नमो की सियासी यात्रा में बाढ़ पर उफनाएगी राजनीति
लोकसभा चुनाव के दौरान भी मोदी इस इलाके में स्टार प्रचारक के रूप में आए थे। उन्होंने वादे भी किए थे। कोसी के लोगों को उनके प्रधानमंत्री बनने के बाद ज्यादा उम्मीद जगी है।
भागलपुर [संजय सिंह]। नदियों का किनारा तोड़कर बहना कोई नई बात नहीं है। सदियों से यह होता आया है। बाढ़ न तो तटबंधों से रुकी है और ना बांधों से रुकेगी। हां, इन मुद्दों पर बरसों से राजनीति होती आई है।
18 अगस्त को कोसी अंचल में देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का आना इसी राजनीति का हिस्सा है। आने की तारीख भी सोच-समझकर रखी गई है। 18 अगस्त को ही कुसहा त्रासदी के दौरान कोसी व सीमांचल का आर्थिक-सामाजिक जीवन बेपटरी हो गया था।
कुसहा त्रासदी के दौरान केंद्र की कांग्रेस सरकार ने लंबे-चौड़े वादे किए थे। पर धरातल पर कुछ नजर नहीं आता। लोकसभा चुनाव के दौरान भी मोदी इस इलाके में स्टार प्रचारक के रूप में आए थे। उन्होंने वादे भी किए थे।
कोसी के लोगों को उनके प्रधानमंत्री बनने के बाद ज्यादा उम्मीद जगी है। उधर सीमांचल के लोगों में इस बात का मलाल है कि मोदी पूर्व बिहार और कोसी अंचल में तो जा रहे हैं पर सीमांचल पर उनकी नजर नहीं पड़ रही। 2008 में 18 अगस्त को कुसहा त्रासदी ने कोसी अंचल का नजारा ही बदल दिया था। इस अंचल में कोसी मैया की इस विनाश लीला की वजह से अचानक हजारों एकड़ जमीन को लकवा मार गया था।
सफेद बालू से कूप, तालाब, नदी-नाले पट गए थे। इस इलाके से हरियाली छिन गई थी। लोग दाने-दाने को मोहताज थे। हर ओर से मदद के हाथ उठे। नीतीश के शासनकाल में कोसी की तस्वीर और तकदीर बदलने का प्रयास किया गया। कुछ हद तक इसमें सफलता भी मिली। लेकिन अब भी यह इलाका आर्थिक व सामाजिक रूप से पिछड़ा हुआ है। बारिश के मौसम में यहां के लोग बाढ़ के डर से सहमे रहते हैं।
पुरानी है कोसी की समस्या
कोसी के लिए यह कोई नई समस्या नहीं थी। छह अप्रैल 1947 में अंतरिम केंद्रीय सरकार के मंत्री और वैज्ञानिक सीएच भाभा ने बाढ़ पीडि़तों को संबोधित करते हुए कहा था कि मुझे पीडि़तों का सामना करने में लज्जा का
अनुभव होता है, झिझक होती है।
इस सम्मेलन में देशरत्न डॉ राजेंद्र प्रसाद और बिहार के नेता अनुग्रह नारायण सिन्हा भी मौजूद थे। इस सम्मेलन में यह घोषणा की गई थी कि हाई डैम का निर्माण कर समस्या का समाधान किया जाएगा। लेकिन ऐसा कुछ हुआ नहीं।
पिछले चुनाव में भाजपा की झोली रही खाली
पिछले लोकसभा चुनाव के दौरान भाजपा के स्टार प्रचारक रहे नरेंद्र मोदी को इस इलाके में घूमने का पूरा मौका मिला था। वे सहरसा, फारबिसगंज और पूर्णिया में सभा कर बाढ़ की समस्या से अवगत हुए थे।
अपने भाषण के दौरान उन्होंने इस इलाके के लोगों से अटल बिहारी वाजपेयी के नदी जोड़ो अभियान के सपनों को पूरा करने का आश्वासन भी दिया था। बदले में उन्होंने भाजपा उम्मीदवारों को जिताने की अपील की थी।
लेकिन, कोसी और सीमांचल में भाजपा का कोई उम्मीदवार जीत नहीें पाया। अकेले सुपौल के ही तीन लोग लोकसभा चुनाव में अपनी किस्मत आजमा रहे थे। भाजपा के राष्ट्रीय प्रवक्ता सैयद शहनवाज हुसैन भागलपुर से, कामेश्वर चौपाल सुपौल से तथा पूर्व गृह सचिव आरके सिंह आरा से अपनी किस्मत आजमा रहे थे।
सफलता सिर्फ आरके सिंह की झोली में गिरी। मधेपुरा से जदयू के राष्ट्रीय नेता शरद यादव चुनाव हार गए। यहां से पप्पू यादव जीते। तब पप्पू ने राजद के टिकट पर चुनाव लड़ा था। पप्पू यादव की पत्नी रंजीत रंजन ने कांग्रेस के टिकट पर सुपौल से जीत हासिल की थी।
लोकसभा चुनाव में भी कुसहा त्रासदी को चुनावी मुद्दा बनाया गया था। इधर सुशासन के साथ विकास के मुद्दे के आगे कुसहा त्रासदी का मुद्दा टिक नहीं पाया। मोदी के आगमन को लेकर सीमांचल के लोगों को भी बड़ी उम्मीद थी। इस इलाके के लोगों का मानना था कि सीमांचल अल्पसंख्यक बहुल इलाका है। अब तक अल्पसंख्यकों को अपना वोट बैंक बनाने के लिए भाजपा ने कोई बड़ा राजनीतिक हथकंडा नहीं अपनाया है। पिछले लोकसभा चुनाव में पूर्णिया, कटिहार और अररिया सीट पर भाजपा का कब्जा था। सिर्फ किशनगंज ही ऐसा इलाका था, जहां से कांग्रेस के उम्मीदवार चुनाव में विजयी हुए थे।
पूरे देश में चल रही नमो लहर का सीमांचल की राजनीति पर कोई असर नहीं पड़ा था। सीमांचल की तीन सीटें भी भाजपा के हाथ से फिसल गईं। सीमांचल की राजनीति से जुड़े लोगों का मानना है कि इसी वजह से अपनी बिहार यात्रा से मोदी ने पूर्णिया का नाम हटा दिया। लेकिन, भाजपा का कहना है कि यह हवा विरोधियों द्वारा फैलाई जा रही है।