भारत के लिए संभावनाओं के नए द्वार खोलेगा गगनयान, स्पेस टूरिज्म को लगेंगे पंख
भारत जैसे विकासशील देश के लिए दुनिया में अपनी धमक दिखाने के लिए यह जरूरी है। साथ ही अंतरिक्ष में बढ़ती प्रतिस्पर्धा के साथ तैयार हुआ बढ़ा बाजार हमारा इस्तकबाल कर रहा है।
नई दिल्ली [जागरण स्पेशल]। 2022 में जब अपने बलबूते तैयार गगनयान आकाश की अनंत ऊंचाइयों में तैर रहा होगा तो 120 करोड़ भारतीयों के अरमान बुलंदियों पर होंगे। हमें सपेरों का देश समझने वाले लोग ईर्ष्या में जल भुन रहे होंगे। कड़ी लगन और हमारे वैज्ञानिकों के अथक परिश्रम से यह संभव होगा। भारत जैसे विकासशील देश के लिए दुनिया में अपनी धमक दिखाने के लिए यह जरूरी है। साथ ही अंतरिक्ष में बढ़ती प्रतिस्पर्धा के साथ तैयार हुआ बढ़ा बाजार हमारा इस्तकबाल कर रहा है।
बढ़ता बाजार
गत 13 दिसंबर को वर्जिन गैलेक्टिक ने पहली टूरिज्म स्पेसशिप को अंतरिक्ष में पहुंचाने में सफलता हासिल की। अन्य निजी कंपनियां जैसे ब्लू ओरिजिन और स्पेस एक्स भी मानव स्पेसशिप अभियानों को आने वाले दिनों में भेजने की तैयारी में जुटी हैं। तेजी से उभरते अंतरिक्ष पर्यटन में भारत अपनी बड़ी संभावनाएं देख रहा है। इस बाजार का अंदाजा आप इसी से लगा सकते हैं कि अंतरिक्ष की कक्षा में 90 मिनट की परिक्रमा के लिए वर्जिन सबऑर्बिटल मिशन के तहत प्रति व्यक्ति 1.8 करोड़ रुपये लगते हैं। 600 से अधिक लोगों ने उड़ान से पहले ही रकम जमा कर रखी है।
बड़ी चुनौती
इसरो ने अब तक जितने भी अभियानों को अंजाम दिया है, मानव अंतरिक्ष अभियान उनसे एकदम अलग है। जटिलता और महत्वाकांक्षा के लिहाज से उसके मुकाबले चंद्रयान और मंगलयान भी कहीं नहीं ठहरते हैं। इस अभियान में किसी भी अंतरिक्ष एजेंसी को यान को अंतरिक्ष से पुन: धरती पर लाने की विशेषज्ञता हासिल करनी होती है। साथ ही एक ऐसा यान विकसित करने की चुनौती भी होती है जिसमें अंतरिक्षयात्री अंतरिक्ष में धरती जैसे माहौल में रह सकें। साल दर साल कड़ी मेहनत से इसरो ने मानव अंतरिक्ष अभियान के लिए जरूरी सभी तकनीकी का सफल परीक्षण कर लिया है।
हैं तैयार हम
जीएसएलवी एमके-3
यह भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) द्वारा विकसित एक लांच व्हीकल है। इसे जियो-स्टेशनरी ऑर्बिट में उपग्रहों और भारतीय अंतरिक्ष यात्रियों को प्रक्षेपित करने के लिए विकसित किया गया है। यह रॉकेट चंद्रयान और मंगयान अभियान को सफल बनाने वाले पीएसएलवी लांच व्हीकल की तुलना में पांच से छह टन तक पेलोड (भार) ले जाने में सक्ष्म है। वहीं मुश्किल से दो टन तक भार ले जाने में सक्षम पीएसएलवी पृथ्वी की सतह से लगभग 600 किमी की ऊंचाई तक परिक्रमा करता है। तीन दशकों की कड़ी मेहनत के बाद जीएसएलवी-मार्क 3 का परीक्षण सफलतापूर्वक 18 दिसंबर 2014 को किया गया।
अंतरिक्ष यात्री बचाव प्रणाली
यह एक महत्वपूर्ण सुरक्षा तकनीक है, जिसमें दोषपूर्ण लांच के मामले में अंतरिक्ष यात्रियों के लिए एक आपातकालीन बचाव तंत्र शामिल होता है। इस तंत्र से चालक दल के रॉकेट में कुछ भी गलत होने की चेतावनी मिलती है और सुरक्षित दूरी पर उससे अलग हो जाता है। जिसके बाद पैराशूट की मदद से कैप्स्यूल को समुद्र या जमीन पर उतारा जा सकता है। 5 जुलाई को इसरो ने अंतरिक्ष यात्री बचाव प्रणाली की पहली सफल उड़ान पूरी की। श्रीहरिकोटा से लगभग 3.5 टन वजन का एक चालक दल मॉड्यूल लांच किया गया था।
रीएंट्री और रिकवरी तकनीक
इसरो द्वारा आमतौर पर लांच किए गए उपग्रह अंतरिक्ष में ही बने रहने के लिए होते हैं। यहां तक कि चंद्रयान और मंगलयान भी पृथ्वी पर लौटने के लिए नहीं बने थे। पृथ्वी के वायुमंडल में प्रवेश करते समय अंतरिक्ष यान को कई हजार डिग्री से भी अधिक तापमान का सामना करना पड़ता है, जो घर्षण के कारण बनता है। ऐसे में मानवयुक्त अंतरिक्ष यान को वायुमंडल में प्रवेश कराने के लिए सटीक गति और कोण की जरूरत पड़ती है। 18 दिसंबर, 2014 को जीएसएलवी एमके-3 की पहली सफल प्रायोगिक उड़ान में एक मॉड्यूल का सफल परीक्षण किया गया जो अंतरिक्ष में 126 किमी की ऊंचाई पर जाकर वापस धरती पर आया।
लाइफ सपोर्ट
एनवायरमेंटल कंट्रोल एंड लाइफ सपोर्ट सिस्टम क्रू मॉड्यूल में इंसानों को आराम से रहने की सहूलियत मुहैया कराता है। इसके अंदर धरती सरीखा माहौल तैयार किया जाता है। यह तकनीक केबिन के दबाव, हवा के घटकों, कार्बन डाईऑक्साइड को निकालने, तापमान नियंत्रित करने सहित कई आपातकालीन मदद मुहैया कराती है। इस तकनीक का डिजायन तैयार कर लिया गया है और उसके कई घटकों का परीक्षण अंतिम चरणों में है।
अंतरिक्ष यात्रियों का प्रशिक्षण
योजना के शुरुआती सालों में बेंगलुरु में एक अंतरिक्ष यात्री प्रशिक्षण केंद्र स्थापित करने का प्रस्ताव लाया गया था। 2012 में इसे पूरा किया जाना था। स्थायी प्रशिक्षण केंद्र को तैयार करने की इसरो तैयारी में है। लेकिन बहुत संभव है कि पहले मानव अभियान के लिए लोगों को विदेशी केंद्र में प्रशिक्षण दिलाया जाए। उम्मीदवारों को शून्य गुरुत्वाकर्षण में रहने और अंतरिक्ष में रहने के विभिन्न प्रकार के अप्रत्याशित अनुभवों से निपटने के लिए कम से कम दो साल के लिए प्रशिक्षित करने की आवश्यकता होगी। कुछ प्रशिक्षण बेंगलुरु में भारतीय वायु सेना के एयरोस्पेस चिकित्सा संस्थान में भी प्रदान किए जाएंगे। उम्मीदवारों के चयन की प्रक्रिया अभी शुरू नहीं हुई है।