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कल-कल बहती यमुना में झर-झर गिरता नाला

इलाहाबाद [राजकुमार श्रीवास्तव]। मां गंगा व यमुना के संगम की वजह से ही इलाहाबाद शहर जाना जाता है। इसके बावजूद प्रयाग की सांस्कृतिक पहचान का कारक रहीं इन दोनों पवित्र नदियों के साथ ही खुलकर खिलवाड़ किया जा रहा है। पुराने यमुना पुल का नजारा दिल दहलाने वाला है। जितना गंदा पानी शहर के पूरे नाले मिलकर गंगा यमुना में गिराते होंग

By Edited By: Published: Wed, 02 Jul 2014 03:13 PM (IST)Updated: Wed, 02 Jul 2014 03:14 PM (IST)
कल-कल बहती यमुना में झर-झर गिरता नाला

इलाहाबाद [राजकुमार श्रीवास्तव]। मां गंगा व यमुना के संगम की वजह से ही इलाहाबाद शहर जाना जाता है। इसके बावजूद प्रयाग की सांस्कृतिक पहचान का कारक रहीं इन दोनों पवित्र नदियों के साथ ही खुलकर खिलवाड़ किया जा रहा है। पुराने यमुना पुल का नजारा दिल दहलाने वाला है। जितना गंदा पानी शहर के पूरे नाले मिलकर गंगा यमुना में गिराते होंगे, उतना अकेले इस पुल से गुजर रहे राइजिंग मेन से गिर रहा है। लाखों लीटर गंदा पानी रोज यमुना के रास्ते पतित पावनी गंगा में जाकर मिल रहा है। नीचे कल कल बहती नदी में नाले का पानी ऐसे गिरता है जैसे कोई झरना हो। यह नजारा हर कोई देख रहा है पर करने को किसी के पास कुछ नहीं है। इसे ठीक करने की एक बार योजना भी बनी तो वह रेलवे व जलनिगम के बीच रार में अटक गई।

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गऊघाट पंपिंग स्टेशन से नैनी सीवरेज ट्रीटमेंट प्लांट तक गंदा पानी राइजिंग मेन के सहारे जाता है। राइजिंग मेन पांच-छह वषरें से कई जगह क्षतिग्रस्त हो गई है। इससे प्रदूषित पानी झरने की तरह दिनभर बहते हुए यमुना में मिलता है। क्षतिग्रस्त राइजिंग मेन को बदलने के लिए फरवरी 2009 में 25.86 करोड़ रुपये सरकार ने जारी किया। गंगा प्रदूषण नियंत्रण इकाई ने कार्य के लिए तीन बार टेंडर जारी किया, लेकिन कीमत ज्यादा होने से टेंडर निरस्त कर दिया गया। संशोधित प्रस्ताव 34.51 करोड़ रुपये का बनाया गया, जो नवंबर 2010 में स्वीकृत हुआ। उसी साल ठेके पर कार्य दे दिया गया, लेकिन रेलवे ने अपने पुल पर कार्य की अनुमति 19 नवंबर 2012 को डाउन साइड में दिया। बावजूद इसके कुंभ मेले के कारण लाइन तोड़ी नहीं गई। लिहाजा, 2013 में काम शुरू हुआ। जुलाई महीने में बाढ़ के कारण दो माह काम रुका रहा। कार्य अगले महीने पूरा होने की उम्मीद है।

काम में रेलवे की अड़ंगेबाजी

नवंबर 2010 के स्वीकृत कार्य को रेलवे ने कराने के लिए नवंबर 2012 में अनुमति दी। यानी काम दो वर्ष विलंब से शुरू हुआ। गंगा प्रदूषण नियंत्रण इकाई के अधिकारी कहते हैं कि रेलवे ने पहले 2007 में सैद्धांतिक सहमति दी थी। कुल लागत की 12.5 फीसद सुपरविजन चार्ज लेने को भी कहा, लेकिन बाद में प्रस्ताव बना तो रेलवे से अनुमति लेने पर सुपरविजन और वेलीव चार्ज मिलाकर 389 लाख रुपये कर दिए गए। इसी प्रकार अप साइड के लिए उक्त चाजरें को 352 लाख रुपये कर दिया गया है। इसके लिए इकाई को फिर से प्रस्ताव को रिवाइज करना पड़ेगा।

रोज इकट्ठा होता 60 से 70 एमएलडी पानी

गऊघाट पंपिंग स्टेशन पर प्रतिदिन 60 से 70 एमएलडी पानी इकट्ठा होता है जिसे पंप करके नैनी भेजा जाता है। उक्त पंपिंग स्टेशन पर कीडगंज, मुट्ठीगंज, बलुआघाट, गऊघाट, मालवीय नगर, मीरापुर, रामबाग, बाई का बाग, मोहत्सिमगंज आदि क्षेत्रों का पानी जाता है।

जुलाई में पूरा होगा काम

गंगा प्रदूषण नियंत्रण इकाई के परियोजना प्रबंधक जेपी मणि ने बताया कि डाउन साइड का काम जुलाई में पूरा हो जाएगा। अप साइड का काम इसके बाद शुरू किया जाएगा लेकिन जुलाई में एक साइड पर लोड दे दिया जाएगा। जिससे पानी बहना बंद हो जाएगा।

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