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कोयला घोटाला: दिलीप रे की सजा को लेकर CBI स्पेशल कोर्ट ने 26 अक्टूबर तक फैसला रखा सुरक्षित

पूर्व केंद्रीय मंत्री दिलीप रे (Dilip Ray) को वर्ष 1999 में झारखंड में एक कोयला ब्लॉक आवंटन में अनियमितताओं से संबंधित मामले में दोषी ठहराया गया था। आज सीबीआइ स्पेशल कोर्ट ने उनकी सजा पर सुनवाई पर अपना फैसला 26 अक्टूबर तक सुरक्षित रख लिया है।

By Pooja SinghEdited By: Published: Wed, 14 Oct 2020 12:12 PM (IST)Updated: Wed, 14 Oct 2020 12:29 PM (IST)
कोयला घोटाला: दिलीप रे की सजा को लेकर CBI स्पेशल कोर्ट ने 26 अक्टूबर तक फैसला रखा सुरक्षित
दिलीप रे की सजा को लेकर CBI स्पेशल कोर्ट ने 26 अक्टूबर तक फैसला रखा सुरक्षित।

नई दिल्ली, एएनआइ। पूर्व केंद्रीय मंत्री दिलीप रे (Dilip Ray) को वर्ष 1999 में झारखंड में एक कोयला ब्लॉक आवंटन में अनियमितताओं से संबंधित मामले में दोषी ठहराया गया था। आज उनकी सजा को लेकर हुई सुनवाई में दिल्ली में एक सीबीआइ स्पेशल कोर्ट ने 26 अक्टूबर तक अपना फैसला सुरक्षित रख लिया है।  

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वाजपेयी सरकार में कोयला राज्य मंत्री रह चुके हैं दिलीप

बता दें कि दिलीप रे अटल बिहारी वाजपेयी सरकार में कोयला राज्य मंत्री रह चुके हैं। दिल्ली की अदालत द्वारा कोयाला घोटाले में दोशी पाए जाने के बाद उनकी सजा पर भी बहस हुई। सीबीआई अब 26 अक्टूबर को ही सजा की घोषणा करेगी।

इन लोगों को भी ठहराया गया है दोषी

मामले में दिलीप रे के साथ-साथ कोयला मंत्रालय के तत्कालीन दो वरिष्ठ अधिकारी, प्रदीप कुमार बनर्जी और नित्या नंद गौतम, कैस्ट्रोन टेक्नोलॉजीज लिमिटेड (सीटीएल), इसके निदेशक महेंद्र कुमार अग्रवाल और कैस्ट्रॉन माइनिंग लिमिटेड (सीएमएल) को भी दोषी ठहराया था। 

यह मामला 1999 में झारखंड कोयला ब्लॉक के आवंटन में अनियमितता से जुड़ा है। विशेष न्यायाधीश भरत पराशर ने दिलीप रे को भ्रष्टाचार निरोधक अधिनियम के तहत दोषी पाया, जबकि अन्य को धोखाधड़ी और साजिश रचने का दोषी पाया गया था। विशेष अदालत ने उस समय कोयला मंत्रालय के दो वरिष्ठ अधिकारियों प्रदीप कुमार बनर्जी और नित्यानंद गौतम, कास्त्रोन टेक्नोलॉजी लिमिटेड (सीटीएल) और इसके निदेशक महेंद्र कुमार अग्रवाल को भी दोषी ठहराया था।

बता दें कि 1999 में झारखंड के गिरिडीह में 'ब्रह्माडीह कोयला ब्लॉक' के आवंटन में अनियमितता से जुड़े मामले में दिलीप रे को दोषी मानते हुए विशेष अदालत ने कहा था कि उन्होंने गलत इरादे से कानूनी प्रावधानों को ताक पर रखा। दिलीप रे ने धोखेबाजी से सीटीएल को कोयला ब्लॉक का आवंटन किया। विशेष अदालत ने कहा  था कि तत्कालीन अधिकारियों ने भी कानून के दायरे से बाहर जाकर काम किया और अपनी जिम्मेदारी का निर्वहन ठीक से नहीं किया।


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