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FILM मोहल्ला अस्सीः आज भी 'अस्सी अड़ी' पर जुटते हैं उपन्यास के वास्तविक किरदार

मोहल्ला अस्सी फिल्म मशहूर साहित्यकार काशीनाथ सिंह के कालजयी उपन्यास काशी का अस्सी पर आधारित है। ये उपन्यास अपनी व्यंगात्मक भाषा और शैली की वजह से चर्चित हुई।

By Amit SinghEdited By: Published: Sat, 17 Nov 2018 12:13 PM (IST)Updated: Sat, 17 Nov 2018 01:07 PM (IST)
FILM मोहल्ला अस्सीः आज भी 'अस्सी अड़ी' पर जुटते हैं उपन्यास के वास्तविक किरदार
FILM मोहल्ला अस्सीः आज भी 'अस्सी अड़ी' पर जुटते हैं उपन्यास के वास्तविक किरदार

वाराणसी [जागरण स्पेशल]। भारतीय साहित्य के चर्चित कथाकार काशीनाथ सिंह के उपन्यास ‘काशी का अस्सी’ पर बनी बहुप्रतीक्षित फिल्म ‘मोहल्ला अस्सी’ सालों तक चले विवादों के बाद शुक्रवार को रिलीज हो गई। फिल्म देखने के बाद अगर कोई सबसे ज्यादा मगन रहा तो वह थे ‘अस्सी अड़ी’ के सूत्रधार भइया पप्पू (विश्वनाथ सिंह)। हों भी क्यों न, ‘मोहल्ला अस्सी’ क्या रिलीज हुई पप्पू की अड़ी पहले शो से ही सुर्खियों में आ गई है। अस्सी घाट पर मौजूद पप्पू की चाय की ये दुकान कहानी का केंद्र बिंदु है। ये दुकान यहां की भाषा शैली, संस्कृति, सभ्यता और सोच को दर्शाने वाला एक झरोखा है।

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शुक्रवार को फिल्म देखने के बाद चाय की दुकान चलाने वाले भइया पप्पू की इतराहट तो आज देखने लायक थी। फिल्म जिस उपन्यास ‘काशी का अस्सी’ पर आधारित है, उसके सभी पात्र वास्तविक हैं। इनमें से कुछ आज भी वाराणसी में रह रहे हैं, जबकि कुछ का निधन हो चुका है। फिल्म रिलीज होने के बाद इन सबने बस एक ही बात कही, 'गुरु जी, आज अस्सी अड़ी बुलंद हो गयल और तोहार पपुआ देवानंद हो गयल। सब काशी भइया (काशीनाथ सिंह) क प्रताप हौ। अइसन कलम चलउलन कि कमाल हो गयल। इहां से लेके लंदन तक धमाल हो गयल। ला नींबू क चाय लड़ावा। काम-धंधा होत रही, पहिलै फिलिम देख के आवा।’

लगभग ऐसे ही मिजाज में डा. गया सिंह भी बतकही साज रहे हैं। कुर्ते का कफ कोहनी तक चढ़ाकर बांह भांज रहे हैं। 'हौ कोई भिड़ावे वाला त सामने आवे, अस्सी अड़ी क जोड़ बतावे। काशी भइया के साधुवाद कि अइसन कलम चलउलन, डाक्टर गया सिंह के नेशनल से इंटरनेशनल बनउलन। हम त एतने कहब भाई कि जे न देखलस ई सिनेमा ऊ बहुते पछताई। इहां त रोज मिलेला गया सिंह से तनी, फिलिमियो में देख आवा।'

काशी हिंदू विश्वविद्यालय (BHU), हिंदी विभाग के माथे की बिंदी प्रो. रामाज्ञा राय भी फिल्म देखने के बाद मस्त हैं। शायद ही अड़ी पर कोई बंदा बचा हो, जिसको उन्होंने फिल्म का डायलॉग न सुनाया हो। असली बनारस तो पर्दे पर है, इस राय से सुनने वालों को अवगत न कराया हो। प्रोफेसर साहब का कहना है कि खांटी बनारसी तो अपनी जगह, जो काशी के सिकमी किराएदार हैं उन्हें भी यह फिल्म जरूर देखनी चाहिए। बनारसीपन खरीद-बिक्री की चीज नहीं। यह तथ्य जरूर समझ लेना चाहिए। फिल्म में दिखाया गया है कि सांप्रदायिक उन्माद जब समाज में घुस जाता है, तब वह कितना खतरनाक साबित होता है।

फिल्म पर उपन्यास के लेखक काशीनाथ की प्रतिक्रिया
काशी का अस्सी उपन्यास के लेखक और मशहूर साहित्यकार प्रो. काशीनाथ सिंह फिल्म मोहल्ला अस्सी से काफी प्रभावित हैं। उनका कहना है कि पंडा पं. धर्मनाथ पांडेय की भूमिका को जीवंत करने वाले पंजाबी पृष्ठभूमि के सनी देओल अपने एंग्री यंग मैन की इमेज के विपरीत बनारसी पंडा व संस्कृत विद्वान की भूमिका में जमे हैं। सनी देओल की पत्नी सावित्री के रूप में साक्षी तंवर के अभिनय को भी उन्होंने सराहा है। कन्नी गुरु के किरदार में रवि किशन ने कमाल ही कर दिया, लेकिन इसे उनके पूरबिया कनेक्शन का असर माना जा सकता है। फैसल रशीद भी बार्बर बाबा की भूमिका में प्रभाव छोड़ते हैं।

विदेशी छात्राओं ने भी उठाया लुत्फ
वाराणसी में सिगरा स्थित मॉल में शुक्रवार को रिलीज फिल्म ‘मोहल्ला अस्सी’ का लुत्फ बनारसियों के साथ ही विदेशी छात्राओं ने भी उठाया। पूछने पर बताया कि फिल्म देख कर बहुत मजा आया। डायलॉग डिलीवरी बहुत शानदार है। हमने पहली बार हिंदी फिल्म देखी, अच्छा लगा। विदेशी छात्राओं के दल के साथ मौजूद प्रियंका ने बताया कि ये लोग तीन माह से हिंदी सीख रहे हैं। फिल्म दिखाने का मकसद यह है कि ये सब बनारस को अच्छी तरह से जान सकें। हिंदी डायलाग सुन कर कुछ सीख सकें।


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