पूर्व मुख्य सचिव नीरा यादव को चार साल कैद
नोएडा भूखंड आवंटन घोटाला वर्ष 1994-95 के दौरान का है। उस समय नीरा यादव नोएडा की सीईओ थीं और राजीव कुमार डिप्टी सीईओ थे।
जागरण ब्यूरो, नई दिल्ली। नोएडा भूखंड आवंटन में भ्रष्टाचार और अनियमितताओं की दोषी उत्तर प्रदेश की पूर्व मुख्य सचिव नीरा यादव चार वर्ष जेल की सजा काटेंगी। सुप्रीम कोर्ट ने नीरा यादव को भ्रष्टाचार के दो मामलों मे दोषी ठहराए जाने के इलाहाबाद हाईकोर्ट के फैसले पर अपनी मुहर लगा दी है। हालांकि कोर्ट ने नीरा यादव को दोनों मामलों में अलग अलग सुनाई गई तीन तीन साल कारावास की सजा घटा कर दो दो वर्ष का कारावास कर दी है। दोनों सजाएं अलग अलग चलेंगी ऐसे में नीरा यादव को चार साल का कारावास भुगतना होगा।
इसके अलावा उत्तर प्रदेश के पूर्व वरिष्ठ आइएएस राजीव कुमार को भी दो वर्ष का कारावास भुगतना होगा। सुप्रीम कोर्ट ने राजीव कुमार की सजा भी बरकरार रखी है। हालांकि राजीव कुमार की सजा भी तीन साल के कारावास से घटा कर दो वर्ष का कारावास कर दी है। नीरा यादव पिछले वर्ष 14 मार्च से व राजीव कुमार पिछले वर्ष 18 अप्रैल से जेल में हैं और सजा भुगत रहे हैं।
नोएडा भूखंड आवंटन घोटाला वर्ष 1994-95 के दौरान का है। उस समय नीरा यादव नोएडा की सीईओ थीं और राजीव कुमार डिप्टी सीईओ थे। विशेष अदालत और इलाहाबाद हाईकोर्ट ने पिछले साल नीरा यादव और राजीव कुमार को भ्रष्टाचार निरोधक कानून व अन्य कानूनों में दोषी ठहराया था। विशेष अदालत और हाईकोर्ट ने नीरा को दोनों मामलों में तीन तीन साल के कारावास की सजा दी थी। दोनों सजाएं अलग अलग चलाने का आदेश दिया था। जबकि राजीव कुमार को दोनों अदालतों से तीन वर्ष के कारावास की सजा मिली थी। कोर्ट ने नीरा पर डेढ़ लाख व राजीव पर पचास हजार का जुर्माना भी किया था। दोनों ने इसके खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में अपील की थी।
बुधवार को न्यायमूर्ति कुरियन जोसेफ व न्यायमूर्ति आर भानुमती की पीठ ने सजा के खिलाफ दाखिल नीरा यादव व राजीव कुमार की याचिकाएं खारिज करते हुए यह फैसला सुनाया। कोर्ट ने नीरा यादव की दोनों मामलों में दी गई सजा एक साथ चलाने की गुहार भी ठुकरा दी। कोर्ट ने कहा कि दोनों मामले अलग अलग हैं। एक मामला पद का दुरुपयोग कर स्वयं और अपनी बेटियों के नाम भूखंड आवंटित करने व अन्य अनियमितताएं करके साइट प्लान बदलने का है और दूसरा मामला नोएडा के सीईओ पद का दुरुपयोग करते हुए राजीव कुमार के साथ साजिश करके उसे (राजीव कुमार) भूखंड आवंटित करने का है।
कोर्ट ने कहा मामले के आरोपों, तथ्यों और परिस्थितियों पर विचार करने के बाद उन्हें दोनों सजा को एक साथ चलाने का आदेश देना न्यायोचित नहीं लगता। कोर्ट ने कहा कि बिना किसी सिद्धांत के न्यायिक विवेकाधिकार का इस्तेमाल कर दोनों सजाएं एक साथ चलाने का निर्देश देना भ्रष्टाचार निरोधक कानून और सीआरपीसी के प्रावधानों के खिलाफ होगा।
ब्यूरोक्रेसी में बड़े पैमाने पर है भ्रष्टाचार
सुप्रीम कोर्ट ने ब्यूरोक्रेसी में भ्रष्टाचार पर चिंता जताते हुए फैसले में कहा है कि ये कड़वी सच्चाई है कि ब्यूरोक्रेसी के वर्तमान तंत्र में भ्रष्टाचार सभी तरफ व्यापक रूप में फैला है। यह भी हकीकत है कि पैसे वाले और ताकतवर लोग ट्रायल और सजा को रोकने या उसमें देरी करने की कोशिश करते हैं। हालांकि भाग्यवश मौजूदा मामला इसका अपवाद बन कर उभरा है।
सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर सीबीआइ ने दर्ज किया था मामला
नोएडा इंटरप्योनर्स एसोसिएशन की जनहित याचिका पर सुनवाई करते हुए 20 जनवरी 1998 को कोर्ट ने सीबीआइ जांच के आदेश दिये थे। इसके बाद सीबीआइ ने 26 फरवरी 1998 को नोएडा की सीईओ नीरा यादव व अन्य अधिकारियों के खिलाफ एफआइआर दर्ज की थी। ये मामला 10 जनवरी 1994 से 8 नवंबर 1995 के बीच नोएडा में भूखंड आवंटन का है। एफआइआर में आरोप था कि नीरा यादव ने अन्य अधिकारियों के साथ साजिश रच कर अपने पद का दुरुपयोग करते हुए नोएडा में भूखंड आवंटन और उनके कन्वर्जन में अनियमितताएं की थीं।
क्या है मामला
अभियोजन पक्ष के मुताबिक नीरा यादव ने नोएडा की सीईओ रहते हुए पहले सेक्टर 32 में 300 मीटर का प्लाट बी-002 लाटरी से निकाला। आवंटन के एक हफ्ते के बाद ही उन्होंने किसी दूसरे विकसित सेक्टर मे कन्वर्जन के जरिये दूसरा प्लाट आवंटित करने का आवेदन कर दिया। उनके आवेदन पर सेक्टर 32 का प्लाट बी-002 सेक्टर 14ए में 450 वर्गमीटर के प्लाट 26 में कन्वर्ट कर दिया गया।
इतना ही नहीं नीरा यादव के निर्देश पर प्लाट 26,27 और 28 का लेआउट प्लान बदला गया और प्लाट का साइज 450 से बढ़ा कर 562.50 किया गया। नीरा यादव ने स्वयं को लाभ पहुंचाते हुए इसे मंजूरी दी। इसी तरह नीरा ने अपनी दोनों बेटियों के नाम भूखंड और दुकान आवंटित करने और उसे कन्वर्ट करने में पद का दुरुपयोग किया और स्वयं व बेटियों को अनुचित लाभ पहुंचाया।
नीरा सरेंडर कर चुकी हैं प्लाट
सजा माफी की अपील करते हुए नीरा यादव की ओर से सुप्रीम कोर्ट को बताया गया था कि उन्होंने दिसंबर 2013 में ही सेक्टर 14ए का प्लाट 26 और उस पर बनी इमारत नोएडा अथारिटी को सरेंडर कर दी है। यह भी कहा था कि वे कभी रिफंड का दावा नहीं करेंगी। इन्हीं दलीलों पर कोर्ट ने सजा तीन साल से घटा कर दो दो साल कर दी है।
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