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जागरण डॉट कॉम हेडक्वार्टर में गैंग्स ऑफ वासेपुर

नई दिल्ली [जागरण डॉट कॉम]। इस सावन मे.आग लगेगी तेरे आंगन मे.., निर्देशक अनुराग कश्यप की 22 जून को रिलीज होने जा रही फिल्म गैग्स ऑफ वासेपुर का चर्चा इन दिनो जोरो पर है। यह फिल्म रिलीज से पूर्व ही सुर्खियां बटोरने मे कामयाब हो चुकी है। हालही मे सिडनी फिल्म फेस्टिवल मे भी मूवी की जमकर धूम रही। मनोज बाजपेयी-रीमा के मुख्य कि

By Edited By: Published: Mon, 18 Jun 2012 03:42 PM (IST)Updated: Mon, 18 Jun 2012 07:36 PM (IST)
जागरण डॉट कॉम हेडक्वार्टर में गैंग्स ऑफ वासेपुर

नई दिल्ली [जागरण डॉट कॉम]। इस सावन में.आग लगेगी तेरे आंगन में.., निर्देशक अनुराग कश्यप की 22 जून को रिलीज होने जा रही फिल्म गैंग्स ऑफ वासेपुर का चर्चा इन दिनों जोरों पर है। यह फिल्म रिलीज से पूर्व ही सुर्खियां बटोरने में कामयाब हो चुकी है। हालही में सिडनी फिल्म फेस्टिवल में भी मूवी की जमकर धूम रही। मनोज बाजपेयी-रीमा के मुख्य किरदार वाली इस फिल्म को जमीन से जुड़ी और ठेठ देसी अंदाज वाली फिल्म कहा जा रहा है। फिल्म पांच घंटे 20 मिनट की है, जो अपने आप में एक एक्सपेयरीमेंट है। सोमवार को अनुराग, मनोज और रीमा सहित गैंग्ग ऑफ वासेपुर दैनिक जागरण के नोएडा स्थित मुख्यालय पहुंची और फिल्म से जुड़े तमाम पहलुओं पर प्रकाश डाला।

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सवाल : यह फिल्म पांच घंटे 20 मिनट की है। ऐसा क्यों?

अनुराग : जी हां, इसकी कुल अवधि पांच घंटे 20 मिनट है और यह दो घंटे 40 मिनट के दो भागों में है। पहले इसका पहला भाग रिलीज किया जाएगा और दूसरा भाग करीब पांच हफ्ते बाद सिनेमाघरों में आएगा।

सवाल : इसके पीछे क्या सोच है?

अनुराग : यह अपने आप में एक बड़ा प्रयोग है। इसे राज ही बना रहने दीजिए। जब दर्शक पहला भाग देखेंगे और अंत में उन्हें पता चलेगा कि दूसरा भाग कुछ दिनों बाद देखने को मिलेगा, तो वह तभी तय करेंगे कि हमने ऐसा क्यों किया है। लोगों को दूसरे पार्ट का इंतजार बड़ी बेचैनी से रहेगा।

सवाल : फिल्म किस मायने में खास है?

अनुराग : हम मायने में। हमने बहुत बड़ा बजट लेकर इस पर काम किया है। यह एक बड़ा प्रयोग है, जो बॉलीवुड में शायद अब तक किसी ने नहीं किया। फिल्म में जमीनी किरदार, जमीनी संगीत, जमीनी डॉयलॉग और विशुद्ध जमीनी भाषा का इस्तेमाल किया है। हमने कहानी से समझौता नहीं किया और यही वजह है कि फिल्म पांच घंटे पार कर गई। हालांकि विदेशों में इसे बेहद पसंद किया गया है। अभी तक यह जितने भी फिल्म फेस्टिवल्स में गई है, सभी को बहुत पसंद आई है।

सवाल : फिल्म की जमीन क्या है?

अनुराग : यह तो लोगों को फिल्म देखने पर ही पता चलेगा। लेकिन इतना बता दूं कि फिल्म का जमीनी होना ही इसकी खासियत है। मसलन हमने म्यूजिक भी लोकल ऑर्केस्ट्रा से लिया है। फिल्म अपने प्लॉट के कल्चर से जरा भी दूर नहीं जाती। बिहार में श को स और र को ड़ बोला जाता है, हमारे किरदार भी ऐसी ही बोली बोलते हैं। इसमें एक गाना है.. शलामे इस्क मेरी जान..। यही बात हर डॉयलॉग, हर गाने में मिलेगी।

सवाल : देसी गमछे की काफी चर्चा है?

अनुराग : जी हां। गमछा उस संस्कृति का अभिन्न हिस्सा है, जिसके इर्द-गिर्द फिल्म बुनी गई है। यह गमछा-ब्रांड फिल्म है। हमने गमछे को ही इस फिल्म का मार्केटिंग-सिंबॉल बना डाला है।

सवाल : फिल्म की हीरोइन रीमा ही क्यों?

अनुराग : रीमा इस किरदार के लिए एकदम फिट थीं। वैसे मैं रीमा को एक दशक से जानता हूं। वह साउथ में कई अच्छी फिल्में कर चुकी हैं। सेल्वीराजा की एक फिल्म में उन्हें बेहद बोल्ड सीन दिया गया था। इसमें उन्हें घाघरा उठाकर एक टब में करना था, तब मैंने उन्हें बुलाया कि तुम एक्टिंग करने साउथ पहुंची हो या ये सब करने। तभी मैंने उनके लिए रोल सोचना शुरू कर दिया था।

सवाल : यह फिल्म केवल व्यस्कों के लिए है?

अनुराग : जी हां। लोग नग्नता देखना चाहते हैं, लेकिन व्यस्कता की परिभाषा केवल अश्लीलता या सेक्स ही नहीं है। यह फिल्म बड़ों के लिए है, लेकिन बड़ा होना आपकी सोच पर निर्भर करता है। फिल्म में एक डायलॉग है-हम लोग सबको बच्चा बनाकर रखना चाहते हैं, किसी को बड़ा नहीं होने देना चाहते..। आपको बता दूं कि मेरी फिल्म जब सेंसर बोर्ड के पास जाती है तो मेरी उनसे विनती होती है कि फिल्म को सर्टिफिकेट देने वाली समिति में महिलाएं भी हों। ऐसा इसलिए ताकि अश्लीलता का पैमाना तय हो सके। जो चीजें महिलाएं देख सकती हैं और दूसरों को देखने के लिए रिकमंड कर सकती हैं, वह एक हद में ही हो सकती हैं।

सवाल : मनोरंजन के नाम पर नैतिक आचार-व्यवहार और आदर्श मापदंडों का उल्लंघन कहां तक उचित है?

अनुराग : हम वही पेश करते हैं, जो लोगों को पसंद हो। क्या नैतिक है और क्या अनैतिक, यह मीडिया को नहीं, बल्कि लोगों को तय करना होता है। वे फिल्म देखने पहुंचते हैं।

सवाल : बच्चों पर ऐसे मनोरंजन का खराब प्रभाव पड़ता है?

अनुराग : इसीलिए हम केवल व्यस्कों के लिए फिल्म बनाते हैं। आजकल के बच्चे खुद बहुत समझदार हैं।

सवाल : वासेपुर में कुछ लोगों ने फिल्म को लेकर आपत्ति दर्ज कराई है?

अनुराग : जी नहीं। वहां के लोगों ने नहीं बल्कि राजनीति करने वाले एक शख्स ने ऐसा किया है। आम लोगों को कोई ऐतराज नहीं है।

सवाल : मनोज बाजपेई के साथ दस साल बाद साथ काम किया, लंबा अंतराल क्यों?

अनुराग : जी हां, इस बीच कुछ दूरियां बन गई थीं। अब खत्म हो गई हैं।

सवाल : नए रोल के बारे में क्या कहेंगे?

मनोज : मेरे लिए हर रोल अहम होता है। जब तक अदाकार अपने किरदार को पूरी तरह नहीं जी लेता, तब तक वह किरदार के साथ न्याय नहीं कर सकता। इस फिल्म में भी मैंने किरदार को जिया है।

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