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कोविड-19 के इलाज के लिए भारत के पदचिह्नों पर चल रहा अमेरिका, जानें आखिर कैसे

भारत जिस तकनीक का इस्‍तेमाल पहले से कोविड-19 के मरीजों के इलाज के लिए कर रहा है अब अमेरिका में भी उससे इलाज होगा।

By Kamal VermaEdited By: Published: Tue, 25 Aug 2020 03:56 PM (IST)Updated: Tue, 25 Aug 2020 03:56 PM (IST)
कोविड-19 के इलाज के लिए भारत के पदचिह्नों पर चल रहा अमेरिका, जानें आखिर कैसे

नई दिल्‍ली (ऑनलाइन डेस्‍क/न्‍यूयॉर्क टाइम्‍स)। बीते सात माह से अमेरिका में कोविड-19 का प्रकोप है। आलम ये है कि वो दुनिया में इससे संक्रमित देशों की सूची में पहले नंबर पर है। रॉयटर्स के आंकड़ों के मुताबिक, अमेरिका में वर्तमान में इससे संक्रमित 5,756,661 मामले सामने आ चुके हैं, जबकि 177,296 मरीजों की यहां पर मौत हो चुकी है। इसके अलावा 2,262,283 मरीज ठीक भी हुए हैं। सात माह से इसकी मार झेल रहे अमेरिका ने इसके संक्रमितों के इलाज के लिए प्रयोग के तौर पर कुछ माह पहले भारत से हाइड्रोक्‍सीक्‍लोरोक्‍वीन दवा मंगवाई थी। अब अमेरिका में इसके इलाज के लिए प्‍लाज्‍मा थेरेपी को मंजूरी दे दी गई है। आपको बता दें कि भारत में इस थेरेपी से कई लोगों की जान बचाई जा चुकी है। भारत ने काफी पहले प्लाज्मा थेरेपी को कोरोना वायरस से संक्रमित मरीजों पर कारगर बताया था।

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अप्रैल में मिली थी भारत में इजाजत

भारत की ही यदि बात करें तो अप्रैल के अंत में भारतीय चिकित्सा अनुसंधान परिषद (आईसीएमआर) ने ब्लड प्लाज्मा थेरेपी से कोविड-19 संक्रमित मरीजों के उपचार के ट्रायल की अनुमति दे दी थी। आईसीएमआर ने इस क्लिनिकल ट्रायल में शामिल होने के लिए विभिन्न संस्थाओं को आमंत्रित भी किया था। भारत में पहली बार अप्रैल में ही दिल्ली के मैक्स हेल्थकेयर में कोविड-19 मरीज पर इस थेरेपी को सफलतापूर्वक आजमाया गया था। 13 जून को स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय ने अस्पतालों को प्लाज्मा थेरेपी के ऑफ लेबल उपयोग को मंजूरी दे दी। इसका अर्थ था कि कुछ शर्तों के साथ कोविड-19 के मरीज पर इसका इस्‍तेमाल किया जा सकता है।

क्‍या है थेरेपी कैसे होता है इलाज

इस थेरेपी से मरीज के शरीर में वायरस के संक्रमण को बेअसर करने वाले प्रतिरोधी एंटीबॉडीज विकसित हो जाते हैं। आपको बता दें कि जब कोई वायरस किसी व्यक्ति पर हमला करता है तो उसके शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता संक्रमण से लड़ने के लिए एंटीबॉडीज कहे जाने वाले प्रोटीन विकसित करती है। अगर वायरस से संक्रमित किसी व्यक्ति के ब्लड में पर्याप्त मात्रा में एंटीबॉडीज विकसित होता है तो वह वायरस की वजह से होने वाली बीमारियों से ठीक हो सकता है।

एफडीए की मंजूरी 

जहां तक अमेरिका की बात है तो आपको बता दें कि वहां के फूड एंड ड्रग एडमिनिस्ट्रेशन (एफडीए) ने आपात स्थिति में कोविड-19 से संक्रमित मरीजों के इलाज के लिए प्लाज्मा थेरेपी को मंजूरी दी है। इस महामारी के कारण दुनिया की सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था को जबरदस्‍त चोट लगी है। वहीं अमेरिका में नवंबर में राष्‍ट्रपति चुनाव भी होने हैं। अमेरिका अब सात माह के बाद ये दावा कर रहा है कि इस थेरेपी से 30 से 50 फीसदी तक कोविड-19 से संक्रमित मरीजों की जान बचाई जा सकती है।

फैसले को बताया ऐतिहासिक

अमेरिकी स्वास्थ्य मंत्री एलेक्स अजार और एफडीए कमिश्‍नर स्टीफन हैन ने इस फैसले को ऐतिहासिक बताया है और राष्‍ट्रपति ट्रंप ने इसके उपचार को सुरक्षित और प्रभावी बताया। हैन का कहना है कि कोरोना वायरस के संक्रमण से ठीक हो चुके मरीजों के रक्त से प्‍लाज्‍मा निकाला जाएगा। इसके बाद इसको संक्रमित मरीज को दिया जाएगा। मेयो क्लिनिक के एक रिसर्च में दावा किया गया है कि कंवलसेंट प्लाज्मा कोरोना वायरस मृत्यु दर को 30 से 50 फीसदी तक कम कर देगा।

ट्रंप ने फिर कहा चीन का वायरस

इस बीच रविवार को पत्रकारों से बात करते हुए ट्रंप ने कहा कि वो चीन के वायरस के खिलाफ अमेरिका की लड़ाई में ऐतिहासिक घोषणा कर रहा हैं, इससे अनगिनत जिंदगियां बचाने में मदद मिल सकेगी। ट्रंप ने ये भी माना है कि यह एक शक्तिशाली थेरेपी है, जो मौजूदा संक्रमण से जूझ रहे रोगियों के इलाज में मदद करेगी। उन्होंने अमेरिकी लोगों, जो कोविड-19 से ठीक हो चुके हैं उनसे प्लाज्मा दान करने की अपील की है। आपको बता दें कि भारत में खासतौर पर राजधानी दिल्‍ली में सरकार की तरफ से प्‍लाज्‍मा बैंक तक खोले गए है, जहां पर इच्‍छुक व्‍यक्ति इसे दान कर दूसरों का जीवन बचा सकता है।

ट्रंप के निशाने पर एफडीए 

आपको यहां पर ये भी बताना जरूरी होगा कि अमेरिका में जिस एफडीए ने प्‍लाज्‍मा थेरेपी को मंजूरी दी है उस पर ही रविवार को राष्‍ट्रपति ट्रंप ने इसका इलाज खोजने में बाधा डालने का आरोप लगाया था। ट्रंप ने इसको लेकर एक ट्वीट किया था, जिसमें उन्‍होंने लिखा था कि खाद्य और औषधि प्रशासन (एफडीए) टीके और इसके चिकित्सीय परीक्षण करने के लिए लोगों को प्राप्त करने के लिए दवा कंपनियों के लिए बहुत मुश्किल बना रहा है। उन्होंने कहा कि वे 3 नवंबर से पहले इस वैक्सीन के ट्रायल को पूरा नहीं होने देना चाहते।

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