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उत्तराखंड का पीसी लूण और दैंदूसा..नमक का उपयोग ऐसा जो मुंह में पानी लाये

नमक किसी भी व्यंजन को स्वाद प्रदान करता। आप कितना तीखा खाना पसंद करेंगे यह नमक की मात्रा पर निर्भर करता है।

By Jagran News NetworkEdited By: Published: Sat, 16 Feb 2019 07:50 PM (IST)Updated: Sat, 16 Feb 2019 07:50 PM (IST)
उत्तराखंड का पीसी लूण और दैंदूसा..नमक का उपयोग ऐसा जो मुंह में पानी लाये
उत्तराखंड का पीसी लूण और दैंदूसा..नमक का उपयोग ऐसा जो मुंह में पानी लाये

नई दिल्ली [जागरण स्पेशल]। आप कितना तीखा खाना पसंद करेंगे यह नमक की मात्रा पर निर्भर करता है। यह हमारे खाने खजाने में खाने को और स्वादिष्ट और तीखा बनाने के लिए हल्के पीले नमक धातु को कई तरह से प्रयोग में लाने के तरीके हैं। ये तरीके आपके खाने को और भी लजीज बना देंगे और आप उंगलियां चाटते रह जाओगे।

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नमक के पहाड़ी जायके-पीसी लूण व दैंदूसा

यदि आप खाने के शौकीन हैं तो उत्तराखंड आइए और लीजिए पहाड़ी जायकों में नमक के विभिन्न प्रयोगों का आनंद। सबसे पहले, खाने के स्वाद में नमक का अहम योगदान है, यानि, नमक बिना सब सून। खाने खिलाने की शौकीन क्लेमन टाउन निवासी विमला रावत कहती हैं कि उन्हें आज भी मां के हाथ वह पीसी लूण का स्वाद याद है। पीसी लूण के बारे में बात करते करते उनके मुंह में पानी भर आया। वह बताती हैं कि मां किस तरह से पहाड़ी नमक को अलग अलग मसालों व बुटियों के साथ पीस कर कई तरह की स्वादिष्ट चटनी तैयार करती थीं। और उनका सदाबार पसंदीदा दैंदूसा आज भी घर में हर समय तैयार मिलता है। दैंदूसा की विधि उन्होंने मां से सीखी थी और मां ने यह नानी से यानि दैंदूसा एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी को पास किया जाता रहा और हर पीढ़ी का यह चटपटा दैंदूसा पसंदीदा व्यंजन रहा है।

दैंदूसा व पीसी लूण की विधि

दैंदूसा को तैयार करने की विधि के बारे में वे बताती हैं आज सिल-बट्टा हर रसोई से गायब हो गया है, लेकिन पीसा लूण व दैंदूसा जैसे नमक की स्वादिष्ट चटनी के चाहने वालों के घरों में आज भी सिल-बट्टा किचन का अहम हिस्सा बना हुआ है। यानि हर पहाड़ी घर में सिल-बट्टा मौजूद है।

तो आइए...आपको दैंदूसा व पीसा लूण की विधि के बारे में बताएं....

सिल-बट्टे धोकर आप इसे धूप में सूखने के लिए रख दें। तब तक आप सरसों के बीज, पहाड़ी नमक और अपने किचन गार्डन से हरी मिर्च, लहसून की पत्ते, हरा धनिया, कच्ची अदरक तैयार रखें। आइए अब तक सिल बट्टा सूख चुका है। दैंदूसा की यह सारी सामग्री लेकर आप अब इत्मिनान से सिल बट्टा लेकर बैठ जाइए और पहाड़ी नमक को हल्का पीस लें और फिर हरी मिर्च, हरा धनिया, कच्चा अदरक के बारीक काट कर, लहसून के पत्ते व सरसों के बीज को पीसते रहिए।

जब तक  सामग्री का बारीक लेप न तैयार हो जाए, बस पीसते रहिए। यह काम पहाड़ी महिलाएं बड़े चाव व दिल से करती हैं। जब बारीक लेप तैयार हो जाए तो आपका चटपटा दैंदूसा परोसने को तैयार है। सर्दियों में दैंदूसा को मक्की या मंडुवे की रोटी के साथ परोसिए और  धूप में बैठ कर आनंद लीजिए। और यदि आप गर्मी से बेहाल हैं तो दैंदूसा को केले, संतरे, सेब या किसी भी फल को काट कर दैंदूसा को अच्छी तरह मिला लें, लो आपकी चटपटी फ्रूट चाट तैयार है, आप भी खाइए, बच्चों व मेहमानों को भी खिलाइए।

देहरादून के शिवनगर कालोनी की रेखा कोठारी बीते दिनों को याद कर कहती हैं कि उन्हें याद है मां सर्दियों में स्कूल से लौटने के बात रोटी  पर दैंदूसा का लेप लगाकर खाने को देती थी और वह उसे कितने मजे से उसे खाती थी। कहती है स्कूल की सारी थकान एकदम दूर हो जाती थी। पेट भर जाता था पर मन नहीं भरता था। आज वह देहरादून में आकर इसके लिए तरसती हैं पर भगवान का शुक्र है कि चटपटा दैंदूसा व पीसी लूण आज बजार में उसी स्वाद के साथ उपलब्ध है। वह मजबूरी बताते हुए कहती है कि न अब घर में सिल-बट्टा रहा और न ही किचन गार्डन। बस अब बाजार पर निर्भर हैं।

कहानी अपनी-अपनी

पीसा लूण व दैंदूसा कैसे पहाड़ी व्यंजन का हिस्सा बना, इसका कोई ऐतिहासिक प्रमाण नहीं है, लेकिन लोगों कि इस बारे में अपनी अपनी कहानियां हैं। विमला रावत कहती हैं सर्दियों में पहाड़ी लोग कम पानी पीते थे, इससे शरीर में पानी की कमी का डर रहता था, नमक आपकी प्यास बुझाता है, इसलिए लोग ज्यादा से ज्यादा नमक का प्रयोग करते थे औऱ  नमक को विभिन्न बुटियों बीजों के साथ पीस कर नए व्यंजन तैयार किए जाते रहे। वहीं दूसरी ओऱ कइयों का मानना है कि शरीर में विभिन्न तत्वों की पूर्ति के लिए नमक के साथ जड़ी बुटियों का सेवन किया जाता रहा है।

इससे पाचन शक्ति को भी बढ़ावा मिलता है। वहीं, एक पक्ष और है जिसका मानना है कि पहाड़ों में सब्जी व दालों की कमी के कारण नमक के आसानी से उपलब्ध रहता, इसे आसपास मौजूद पहाड़ी जड़ी बुटियों के साथ पीस कर लजीज चटनी तैयार हो जाती। पर्वतीय क्षेत्रों में उपलब्ध दैंदूसा की सामग्री आसानी से बारह माह उपलब्ध रहने के कारण यह सस्ता व पसंदीदा पहाड़ी थाली का एक महत्वपूर्ण हिस्सा बना गया। और आज भी इसके बिना पहाड़ी खाना आधा अधूरा सा लगता है।

शौक से बाजार तक की कहानी

रेखा कोठारी आज भी अपने दिनभर के कामकाज निपटा कर सिल-बट्टा लेकर दैंदूसा तैयार करने को बैठ जाती है, वह बड़े चाव से इसे तैयार करती क्योंकि यह उनके पति व बच्चों को बहुच पसंद है। वह बताती है कि वह दैंदूसा की इतनी दीवानी है कि शादी के बाद ही वह मायके से सिल-बट्टा लेकर आ गई थी।

कोठारी अब दैंदूसा को घर के सदस्य तक ही सीमित नहीं रखना चाहती। उन्होंने उसे पहाड़ से बाहर निकाल राष्ट्रीय व अंतरराष्ट्रीय स्तर पर एक पहचान बनाने की ठान ली है और इसमें वह कामयाब भी रही। अपने इंस्टाग्राम हैंडल के जरिए वह अब इस काम में जुट गई हैं। फॉलोअर्स से मिल रहे रिस्पांस से वह उत्साहित भी है। महिला नवजागरण समिति अब उन्हें कच्ची सामग्री उपलब्ध करा रही है ओर वह सौ रुपए प्रति किलो के हिसाब से चार्ज कर समिति को दैंदूसा उपल्ब करा रही है। बाजार से भारी मांग को पूरा करना अब मुश्किल हो रहा है।

पीसी लूण व दैंदूसा ऑनलाइन पर

रेखा के पीसे लूण व दैंदूसा ने अब अंतरराष्ट्रीय बाजार में भी जगह बना ली है। पास ही हल्द्वानी शहर में रोकेश जोशी व उनकी पत्नी किरण द्वारा संचालित स्वयं सहायता समूह के माध्यम से नमक की विभिन्न चटपटे व्यंजन बाजार में उपलब्ध करा रहे हैं। राकेश जोशी बताते हैं कि उन्होंने हाल ही में यहां आयोजित एक मेले में उन्होंने नमक की जड़ी बुटियों से तैयार चटनियों की प्रदर्शनी लगाई और शौकीनों का भारी उत्साह व रिस्पांस देख वे स्वंय उत्साहित हैं। पहाड़ की विभिन्न प्रकार से तैयार नमक की चटनियों की मांग अब ऑनलाइन भी आने लगी है। पहाड़ीविरासत नामक संस्था भांग का नमक एवं लहसून का नमक, जबकि ईजाफूड चार स्वादों में नमक की चटनी को लेकर ऑनलाइन बाजार में उतरी है।

ईजाफूड की सह-मालिक कहती हैं कि पहाड़ी गांव में अब महिला सहायता समूहों के माध्यम से विभिन्न प्रकार के नमक के फ्लेवर तैयार कर बाजार में बेचा जा रहा है। इससे महिलाओं को भी रोजी रोटी का सहारा मिला है और नमक के पहाड़ी स्वाद राष्ट्रीय व अंतरराष्ट्रीय बाजार में खूब लोकप्रिय भी हो रहे हैं। हिमालयन फ्लेवर्ड साल्ट्स नामर संस्था ने खैरना-अल्मोड़ा हाई-वे पर एक स्वयं सहायता समूह के माध्यम से लाखोरी पीली मिर्च सॉल्ट तैयार कर बाजार में उतारा है। लाखोरी एक स्थानीय मिर्च प्रजाति है जो अपने  स्वाद के साथ कई गुणों के लिए भी जानी जाती है।

हिमालयन फ्लेवर्ड सॉल्ट के जनक खनायत नेगी ने बताया कि नमक के विभिन्न जायके तैयार करने के लिए स्थानीय महिलाओं ने अब पुदीना, धनिया, अदरक, लहसून, सेसम के बीच, भांग के बीच की खेती करनी आरंभ कर दी है। नेगी बताते हैं कि वे स्थानीय महिलाओं से कच्ची सामग्री खरीद रहे हैं। इससे उनको कच्चा माल आसानी से मिल रहा और महिलाओं को उनकी उपज के अच्छे दाम। दोनों ही पक्ष पहाड़ी नमक के स्वादों से फलफूल रहे हैं।

नेगी बताते हैं कि नमक की ये विभिन्न चटपटी चटनियां पहाड़ी नमक से ही तैयार होती रहीं है। अब प्रश्न है कि क्या इन्हें बाजार में उपलब्ध पैकेट के नमक से भी तैयार किया जाए या नहीं। नेगी कहते है कि हिमालयन पिंक सॉल्ट में 88 माइक्रोन्यूट्रियेंट्स हैं जबकि टेबल सॉल्ट में ये सब उपलब्ध नहीं हैं। हिमालयन पिंक सॉल्ट न केवल अलग स्वाद प्रदान करता बल्कि स्वास्थ्य के लिए काफी फायेदा वाला भी है।


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