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G20 Summit: भारत ने इन कारणों से डिजिटल इकोनॉमी पर ओसाका डिक्लेरेशन से बनाई दूरी

भारत ने डिजिटल इकोनॉमी पर ओसाका घोषणा पत्र पर हस्‍ताक्षर करने से इनकार कर दिया है। आइये उन वजहों पर नजर डालते हैं जिनके कारण भारत ने इससे दूरी बनाने का फैसला किया है...

By Krishna Bihari SinghEdited By: Published: Sat, 29 Jun 2019 02:01 PM (IST)Updated: Sat, 29 Jun 2019 02:32 PM (IST)
G20 Summit: भारत ने इन कारणों से डिजिटल इकोनॉमी पर ओसाका डिक्लेरेशन से बनाई दूरी
G20 Summit: भारत ने इन कारणों से डिजिटल इकोनॉमी पर ओसाका डिक्लेरेशन से बनाई दूरी

नई दिल्‍ली [जागरण स्‍पेशल]। भारत ने डिजिटल इकोनॉमी पर ओसाका घोषणा पत्र पर हस्‍ताक्षर करने से इनकार कर दिया है। इस संयुक्‍त घोषणा पत्र पर हालैंड, स्‍पेन, थाइलैंड, सिंगापुर समेत दुनिया के 24 देशों और समूहों ने दस्‍तखत किए हैं। भारत के साथ साथ दक्षिण अफ्रीका, इंडोनेशिया समेत कई अन्‍य देशों ने भी दूरी बनाई है। घोषणा पत्र के पक्ष में दलील दी जा रही है कि डिजिटल इकोनॉमी से वैश्विक अर्थव्‍यवस्‍था को मजबूती मिलती है और लोगों को भी फायदा होता है। हालांकि, भारत में इसे लेकर नीति नियंताओं की राय अलग है। आइये उन वजहों पर नजर डालते हैं जिनके कारण भारत ने इससे दूरी बनाने का फैसला किया है।

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डॉटा की सुरक्षा को लेकर चिंता
आमतौर पर दिग्गज अंतरराष्ट्रीय कंपनियां विदेशी सर्वरों में ग्राहकों के डॉटा संग्रहीत रखती हैं। भारतीय रिजर्व बैंक इसके खिलाफ है। भारतीय रिजर्व बैंक का कहना है कि भुगतान से संबंधित सभी डेटा केवल स्थित सिस्टम में स्टोर किया जाना चाहिए। डेटा को प्रोसेसिंग के बाद ही भारत में स्टोर किया जाए। यही नहीं लेन-देन का पूरा ब्योरा डेटा का हिस्सा होना चाहिए। इसके पीछे नीति नियंताओं की दलील है कि ऐसा होने से विदेशी धरती से इसके दुरुपयोग की आशंका कम की जा सकेगी।

डॉटा की जांच पड़ताल में मिलेगी मदद
भारत में नीति नियंताओं का यह भी मानना है कि डॉटा को स्थानीय स्तर (data localisation) पर रखने से उनकी निगरानी और जांच-पड़ताल करने में मदद मिलेगी। डॉटा में सेंध को लेकर इस बारे में सरकार बेहद सतर्क है। सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रालय (IT Ministry) डॉटा की सुरक्षा को लेकर एक विधेयक संसद के मौजूदा सत्र में पेश करने वाला है। सरकार के हालिया ड्राफ्ट और बयानों से साफ है कि भले ही डॉटा अमेरिकी कंपनी द्वारा क्‍यों न इकट्ठा किए गए हों इनका संग्रहण भारत में ही होना चाहिए।

चीन ने भी बना रखे हैं नियम
भारतीय रिजर्व बैंक के साथ साथ वाणिज्‍य मंत्रालय के मसौदे से साफ है कि फेसबुक, गूगल और अमेजन जैसी बहुराष्‍ट्रीय कंपनियों को भारतीयों के संदेशों, सर्च और खरीदारी से संबंधित डॉटा को भारत में ही संग्रहित करना होगा। हालांकि आरबीआई ने कुछ मामलों, खास तौर पर विदेश में लेनदेन के लिए घरेलू डेटा की एक कॉपी को विदेश में भी स्टोर रखने की बात कही है। डॉटा की सुरक्षा को लेकर चिंतित होने वालों में भारत ही नहीं चीन भी शामिल है। चीन ने विदेशी सेंध से डॉटा की सुरक्षा को लेकर सख्‍त नियम बनाएं हैं।

विदेशी कंपनियों पर नियंत्रण होगा आसान
भारत सरकार की दलील है कि डॉटा के स्‍थानीयकरण (data localisation) से आंकड़ों तक कानून की पहुंच आसान होगी। मौजूदा वक्‍त में भारत को अमेरिकी कंपनियों द्वारा नियंत्रित भारतीयों का डेटा हासिल करने के लिए अमेरिका के साथ 'पारस्परिक कानूनी सहायता संधियों' (एमएलएटी) की मदद लेनी पड़ती है। सरकार का मानना है कि भारत में डॉटा संरक्षण से विदेशी कंपनियों पर नियंत्रण आसान होगा और उन पर मनमाफिक टैक्‍स भी लगाया जा सकेगा। यही वजह है कि रिलायंस और पेटीएम समेत अन्‍य भारतीय कंपनियां डॉटा स्‍थानीयकरण के समर्थन में हैं।  

विदेशी निगरानी पर लगेगी लगाम 
सरकार का मानना है कि डॉटा को देश में ही सुरक्षित रखने से विदेशी निगरानी और डॉटा चोरी को रोकने में मदद मिलेगी जिससे राष्ट्रीय सुरक्षा को मजबूती मिलेगी। हालांकि, गूगल (Google), मास्टरकार्ड (Mastercard), वीजा और अमेजन (Visa and Amazon) जैसी अमेरिकी कंपनियां भारत समेत दुनियाभर में डेटा के स्थानीयकरण (data localisation) के खिलाफ लॉबीइंग कर रही हैं। विदेशी कंपनियों का कहना है कि स्थानीय स्तर पर आंकड़े रखने की अनिवार्यता से उन्हें अतिरिक्त निवेश करना होगा। इससे उनका खर्च बढ़ जाएगा। वहीं भारत का कहना है कि डेटा विकासशील देशों के लिए एक नए तरह का धन है। 


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