले की लोक अदालत में हल कर लिया गया

बगलकोट, आइएएनएस। कर्नाटक के दो पड़ोसी गांवों में गरुण सिद्धेश्वर मंदिर की वार्षिक रथयात्रा में स्थापित किए जाने वाले पवित्र कलश के लिए चार दशकों तक अदालतों में कानूनी लड़ाई चलती रही और इसका कोई हल नहीं निकला। लेकिन यह मसला पिछले हफ्ते महज चार दिनों में जिले की लोक अदालत में हल कर लिया गया।

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बेंगलुरु से 480 किलोमीटर दूर स्थित यह दोनों गांव कडलीमट्टी और मुदापालाजीवी के बीच अमृत को धारण करने के प्रतीक कलश को अमरता का वरदान माना जाता है। बगलकोट जिले के कानूनी सेवा अधिकरण (डीएलएसए) के सचिव और मामले में मध्यस्थ बनीं हेमलता बसप्पा हुल्लुर ने बताया कि 1970 से यह मामला अदालतों में एक कलश को लेकर चला आ रहा था। हालांकि औपचारिक अदालत में यह मामला 2007 में ही आया। उन्होंने बताया कि दोनों गांवों के लोगों के साथ चार दिनों की चर्चा के बाद यह मामला सुलझ गया है। दरअसल दोनों पक्षों के बीच विवाद कलश के लिए था।

इस विवाद के चलते रथ में रखा जाने वाला कलश हर साल कोषागार में जमा करा दिया जाता था। लेकिन जब वकील राघवेंद्र और कुलकर्णी ने बताया कि मंदिर के निर्माण के समय कडलीमट्टी गांव से अधिक दान मिलने के चलते पुजारी ने इस गांव के लोगों को सालाना रथयात्रा में कलश स्थापना के साथ ही साल भर उसकी पूजा करने की सुविधा दी थी, जो पड़ोसी गांव मुदापालाजीवी को नागवार गुजरी थी। लेकिन सुलह के बाद कलश मंदिर को सौंपने की सहमति बनी और रथयात्रा के समय कडलीमट्टी गांव के लोगों को सर्वप्रथम पूजा की अनुमति दी गई।


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