लॉकडाउन में ज्यादा समय मोबाइल पर बिताने से बच्चों की आंखों की रोशनी हो रही प्रभावित
लॉकडाउन शुरू हुए 65 दिन से अधिक हो गए इस दौरान लोग घरों में हैं। बच्चे भी बाहर खेलने के बजाय अपना समय मोबाइल टैबलेट और लैपटॉप पर बिता रहे हैं।
नवीन यादव. इंदौर। कोरोना संक्रमण में लगे लॉकडाउन के दौरान घरों से बाहर निकलने पर रोक के कारण आम लोगों का स्क्रीन टाइम बढ़ गया है। घरों में कैद हुए लोग अपने मोबाइल, टीवी और लैपटॉप पर घंटों बिता रहे हैं। रिपोर्ट के मुताबिक अब लोग आम दिनों से दोगुना से अधिक समय अपने मोबाइल पर बिता रहे हैं। इससे उनकी आंखों की रोशनी प्रभावित हो रही है। इसका सबसे अधिक प्रभाव बच्चों और युवाओं पर पड़ेगा।
लॉकडाउन के चलते घरों में कैद बच्चे मोबाइल पर अधिक समय देने से आंखें हो रहीं प्रभावित
लॉकडाउन शुरू हुए 65 दिन से अधिक हो गए, इस दौरान लोग घरों में हैं। बच्चे भी बाहर खेलने के बजाय अपना समय मोबाइल, टैबलेट और लैपटॉप पर बिता रहे हैं। इंदौर के नेत्र रोग विशेषज्ञ डॉ. मनीष गुजराती के मुताबिक यह काफी खतरनाक स्थिति है। हमारे पास रोजाना ही ऐसे प्रभावितों के कॉल आते हैं। इनमें आखों में जलन, सूखापन, सिरदर्द और धुंधला दिखने की शिकायत होती है। चूंकि क्लीनिक अभी बंद हैं तो हम उन्हें आंखों को ठंडक देने वाले लुब्रिकेटिंग ड्रॉप बता रहे हैं। लॉकडाउन के बाद उन्हें अनिवार्य चेकअप को लेकर आने के लिए कह रहे हैं।
20-20 का फॉर्मूला अपनाएं
डॉ. गुजराती के मुताबिक आप भी लगातार स्क्रीन पर ज्यादा समय गुजार रहे हैं तो आप 20-20 के फॉर्मूले पर काम करें। इसमें 20 मिनट तक लगातार मोबाइल या किसी अन्य स्क्रीन पर देखने के बाद 20 सेकंड तक ब्रेक लें और 20 फीट दूर देखें। इससे आंखों की मसल्स को आराम मिलेगा। इसे आम दिनों में भी करें। इससे आंखों की रोशनी लगातार बेहतर रहेगी।
बच्चों के लिए खतरनाक समय
हर साल गर्मी में शारीरिक गतिविधि में व्यस्त रहने वाले बच्चे इस समय सबसे अधिक खतरे में हैं। डॉ. गुजराती के अनुसार मोबाइल-टीवी ज्यादा देखने पर बच्चों को चश्मा लगने के आसार बढ़ जाते हैं। उन्हें प्रोगेसिव मायोपिया होने का खतरा होता है। जिन बच्चों को पहले से चश्मा लगा है, उनके नंबर बढ़ जाते हैं।
ऑनलाइन क्लास से बढ़ेगी समस्या
विशेषज्ञों का कहना है कि कई विद्यार्थी ऑनलाइन पढ़ाई कर रहे हैं। अब लगभग सभी स्कूल ऑनलाइन कक्षा शुरू करेंगे। इसमें भी बच्चे कई घंटों तक मोबाइल, लैपटॉप पर व्यस्त रहेंगे। इससे उनकी आखों पर विपरीत असर पड़ सकता है। अभी इस ओर कोई ध्यान नहीं दे रहा है।
यू ट्यूब ने भी लॉन्च किया रिमाइंडर
एसजीएसआइटीएस के आइटी विभाग की प्रोफेसर पूजा गुप्ता बताती हैं कि इन दिनों लोग ज्यादा समय इंटरनेट का इस्तेमाल कर रहे हैं। यू ट्यूब ने तो अपने उपयोगकर्ता के लिए बेड टाइम रिमाइंडर जैसी सुविधा भी दी है जिससे लोग समय पर सो सकें। लॉकडाउन में वर्क फ्रॉम होम होने से कई कर्मचारी देर रात तक कंप्यूटर स्क्रीन के सामने बने रहते हैं। इससे उन्हें आखों के साथ रीढ़ की हड्डी से संबंधित परेशानी हो सकती है।
इन बातों का ध्यान रख बच सकते हैं परेशानी से
-ऑनलाइन क्लास के बीच 10 से 15 मिनट का ब्रेक लें।
-हो सके तो बच्चों को लैपटॉप या स्मार्ट टीवी पर क्लॉस अटैंड कराएं।
-ऑनलाइन स्क्रीन से 25 से 30 सेंटीमीटर की दूरी रखें।
-बैठने का भी उचित ध्यान रखें।
केस 1
इंदौर के एरोड्रम क्षेत्र में रहने वाले दीपक सोनी का काम अभी बंद है। वे लगातार मोबाइल पर ही समय काट रहे हैं। विभिन्न एप्लीकेशन पर मौजूद वेब सीरीज देख चुके हैं। रोजाना कई घंटे मोबाइल पर गुजार रहे हैं। अब उन्हें कुछ ही देर मोबाइल देखने पर आंखों में जलन होने लगती है।
केस 2
इंदौर के एमआइजी थाना क्षेत्र में रहने वाले संदीप यादव दो माह से पबजी, वेब सीरीज देख रहे हैं। रोजाना रात 3 से 4 बजे तक मोबाइल देख रहे हैं। अब आखों से धुंधला दिखना शुरू हो गया है। क्लिनिक खुलते ही डॉक्टर के पास जाने वाले हैं।
केस 3
शहर के राजेंद्र नगर में रहने वाले मनोज मित्तल का काम लॉकडाउन में बंद है। घर में रहकर दिनभर कॉमेडी शो देखते हैं। दिनभर में आठ से नौ घंटे मोबाइल पर ही बिता रहे हैं। इससे अब उनके सिर में दर्द रहना शुरू हो गया है।