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नहीं रहे 'डीएनए फिंगर प्रिंट' के जनक, दिल का दौरा पड़ने से निधन

लालजी सिंह को डीएनए फिंगर प्रिंट का जनक भी कहा जाता है। उनकी जिनोम नाम से कलवारी में ही एक संस्था है। इसमें रिसर्च का कार्य होता है।

By Tilak RajEdited By: Published: Mon, 11 Dec 2017 08:47 AM (IST)Updated: Mon, 11 Dec 2017 12:29 PM (IST)
नहीं रहे 'डीएनए फिंगर प्रिंट' के जनक, दिल का दौरा पड़ने से निधन
नहीं रहे 'डीएनए फिंगर प्रिंट' के जनक, दिल का दौरा पड़ने से निधन

वाराणसी, जेएनएन। काशी हिंदू विश्वविद्यालय के पूर्व कुलपति पद्मश्री डा. लालजी का रविवार की शाम निधन हो गया। वह 70 साल के थे। हृदयाघात के बाद आनन-फानन में उन्हें बीएचयू के सर सुंदरलाल अस्पताल की आइसीयू में भर्ती कराया गया था। जहां इलाज के दौरान रात करीब 10 बजे उन्होंने अंतिम सांसें लीं। वह यहां पर 22 अगस्त, 2011 से 22 अगस्त, 2014 तक कुलपति थे।

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 विश्वविद्यालय के प्रवक्ता डा. राजेश सिंह बताया कि पूर्व कुलपति एवं जौनपुर के ब्लॉक सिकरारा कलवारी गांव निवासी डा. लालजी सिंह तीन दिन पहले अपने गांव आए थे। वह रविवार की शाम हैदराबाद जाने के लिए फ्लाइट पकड़ने बाबतपुर एयरपोर्ट पहुंचे थे। उनकी फ्लाइट शाम साढ़े पांच बजे थी। इससे पहले ही करीब चार बजे उन्हें दिल का दौरा पड़ गया। उन्हें सर सुंदरलाल अस्पताल लाया गया।

डीएनए फिंगर प्रिंट का जनक
लालजी सिंह को डीएनए फिंगर प्रिंट का जनक भी कहा जाता है। उनकी जिनोम नाम से कलवारी में ही एक संस्था है। इसमें रिसर्च का कार्य होता है। डा. लालजी सिंह वर्तमान में सीसीएमबी, हैदराबाद के निदेशक भी थे। बताया जाता है कि दिल्ली के तंदूर हत्याकांड को सुलझाने में उनका बहुत योगदान था।

जानिए-  डॉ. लालजी सिंह के बारे में

लालजी स‍िंह का जन्म 5 जुलाई 1947 को हुआ था। यूपी के जौनपुर ज‍िले के सदर तहसील और स‍िकरारा थानाक्षेत्र के कलवारी गांव के न‍िवासी थे। इनके प‍िता का नाम स्व. ठाकुर सूर्य नारायण सिंह था। इंटरमीडिएट तक शिक्षा जिले में लेने के बाद उच्च शिक्षा के लिए 1962 में बीएचयू गए, जहां उन्होंने बीएससी, एमएससी और पीएचडी की उपाधि प्राप्त की।

1971 में देश में पहली बार 62 पन्नों का उनकी पीएचडी की थीसिस जर्मनी के फॉरेन जनरल में छपा था। उसके बाद कलकत्ता यूनिवर्सिटी के रिसर्च यूनिट (जूलॉजी) जेनेटिक में फेलोशिप के तहत 1971-1974 तक रिसर्च करने का मौका मिला। 1974 में पहली बार कॉमनवेल्थ फेलोशिप के तहत यूके जाने का मौका मिला। काफी दिन वहां रिसर्च के बाद भारत लौट आए। 1987 में कोशकीय और आण्व‍िक जीव विज्ञान केंद्र हैदराबाद (सेंटर फॉर सेलुलर एंड मॉलिक्यूलर बायोलॉजी) में साइंटिस्ट के तौर पर नियुक्त हुए। 1999 से 2009 तक यही डायरेक्टर के पद पर तैनात रहे।

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