गिरवी जमीन हड़पने के कानून को किसानों ने दी चुनौती
किसानों ने रोजी रोटी की दुहाई और जीवन के अधिकार का हवाला दे सुप्रीमकोर्ट से कानून रद करने की मांग की है।
माला दीक्षित, नई दिल्ली।पश्चिम बंगाल भूमि सुधार कानून के गिरवी जमीन हड़पने के कानून को किसानों ने सुप्रीमकोर्ट में चुनौती दी है। किसानों ने रोजी रोटी की दुहाई और जीवन के अधिकार का हवाला दे सुप्रीमकोर्ट से कानून रद करने की मांग की है। कोर्ट ने शुक्रवार को किसानों की याचिका पर पश्चिम बंगाल सरकार को नोटिस जारी किया है।
न्यायमूर्ति जे.चेलमेश्वर व न्यायमूर्ति एएम सप्रे की पीठ ने ये नोटिस पश्चिम बंगाल के बर्दमान जिले के तीन किसानों दीन बंधु पाल, मलय नंदी और गौतम हाजरा के वकील राजकुमार गुप्ता की बहस सुनने के बाद जारी किया। कोर्ट ने प्रदेश सरकार के अलावा बर्दमान के जिलाधिकारी और बर्दमान के भूमि सुधार अधिकारी को भी नोटिस जारी किया है।
मामले की शुरुआत में जब कोर्ट ने याचिकाकर्ता को हाईकोर्ट जाने को कहा तो वकील राजकुमार गुप्ता ने रोजी रोटी की दुहाई देते हुए जीवन के मौलिक अधिकार के हनन का मुद्दा उठाया। उन्होंने कहा कि जमीन जो कि किसान की मां होती है, जिससे उनकी रोजी रोटी चलती है उसे छीना जा रहा है। उन्होंने कहा कि पश्चिम बंगाल भूमि सुधार कानून 1955 की धारा सात कहती है कि अगर गिरवी रखी गई जमीन 15 साल में बैंक से नहीं छुड़ाई गई तो उस जमीन पर मालिक का दावा खतम हो जाएगा। यानि जमीन बैंक ले लेगी।
बैंक इस कानून की आड़ ले उनकी जमीने छीन रहीं हैं। बैंक चारो ओर इसका प्रचार कर रही हैं। गुप्ता ने कहा कि उनके पास कोई रास्ता और उपाय नहीं है। याचिकाकर्ता किसान पश्चिम बंगाल राज्य भूमिजीबी संघ के आजीवन सदस्य भी हैं। और संघ की इसी कानून के कुछ अन्य प्रावधानों को चुनौती देने वाली याचिका नौ न्यायाधीशों की संविधान पीठ के समक्ष सुप्रीमकोर्ट में लंबित है। कोर्ट ने गुप्ता की दलीलें सुनने के बाद मामले पर विचार का मन बनाते हुए नोटिस जारी किये।
किसानों की याचिका में पश्चिम बंगाल भूमि सुधार कानून 1955 की धारा 7 को संविधान के अनुच्छेद 14 (समानता), 19 (रोजगार की आजादी) और 21 (जीवन के अधिकार) के खिलाफ बताया गया है। कोर्ट से धारा 7 रद करने की मांग की गयी है। कहा गया है कि ये कानून किसानों के खिलाफ है।
पश्चिम बंगाल सरकार ने 1969 में भूमि सुधार कानून में संशोधन कर धारा 7 में यह नया उपबंध जोड़ा था। जो कहता है कि अगर 15 साल में गिरवी जमीन नही छुड़ाई गई तो उस पर मालिक का दावा शून्य हो जायेगा। कानून का ये संशोधन 1990 में सरकारी गजट में प्रकाशित हुआ और उसे 1969 ले प्रभावी माना गया। नौ जजों की पीठ में जो मामला विचाराधीन है उसमें सवाल है कि क्या कृषि जमीन के साथ ही तालाब, बगीचे आदि की जमीन का भी अधिग्रहण किया जा सकता है।