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नेवी की परमाणु पनडुब्बियों को जल्द मिलेगा टॉरपीडो, रेस में फ्रांसीसी और जर्मन कंपनियां

भारतीय नौसेना ने स्कॉर्पीन श्रेणी की पारंपरिक और अरिहंत श्रेणी की परमाणु पनडुब्बियों के टॉरपीडो के लिए टेंडर निकाला था।

By Manish PandeyEdited By: Published: Wed, 22 Jan 2020 05:08 PM (IST)Updated: Wed, 22 Jan 2020 08:10 PM (IST)
नेवी की परमाणु पनडुब्बियों को जल्द मिलेगा टॉरपीडो, रेस में फ्रांसीसी और जर्मन कंपनियां

नई दिल्ली, एएनआइ। भारतीय नौसेना (Indian Navy) को करीब 100 हेवीवेट टॉरपीडो (Heavyweight Torpedoes) की आपूर्ति के लिए जर्मनी की कंपनी 'एटलस इलेक्ट्रॉनिक' और फ्रांस की कंपनी 'नेवल ग्रुप' अंतिम रेस में हैं। इन टॉरपीडो को स्कॉर्पीन श्रेणी (Scorpene Class) की पारंपरिक और अरिहंत श्रेणी (Arihant Class) की परमाणु पनडुब्बियों (Nuclear Submarines) में लगाया जाना है।

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रक्षा सूत्रों ने बताया, 'निविदाओं का जवाब देने की आखिरी तारीख 17 जनवरी थी और इस संबंध में सिर्फ दो कंपनियों जर्मनी की एटलस इलेक्टॉनिक और फ्रांस की नेवल ग्रुप ने जवाब दिया है।' ये निविदाएं इसलिए अहम हैं क्योंकि फ्रांसीसी स्कॉर्पीन श्रेणी की पनडुब्बियों का निर्माण भारत में मझगांव डॉकयार्ड लिमिटेड में किया जा रहा है और अभी तक इनमें नए टॉरपीडो नहीं लगाए गए हैं। स्कॉर्पीन श्रेणी की पनडुब्बियों को अब कलवरी श्रेणी नाम दिया गया है। आइएनएस कलवरी नामक इस श्रेणी की पहली पनडुब्बी नौसेना में शामिल की जा चुकी है और संचालन में है।

'मेक इन इंडिया' कार्यक्रम के जरिये होगी आपूर्ति

परियोजना के विवरण के मुताबिक, नौसेना के लिए हेवीवेट टॉरपीडो की तात्कालिक जरूरतों को विदेश से खरीद के जरिये पूरा किया जाएगा, लेकिन दीर्घकालिक जरूरतों को 'मेक इन इंडिया' कार्यक्रम के जरिये पूरा किया जाएगा। नौसेना ने वैश्विक आपूर्तिकर्ताओं से यह आश्वासन हासिल कर लिया है कि उनके देश की सरकारें उनके टॉरपीडो को अरिहंत श्रेणी की परमाणु पनडुब्बियों में लगाने की अनुमति प्रदान करेंगी।

 सिर्फ दो कंपनियों ने ही दिया जवाब

बता दें कि नौसेना के लिए हेवीवेट टॉरपीडो के लिए फ्रांस, स्वीडन, रूस और जर्मनी के वैश्विक निर्माताओं को निविदाएं जारी की गई थीं, लेकिन सिर्फ दो कंपनियों ने ही इसका जवाब दिया। इससे पहले नौसेना ने इटली की कंपनी 'वास' के ब्लैक शार्क टॉरपीडो का चयन किया था, लेकिन यह कंपनी अगस्ता वेस्टलैंड घोटाले में फंसी दागी कंपनी फिनमैकेनिका ग्रुप का हिस्सा थी। लिहाजा विवाद के चलते नौसेना को अपना चयन निरस्त करना पड़ा।


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