डॉल्फिन की खास प्रजाति 'गंगा डॉल्फिन' विलुप्त होने की कगार पर, जानें इसकी खासियत
डॉल्फिन की खास प्रजाति गंगा डॉल्फिन विलुप्त होने के खतरे से जूझ रही है। इसके लिए कई कारण जिम्मेदार हैं।
नेशनल डेस्क, नई दिल्ली। नदियों में बढ़ते प्रदूषण, बांधों के निर्माण व शिकार के कारण मीठे पानी में रहने वाली डॉल्फिन की प्रजाति गंगा डॉल्फिन के अस्तित्व पर खतरा मंडरा रहा है। पांच अक्टूबर, 2009 को केंद्र सरकार ने इसको भारत का राष्ट्रीय जलीय जीव घोषित किया था। बीते दिनों संसद के शीतकालीन सत्र के दौरान केंद्रीय पर्यावरण, वन व जलवायु परिवर्तन मंत्री इनकी संख्या के बारे में जानकारी दी। अंतिम गणना में उत्तर प्रदेश व असम की नदियों में इनकी संख्या क्रमश: 1,275 व 962 पाई गई थी।
भाजपा सांसद राजीव प्रताप रूडी ने पूछा था कि क्या सरकार ने देश में गंगा डॉल्फिन की आबादी और निवास क्षेत्रों का आकलन किया, जिसके जवाब में सुप्रियो ने कहा था कि इस तरह के आकलन राज्य वन विभागों द्वारा किए जाते हैं। केंद्रीय मंत्रालय में इस तरह का डाटा एकत्र नहीं किया जाता है। उन्होंने उत्तर प्रदेश और असम की राज्य सरकारों द्वारा दी गई जानकारी को पटल पर रखा। इसमें बताया गया कि गंगा डॉल्फिन की गणना असम सरकार ने 2018 में जनवरी से मार्च माह के बीच की थी। वहीं, उत्तर प्रदेश में 2015 में इनकी संख्या 1,272 थी, जबकि 2012 में इनकी गणना 671 की गई थी।
असम में गंगा डॉल्फिन की गणना तीन नदियों में की गई थी। ब्रह्मपुत्र में इनकी संख्या 877 पाई गई थी। वहीं, राज्य में इनकी कुल संख्या 962 थी। इसके संरक्षण के लिए असम सरकार ने भी इसे राज्य जलीय जीव घोषित किया है। राज्य में इनकी आबादी को कम होने से बचाने के लिए नदियों से सिल्टिंग और रेत उठाने से रोक दी गई है। इंटरनेशनल यूनियन फॉर कंजर्वेशन ऑफ नेचर ने गंगा डॉल्फिन को भारत में एक लुप्तप्राय प्रजाति के रूप में सूचीबद्ध किया है। वर्ल्ड वाइल्डलाइफ फंड (डब्ल्यूडब्ल्यूएफ) के मुताबिक, गंगा डॉल्फिन के लिए मुख्य खतरा बांधों और सिंचाई परियोजनाओं का निर्माण है। मंत्रालय ने गंगा डॉल्फिन के संरक्षण की कार्य योजना 2010-2020 के बारे में बताया कि इस जीव के खतरों की पहचान की गई है, जो सिंचाई नहरों का निर्माण, शिकार और नदियों का यातायात है।
गंगा डॉल्फिन की खासियत
गंगा डॉल्फिन एक नेत्रहीन जलीय जीव है, जिसके सूंघने की शक्ति अत्यंत तीव्र होती है। इसकी प्रजाति पर खतरे का एक बड़ा कारण इसका शिकार किया जाना है। इसका शिकार मुख्यत: तेल के लिए किया जाता है, जिसे अन्य मछलियों को पकड़ने के लिए चारे के रूप में प्रयोग किया जाता है। बिहार व उत्तर प्रदेश में इसे ‘सोंस’, जबकि असामी भाषा में ‘शिहू’ के नाम से जाना जाता है। मुख्यत: मीठे पानी में रहने वाले इस जीव को 2009 में केंद्र सरकार ने भारत का राष्ट्रीय जलीय जीव घोषित किया था।