उच्च शिक्षण संस्थानों में प्रतिस्पर्धा बढ़ाने के लिए प्रदर्शन के आधार पर मिलेगी वित्तीय मदद
उच्च शिक्षण संस्थानों को विश्वस्तरीय बनाने की छिड़ी मुहिम में सरकार ने फिलहाल एक और कदम आगे बढ़ाया है। जिसमें देश भर के सभी उच्च शिक्षण संस्थानों को अब प्रदर्शन के आधार पर ही वित्तीय सहायता प्रदान की जाएगी।
नई दिल्ली, अरविंद पांडेय। उच्च शिक्षण संस्थानों को विश्वस्तरीय बनाने की छिड़ी मुहिम में सरकार ने फिलहाल एक और कदम आगे बढ़ाया है। जिसमें देश भर के सभी उच्च शिक्षण संस्थानों को अब प्रदर्शन के आधार पर ही वित्तीय सहायता प्रदान की जाएगी। यानी जो संस्थान नामांकन, परिणाम, शोध और नवाचार जैसे क्षेत्रों में बेहतर काम करेगा, उसे अब ज्यादा पैसा मिलेगा।
यूजीसी के साथ मिलकर शिक्षा मंत्रालय ने मानकों को तय करने का शुरू किया काम
वैसे भी नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति के प्रस्तावित लक्ष्यों को हासिल करने की एक बड़ी चुनौती भी है, जिसमें शोध और नवाचार की रफ्तार को तेज करने के साथ वर्ष 2035 तक उच्च शिक्षा के सकल नामांकन अनुपात (जीईआर) को पचास फीसद तक पहुंचाने का लक्ष्य है। उच्च शिक्षण संस्थानों से जुड़े इन योजना पर शिक्षा मंत्रालय और यूजीसी ने यह काम उस समय शुरू किया है, जब नीति के अमल का काम तेजी से चल रहा है। इसमें उच्च शिक्षण संस्थानों के लिए एक नए आयोग का गठन प्रस्तावित है।
नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति में भी इसकी सिफारिश
साथ ही इसके अधीन चार नए संस्थान भी गठित होने हैं। जो वित्तीय मदद से लेकर शैक्षणिक मापदंडों का निर्धारण के साथ गुणवत्ता, नियामक और शोध आदि को लेकर अलग-अलग काम करेंगे। मौजूदा समय में यह सारा काम अकेले सिर्फ विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (यूजीसी) के पास ही है। मंत्रालय का मानना है कि नई व्यवस्था उच्च शिक्षा की गुणवत्ता को बेहतर बनाने और उन्हें विश्वस्तरीय बनाने में काफी उपयोगी साबित होगी। खासकर प्रदर्शन के आधार पर उच्च शिक्षण संस्थानों को वित्तीय मदद की व्यवस्था होने से इनके बीच प्रतिस्पर्धा भी बढ़ेगी। साथ ही मिलने वाली राशि का भी संस्थान बेहतर तरीके से इस्तेमाल करेंगे।
मौजूदा समय में बड़ी संख्या में ऐसे संस्थान है, जो अपने पैसे का समय पर इस्तेमाल नहीं कर पाते है। वहीं इस नई व्यवस्था से उच्च शिक्षण संस्थानों के फंडिग पैटर्न में पारदर्शिता भी आएगी। यूजीसी से जुड़े सूत्रों के मुताबिक उच्च शिक्षण संस्थानों को दी जाने वाली वित्तीय मदद के लिए नए मानकों को तैयार करने का काम शुरू हो गया है। जो केंद्रीय व राज्य स्तरीय संस्थानों के लिए अलग-अलग होंगे। फिलहाल इसके लिए जो आधार तय किए गए है, उनमें नामांकन दर, परिणाम का प्रतिशत, शिक्षकों की उपलब्धता, शोध और नवाचार आदि शामिल होंगे। इस नई व्यवस्था से संस्थान कम वित्तीय मदद मिलने का आरोप भी नहीं लगा सकेंगे।
बता दें कि नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति में शिक्षा पर कुल सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) का छह फीसद खर्च करने की भी सिफारिश है। हालांकि यह लक्ष्य काफी पुराना है, वर्ष 1986 में आई पहली राष्ट्रीय शिक्षा नीति में भी इसकी सिफारिश की गई थी। जबकि स्थिति यह है कि मौजूदा समय में शिक्षा पर कुल जीडीपी का करीब चार फीसद ही खर्च हो रहा है।