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कोरबा में गर्भवती महिला को खाट में लेटा कर पांच किलोमीटर पदयात्रा, रास्ते में बच्चे का जन्म

एक गर्भवती महिला को प्रसव पीड़ा होने पर अस्पताल ले जाने से पहले एंबुलेंस तक पहुंचाने के लिए खाट में लेटा कर पांच किलोमीटर की पदयात्रा करनी पड़ी।

By Pooja SinghEdited By: Published: Thu, 13 Aug 2020 01:00 PM (IST)Updated: Thu, 13 Aug 2020 01:00 PM (IST)
कोरबा में गर्भवती महिला को खाट में लेटा कर पांच किलोमीटर पदयात्रा, रास्ते में बच्चे का जन्म
कोरबा में गर्भवती महिला को खाट में लेटा कर पांच किलोमीटर पदयात्रा, रास्ते में बच्चे का जन्म

कोरबा, [देवेन्द्र गुप्ता]। एक गर्भवती महिला को प्रसव पीड़ा होने पर अस्पताल ले जाने से पहले एंबुलेंस तक पहुंचाने के लिए खाट में लेटा कर पांच किलोमीटर की पदयात्रा करनी पड़ी। इस दौरान रास्ते में ही बच्चे का जन्म हो गया। यह मामला पाली ब्लॉक के सुनाईपुर गांव का है। सड़क  खराब होने की वजह से एंबुलेंस  यहां तक नहीं पहुंच पाता है। गुरुवार की सुबह यहां रहने वाले रघुनाथ धनुहार की गर्भवती पत्नी सुशीला बाई  को प्रसव पीड़ा हुई तो गर्भवती महिला को खाट में उठाकर घर से जैसे ही निकले थे कि रास्ते में ही डिलीवरी हो गई और एक स्वस्थ बालक को जन्म दिया। डिलीवरी हो जाने के पश्चात गर्भवती की हालत अति गंभीर हो जाने पर आनन-फानन में महतारी एक्सप्रेस '102' से संपर्क साधने की कोशिश की गई, लेकिन संपर्क नहीं हो पाया।

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इसके बाद 112 को फोन लगाया गया और किसी तरह सूचना देकर एंबुलेंस महतारी एक्सप्रेस बुलाई गई। एंबुलेंस तो पोटपानी पहुंच गई, लेकिन पोटापानी से सोनई पुर तक जाने का रास्ता ऐसा नहीं है, जिस पर चारपहिया वाहन गुजर सके। लिहाजा, सुशीला बाई को उसके पति ने एक अन्य ग्रामीण की मदद से खाट पर लेटाकर किसी तरह पोटापानी तक पहुंचाया। यहां खड़ी महतारी एक्सप्रेस से सुशीला बाई को पाली प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र पहुंचाया गया। गांव में जब भी कोई अस्वस्थ होता है, तो लोग इसी तरह खाट की एंबुलेंस बनाकर मरीज को अस्पताल पहुंचाते हैं। कई बार उपचार में देरी की वजह से रास्ते में ही मरीज दम तोड़ देते हैं।

यहां रहने वाले ग्रमीणों को सड़क जैसी आधारभूत संरचना के अभाव में ऐसी दिक्कतें आए दिन झेलनी पड़ती है। प्रसव पीड़ा से तड़पती गर्भवतियों को जल्द से जल्द अस्पताल पहुंचाने की जरूरत होती है, लेकिन सड़क के अभाव में महिलाओं के लिए शुरू की गई महतारी  एक्सप्रेस सेवा भी अनुपयोगी साबित होती है। स्वास्थ्य सुविधा की बेहतरी को लेकर शासन भले ही लाख दावे कर रही हो, पर आज भी सूबे के कई गांव ऐसे हैं, जहां तक एंबुलेंस नहीं पहुंच सकती। पोटापानी व सोनईपुर के बीच के पांच किलोमीटर की सड़क वर्षो बाद भी दुरुस्त नहीं हो सका है। पहाड़ पर बसे सोनईपुर तक पहुंचने का एकमात्र साधन पदयात्रा है। इस पथरीले रास्ते पर मोटरसाइकिल चलना भी मुश्किल है।

संकट में धनुहार आदिवासियों का परिवार 

300 आबादी वाले इस गांव में धनुहार आदिवासियों के 100 परिवार रहते हैं। गर्भवती महिलाओं को समय पर अस्पताल पहुंचाने के लिए देहाती एंबुलेंस यानी खाट की डोली बनाई जाती है और दो लोग इसे कंधे पर उठाकर पदयात्रा करते हुए पहाड़ी रास्ते से पोटापानी तक पहुंचते हैं।

यहां विफल है जननी सुरक्षा योजना 

प्रसूती व नवजात को खतरे से बचाने के लिए शासन की ओर से सरकारी अस्पतालों में 'जननी सुरक्षा योजना' का संचालन किया जा रहा है। प्रसूती का सहज ढंग से अस्पतालों में आकर प्रसव कराने वाली बाई व अन्य के लिए प्रोत्साहन राशि दी जाती है। इतना ही नहीं, प्रसूतियों को अस्पताल तक लाने में शासन ने महतारी एक्सप्रेस का संचालन शुरू किया है। बावजूद इसके गांवों तक पहुंचने का मार्ग दुरुस्त नहीं होने के कारण इन सुविधाओं से कई क्षेत्र के लोग वंचित हैं।


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