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गजब बिना किसी की मदद के नर्मदा किनारे बनाया 11 किमी लंबा ऑक्सीजन जोन

रंगा ने 25 साल में नर्मदा नदी के किनारे सूखे और बंजर इलाके में 11 किमी लंबाई और नदी के तट से करीब 50 एकड़ के चौड़ाई वाले हिस्से को लाखों पेड़ों से हरा-भरा कर दिया।

By Kamal VermaEdited By: Published: Sun, 10 Dec 2017 02:56 PM (IST)Updated: Sun, 10 Dec 2017 03:38 PM (IST)
गजब बिना किसी की मदद के नर्मदा किनारे बनाया 11 किमी लंबा ऑक्सीजन जोन

जबलपुर नईदुनिया [पीयूष बाजपेयी]। लकड़ी कारोबारी नरसिंह रंगा के मन में एक दिन विचार आया कि यदि लकड़ी काटते गए और पेड़ नहीं उगाए तो फिर लकड़ी मिलेगी कैसे? इसी सोच के बूते उन्होंने 25 साल में नर्मदा नदी के किनारे सूखे और बंजर इलाके में 11 किमी लंबाई और नदी के तट से करीब 50 एकड़ के चौड़ाई वाले हिस्से को लाखों पेड़ों से हरा-भरा कर दिया। इसके लिए उन्होंने किसी तरह की सरकारी मदद नहीं ली। यह पूरा इलाका शहर के पास ऑक्सीजन जोन बन चुका है। देश भर से वन विशेषज्ञ, वैज्ञानिक और रिसर्च स्कॉलर इस जंगल को देखने पिछले कई सालों से आ रहे हैं। उष्ण कटिबंधीय वन अनुसंधान केंद्र और राज्य वन अनुसंधान केंद्र के वैज्ञानिक भी इस जंगल से सीख ले रहे हैं।

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नदी के दो पाट, एक हरियाली से ढंका तो दूसरा बंजर

रंगा के प्रयासों के बाद नर्मदा के एक तट पर 100 फीट से भी ज्यादा ऊंचाई वाले लहलहाते पेड़ खड़े हैं। सिर्फ चार प्रजाति के पेड़ देवरी बसनिया के इस जंगल में लगे हैं। सागौन, खमेर, बांस और नीलगिरी से अटा ये इलाका अब पूरी तरह उपजाऊ बन गया। मिट्टी का क्षरण रोकने में कामयाबी हासिल हुई है।

ऐसे शुरू हुआ जंगल बनाना, गांव वाले भी खुश

टिम्बर व्यवसायी नरसिंह रंगा अपने परिवार के साथ जोधपुर से वर्ष 1974 में जबलपुर आ गए। साल 1992 में जंगल लगाने का विचार आया। खुद की जमीन पर पौधे लगाने का काम गांववालों की मदद से शुरू हुआ। पौधों को पानी मिलता रहे, इसके लिए नर्मदा में जाने वाली नरई नदी में खुद के खर्च से रंगा ने स्टॉप डैम का निर्माण भी करवाया।

- 1992 में 90 हजार पौधों का रोपण किया। इसके बाद वाले 1993 में 1 लाख 40 हजार पौधारोपण किए। गांव वालों को रोजगार भी मिला और खुद रंगा भी अपना परिवार इसी जंगल में लगे बांस को बेचकर चला रहे हैं। गांव वालों को उनकी जमीन पर भी 15 हजार से ज्यादा पेड़ लगाने दिए गए।
- आस पास के गांव से ग्रामीणों को हफ्ते में एक दिन जमीन पर गिरने वाले बांस उठाने दिए जाते हैं। यह उनके जलाने के काम आता है।

किसानों के लिए फायदेमंद

रंगा का कहना है कि एक बीज से करोड़ों बीज पनपते हैं। इन्हीं बीजों से करोड़ों पेड़ भी बनाए जा सकते हैं। आज सूखे की चपेट में आने से फसलों को बचाना मुश्किल हो गया है लेकिन इस तरह के मॉडल यदि नर्मदा और दूसरी नदियों के किनारे तैयार हो जाएं तो सिर्फ बांस और दूसरे पेड़ बेचने पर ही किसान को सालाना खेती के बराबर रकम मिल जाएगी।

आगे आएं लोग

इस बात में कोई शक नहीं है कि जितने बेहतर ढंग से नर्मदा तट के किनारे पेड़ लगाए गए हैं, वो समाज और सिस्टम के लिए एक मॉडल है। यदि कोई पर्यावरण और नदियों के लिए काम करना चाहता है तो आसानी से कर सकता है। आज कई राज्य सरकारें इस बारे में चर्चा करने लगी हैं कि कैसे पर्यावरण को बचाया जाए। इस तरह के मॉडल पर काम करने की जरूरत है।
दीपक खांडेकर, प्रमुख सचिव, वन (मध्यप्रदेश)

यह बहुत ही बढ़िया विकल्प आज के समय में किसानों के लिए हो सकता है। बस लोगों को आगे आने की जरूरत है। नर्मदा सहित तमाम नदियों के तटीय क्षेत्र का बहुत बड़ा हिस्सा हरियाली से वंचित है। यदि किसान चाहे तो इन तटों पर वृक्षारोपण के जरिए हरियाली भी बढ़ाएगा और कुछ साल के भीतर किसानों को लाभ भी होगा।
पंकज श्रीवास्तव, सीसीएफ एवं वन विशेषज्ञ (मध्यप्रदेश)

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