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नक्सलियों के गढ़ रहे सुकमा की पहली आदिवासी बिटिया बनेगी डॉक्टर, पढ़ें संघर्ष की कहानी

आज उसका पूरा परिवार ही नहीं, पूरा जिला उसकी सफलता की तारीफ करते नहीं थक रहा है।

By Arun Kumar SinghEdited By: Published: Fri, 24 Aug 2018 11:13 PM (IST)Updated: Sat, 25 Aug 2018 12:22 PM (IST)
नक्सलियों के गढ़ रहे सुकमा की पहली आदिवासी बिटिया बनेगी डॉक्टर, पढ़ें संघर्ष की कहानी
नक्सलियों के गढ़ रहे सुकमा की पहली आदिवासी बिटिया बनेगी डॉक्टर, पढ़ें संघर्ष की कहानी

सुकमा [जेएनएन]। नक्सलियों के चलते शिक्षा को लेकर विपरीत हालातों के बीच छत्तीसगढ़ में सुकमा जिले की पहली आदिवासी छात्रा माया कश्यप अब डॉक्टर बनकर गरीब आदिवासियों की सेवा करेगी। उसका चयन एमबीबीएस में अंबिकापुर कॉलेज के लिए हुआ है। सिर से पिता का साया उठने के बाद मां के संघर्षों को उसने जाया नहीं जाने दिया। आज उसका पूरा परिवार ही नहीं, पूरा जिला उसकी सफलता की तारीफ करते नहीं थक रहा है।

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दोरनापाल निवासी माया ने बताया कि सरकारी स्कूल से पढ़ाई शुरू की। बचपन से ही डॉक्टर बनने की इच्छा थी। 2009 में पिताजी गुजर गए। 12 हजार रुपये पेंशन में तीन बहनों, एक भाई व मां का गुजारा के साथ पढ़ाई उतनी आसान नहीं थी। लेकिन हालात से कभी हारी नहीं। परिवार के सारे लोगों का हमेशा प्रोत्साहन मिलता रहा। मेडिकल की पढ़ाई के लिए भैया अनूप व भाभी रत्ना मित्रों से रुपये की व्यवस्था कर भेज रहे हैं। पिता का सपना पूरा हो रहा है।

पढ़ाई के लिए जगह-जगह भागी
माया ने बताया कि पांचवी के बाद छिंदगढ़ स्थित नवोदय विद्यालय में चयन हुआ। 11वीं व 12वीं की पढ़ाई ओडिशा के नवोदय विद्यालय से पूर्ण की। भिलाई में एक साल रहकर नीट की कोचिंग ली। डेंटल में चयन हुआ तो लगा एमबीबीएस का सपना टूट जाएगा। फिर मेहनत की और डॉक्टरी के लिए चयन हो गया।

सुकमा में ही सेवा संकल्प
यह पूछने पर कि डॉक्टर बनकर वे कहां सेवा देना चाहेंगी, माया ने तपाक से कहा- सुकमा में। वे कहती हैं कि डॉक्टर बनकर गरीबों की सेवा करना ही उसका उद्देश्य है। यहां स्वास्थ्य सुविधा की बेहद आवश्यकता है।


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