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ये खबर आपके लिए है, नहीं पढ़ी तो रहेंगे नुकसान में, फिर मत कहना कि बताया नहीं

कहने को तो यह छोटा सा फल है लेकिन है गुणों की खान। बेहद रसीला और उससे भी ज्यादा लाभकारी। यूं ही नहीं इसे देवताओं के फल की उपाधि मिली है।

By Sanjay PokhriyalEdited By: Published: Fri, 13 Jul 2018 09:06 AM (IST)Updated: Fri, 13 Jul 2018 10:00 PM (IST)
ये खबर आपके लिए है, नहीं पढ़ी तो रहेंगे नुकसान में, फिर मत कहना कि बताया नहीं
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[प्रतिभा सिंह]। कहने को तो यह छोटा सा फल है लेकिन है गुणों की खान। बेहद रसीला और उससे भी ज्यादा लाभकारी। यूं ही नहीं इसे देवताओं के फल की उपाधि मिली है। कहते हैं कि भगवान राम ने अपने वनवास में इसी का सेवन किया। हमारे पुराणों में जिस अलौकिक जम्बूद्वीप का जिक्र है वह जामुन के पेड़ों की नगरी है। इसकी पत्तियों से लेकर गुठलियां तक कई रोगों में दवा का काम करती हैं। सबसे बड़ी बात यह है कि यह शुद्ध देशज पेड़ है जो आसानी से आपके आसपास की जमीन में पनप सकता है। तो देर न करें और अगली बरसात से पहले जमीन में जामुन की कुछ गुठलियां दबा दें। आओ रोपें अच्छे पौधे सीरीज के तहत आज जामुन (वैज्ञानिक नाम: सिजीगियुम क्यूमिनाइ) के बारे में। 

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साल भर दे छांव
जामुन का पेड़ खूब लंबा-चौड़ा और घना होता है। यह सालभर हरा-भरा रहता है और छांव देता है। फरवरी-मार्च में इसमें फूल आते हैं और मई से जुलाई तक जामुन फलते हैं। जामुन से जैम और जैली, वाइन व अन्य खाद्य पदार्थ भी बनाए जाते हैं। लोग काले नीले और रसीले जामुन के फल बेचते दिखाई देते हैं। जामुन दवा के गुणों से भरपूर मौसमी फल है। आयुर्वेद के शास्त्रों में जामुन के कई गुणों का विश्लेषण किया गया है। इसके पत्ते, फल, छिलका और गुठलियां कई प्रकार के रोगों में इस्तेमाल की जाती हैं।

सेहत के लिए वरदान
- डायबिटीज रोगियों के लिए जामुन बहुत गुणकारी फल है। यह स्टार्च को ऊर्जा में बदलने में मदद करता है और रक्त में शक्कर की मात्रा कम करता है। इसकी पत्तियां, तने की छाल और गुठली भी प्रमाणिक तौर पर मधुमेह के उपचार में काम आती हैं।
- इसमें प्रचुर मात्रा में लौह पाया जाता है, जो रक्त के लिए अच्छा है।
- यह पाचन तंत्र के लिए अच्छा फल है। इसकी तासीर ठंडी होने के कारण यह त्वचा पर पड़ने वाले दानों, झुर्रियों और दाग-धब्बों को कम करता है।
- इसमें मौजूद एंटीऑक्सीडेंट और फ्लेवैनॉइड से रक्त शुद्ध होता है जिससे लिवर स्वस्थ रहता है।
- दस्त और पेचिश में जामुन के पत्तों को पीस कर नमक के साथ सेवन करने से बहुत फायदा होता है।
- जामुन और अमरूद के पत्ते मिलाकर दातुन करने से मुंह की दुर्गध नष्ट होती है और छाले भी ठीक होते हैं।
- जामुन खून को साफ करती है और कई चर्म रोगों को दूर करती है। बरसात में जामुन के फल खाने चाहिए।

पौराणिक मान्यताओं से जुड़ा
माना जाता है कि अपने वनवास के पूरे 14 वर्षों में भगवान राम ने सिर्फ जामुन ही खाया। यही कारण है कि उनकी त्वचा के रंग की तुलना जामुन के रंग से की जाती है। जिस मंदिर में उनकी मूर्ति स्थापित की जाती है वहां जामुन का पेड़ जरूर लगाया जाता है। दूसरी मान्यता यह है कि बादलों के स्वामी मेघ देवता धरती पर जामुन का रूप लेकर आए थे, इसीलिए जामुन का रंग काले बादलों जैसा है। विष्णु पुराण के अनुसार जम्बूद्वीप में जामुन के पेड़ हाथियों जितने बड़े होते हैं और जब उनमें लगने वाले फल पककर गिरते हैं तो उनके जामुनी रस की नदी बहती है।  

दूध और मक्खन से नहीं बढ़ता हृदय रोग
वैज्ञानिकों का कहना है कि दुग्ध उत्पादों मसलन फैट से भरपूर दूध, पनीर और मक्खन के सेवन से हृदय रोग या स्ट्रोक का खतरा नहीं बढ़ता। डेयरी फैट का इन रोगों और असमय मौत के बीच संबंध नहीं पाया गया है। शोधकर्ताओं के अनुसार, वास्तव में कुछ खास प्रकार के डेयरी फैट (वसा) स्ट्रोक के खिलाफ बचाव में मदद कर सकते हैं।

अमेरिका की टेक्सास यूनिवर्सिटी की प्रोफेसर मर्सिया ओट्टो ने कहा, ‘हमारे अध्ययन का निष्कर्ष ना सिर्फ उस धारणा के उलट है बल्कि इस बात का भी समर्थन करता है कि डेयरी फैट से बुजुर्गों में हृदय रोग या मौत का खतरा नहीं बढ़ता। दुग्ध उत्पादों में मौजूद एक फैटी एसिड हृदय रोग खासतौर पर स्ट्रोक से मौत के खतरे को निम्न कर सकता है।’

शोधकर्ताओं ने यह निष्कर्ष 65 साल के करीब तीन हजार वयस्कों पर 22 साल तक किए गए अध्ययन के आधार पर निकाला है। अध्ययन में डेयरी उत्पादों में पाए जाने वाले तीन फैटी एसिड के प्लाज्मा लेवल पर गौर किया गया। इनमें से किसी भी फैटी एसिड का संबंध इन खतरों से नहीं पाया गया।

कैंसर के कारक दस नए जीन की हुई पहचान
शोधकर्ताओं को कैंसर से मुकाबले की दिशा में बड़ी कामयाबी मिली है। उन्होंने ऐसे दस नए जीन की पहचान की है जिनकी वजह से कैंसर हो सकता है। इससे कैंसर की रोकथाम में मदद मिल सकती है। शोधकर्ताओं के अनुसार, मौजूदा डाटा के आधार पर कैंसर से जुड़े नए जीन की पहचान के लिए अल्फ्रेड नामक विधि विकसित की गई। इसकी मदद से कैंसर के खतरे वाले दस नए जीन की पहचान की गई। स्पेन के कैटलन इंस्टीट्यूट फॉर रिसर्च एंड एडवांस स्टडीज के शोधकर्ता बेन लेहनर ने कहा, हमने इस विधि को एक हजार से ज्यादा कैंसर रोगियों पर आजमाया।


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