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चार दिव्‍यांगों ने इंग्‍लिश चैनल पार कर रचा इतिहास, मजबूत लहरों ने की थी भटकाने की कोशिश

राह में आए तमाम अवरोधों को पार करते हुए भारत के चार दिव्‍यांगों ने इंग्‍लिश चैनल पार करने का रिकॉर्ड कायम किया।

By Monika MinalEdited By: Published: Tue, 26 Jun 2018 10:13 AM (IST)Updated: Tue, 26 Jun 2018 10:34 AM (IST)
चार दिव्‍यांगों ने इंग्‍लिश चैनल पार कर रचा इतिहास, मजबूत लहरों ने की थी भटकाने की कोशिश
चार दिव्‍यांगों ने इंग्‍लिश चैनल पार कर रचा इतिहास, मजबूत लहरों ने की थी भटकाने की कोशिश

नई दिल्‍ली (एजेंसी)। एक बार मंजिल तय करने का निश्‍चय कर लिया तब फिर किसी तरह की बाधा राह में रोड़ा नहीं बन सकती। इस बात को साबित किया है भारत के विभिन्‍न राज्‍यों के चार दिव्‍यांगों ने। इन चारों ने इंग्‍लिश चैनल को पार करने का निर्णय लिया और 36 किलोमीटर लंबा इंग्लिश चैनल 12 घंटे 26 मिनट में पार करने का रिकॉर्ड बनाया।

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आई थीं राह में कई मुश्‍किलें

कई महीनों से ट्रेनिंग ले रहे इन चार तैराकों की टीम में मध्यप्रदेश के सत्येंद्र सिंह लोहिया, राजस्थान के जगदीशचंद्र तैली, महाराष्ट्र के चेतन राउत और बंगाल के रिमो शाह शामिल हैं। इंग्लिश चैनल पार करने वाली इस पहली एशियाई टीम में शामिल चारों तैराकों के लिए यह रिकॉर्ड कायम करना आसान नहीं था। किसी के पास पैसों की दिक्कत आई किसी को तानों का सामना करना पड़ा तो किसी ने झील में तैरकर अथाह समुद्र से टकराने का हौसला जुटाया।

गांव की नदी से की थी शुरुआत

ग्वालियर निवासी 31 वर्षीय सत्येंद्र को दिव्यांग होने की वजह से बचपन से ही ताने दिए जाते थे। इसके बावजूद उन्‍होंने खुद को कमजोर नहीं होने दिया और गांव की बैसली नदी में तैराकी की शुरुआत की। उन्होंने बताया, ‘अप्रैल 2017 में भोपाल में मध्यप्रदेश के खेल विभाग के अधिकारियों से मैंने इंग्लिश चैनल पार करने की इच्छा जाहिर की थी। अधिकारियों ने हंसी उड़ाते हुए भोपाल का बड़ा तालाब तैरकर पार करने का चैलेंज दिया था।‘ दोनों पैरों से 75 फीसद दिव्‍यांग सत्येंद्र ने बीते वर्ष मई से ही तैयारी शुरू कर दी थी। उस वक्त उन्होंने 36 किलोमीटर के अरब सागर को पार किया था। जिसमें उन्हें 5 घंटे और 43 मिनट का वक्त लगा था। सत्येंद्र ऐसे पहले भारतीय हैं जिन्होंने 75 फीसदी दिव्यांगता के बावजूद भी अरब सागर में 36 किलोमीटर तक तैराकी की।

लहरों ने की भटकाने की कोशिशें

55 फीसद पैर से विकलांग 34 वर्षीय जगदीशचंद्र तैली ने बताया, 'मैंने स्विमिंग की शुरुआत राजसमंद झील से की थी। पिता किसान हैं। मुंबई में खर्च उठाने के लिए अलग-अलग जगह जाकर स्विमिंग भी सिखाई। इंग्लिश चैनल पार करते वक्त 60 फीसद सफर आसानी से पार कर लिया था, लेकिन फिर समंदर में ऊंची लहरें उठने के कारण सफर तय करने में वक्‍त लगा। लहरों ने रास्ते से भटकाने की भी कोशिश की, लेकिन हम नहीं रुके। एक जगह जेली फिश ने काट भी लिया।‘

तुड़वाया पिता का फिक्‍सड डिपॉजिट

अमरावती के रहने वाले 24 वर्षीय चेतन राउत दाएं पैर से 50 फीसद दिव्यांग हैं। चेतन ने बताया, ‘पिता स्कूल में चपरासी थे। तैराकी के लिए उन्होंने मुझे पुणे भेजा। दो साल पहले हादसे में उनकी जान चली गई। इसके बाद इंग्लिश चैनल पार करने के लिए लंदन जाने तक के पैसे नहीं थे। पैसों की व्यवस्था करने के लिए मैंने पिता की एफडी तुड़वाई। रिश्तेदारों से उधार लिया। टीम के बाकी साथियों ने भी क्राउड फंडिंग और दूसरे तरीकों से पैसे जुटाए। इसके बावजूद पैसे पूरे नहीं थे। टाटा ट्रस्ट ने इवेंट का 60 फीसद खर्च उठाया।‘

1997 में ही रच दिया था इतिहास

इन चारों से पहले कोलकाता के एम रहमान बैद्य दुनिया के पहले दिव्‍यांग तैराक हैं जिन्होंने घुटनों के नीचे के हिस्सों की अपंगता के होते हुए भी जिब्राल्‍टर की खाड़ी को पार किया। 25 सितंबर 2001 में 4 घंटे 20 मिनट की अवधि में उन्‍होंने इतिहास रच डाला। 1997 में इंग्‍लिश चैनल को पार करने वाले पहले दिव्‍यांग तैराक भी वही थे।


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