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पराली का धुंआ उठने से पहले ही बुझाने की तैयारी, मोदी सरकार ने उठाए ठोस कदम

पराली जलाने से न केवल पर्यावरण को खतरा है बल्कि मानव स्वास्थ्य के साथ मिट्टी की उर्वरा क्षमता बुरी तरह प्रभावित होती है। पराली जलाने में भारी गिरावट दर्ज की गई है।

By Bhupendra SinghEdited By: Published: Mon, 09 Sep 2019 10:59 PM (IST)Updated: Mon, 09 Sep 2019 10:59 PM (IST)
पराली का धुंआ उठने से पहले ही बुझाने की तैयारी, मोदी सरकार ने उठाए ठोस कदम
पराली का धुंआ उठने से पहले ही बुझाने की तैयारी, मोदी सरकार ने उठाए ठोस कदम

जागरण ब्यूरो, नई दिल्ली। चालू खरीफ सीजन की फसलों कटाई से पहले ही सरकार ने पराली जलाने वालों से उसके प्रबंधन के उपाय पूछना शुरु कर दिया है। यानी पराली का धुंआ उठने से पहले ही उसे बुझाने में सरकार जुट गई है। पराली प्रबंधन पर यहां आयोजित राष्ट्रीय सम्मेलन में उन राज्यों के संबंधित विभागों के आला अफसरों और किसान प्रतिनिधियों को बुलाया गया था। केंद्रीय कृषि व किसान कल्याण राज्यमंत्री पुरुषोत्तम रूपाला ने इसकी मूल समस्या का विस्तार से जिक्र किया।

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रूपाला ने कहा कि 'फसलों के बीच समय बहुत कम होने और उस दौरान श्रमिकों के अभाव के चलते पराली जलाने की परंपरा का जन्म हुआ है।' केंद्रीय मंत्री ने कृषि वैज्ञानिकों से इन्हीं समस्याओं के समाधान की अपील की। लेकिन साथ ही सम्मेलन में हिस्सा ले रहे किसानों से भी खुलकर बातचीत की। उन्होंने पराली जलाने के दूरगामी कुप्रभाव के बारे में बताया।

केंद्रीय मंत्री कृषि राज्य मंत्री ने पराली प्रबंधन के बारे में सरकार के उपायों का ब्यौरा भी दिया। उन्होंने बताया कि सरकार ने जगह-जगह कस्टम हायरिंग सेंटर स्थापित किये हैं। इसके साथ ही भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद के रिसर्च सेंटर, एक्सटेंशन सेंटर और राज्य कृषि विश्वविद्यालयों के अफसरों की भी जमकर पीठ ठोंकी। कृषि मंत्री रूपाला ने किसानों से बातचीत करते हुए उन्हें पराली न जलाने के लिए शपथ भी दिलाई।

सम्मेलन में उत्तर प्रदेश के कृषि मंत्री सूर्य प्रताप शाही ने पराली जलाने के नुकसान, पराली प्रबंधन के उपयोग, इसके लाभ सरकार की मशीनरी मदद आदि का जिक्र किया। उन्होंने दावा किया कि इन्हीं प्रयासों से पंजाब, हरियाणा, पश्चिमी उत्तर प्रदेश और दिल्ली में पराली जलाने में भारी गिरावट दर्ज की गई है।

शाही ने कहा कि पराली जलाने से न केवल पर्यावरण को खतरा है बल्कि मानव स्वास्थ्य के साथ मिट्टी की उर्वरा क्षमता बुरी तरह प्रभावित होती है। उन्होंने आंकड़ों और तथ्यों का हवाला देते हुए पराली प्रबंधन पर उत्तर प्रदेश सरकार के कदमों का विस्तार से जिक्र किया।

इंडियन काउंसिल आफ एग्रीकल्चर रिसर्च (आईसीएआर) के महानिदेशक डाक्टर त्रिलोचन महापात्र ने इस मौके पर उन किसानों की जमक प्रशंसा भी की, जिन्होंने गांव में न तो पराली जलाई और न ही अपने गांव में किसी और को पराली जलाने दी। पराली प्रबंधन से किसानों को होने वाले लाभ के बारे में बताया।

फसल अवशेष प्रबंधन के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की ओर से गठित उच्च स्तरीय टास्क फोर्स के बारे में भी बताया, जो लगातार पराली जलाने पर नजर रखे हुए था। संयुक्त सचिव अश्विनी कुमार और पंजाब के सह निदेशक मनमोहन कालिया ने पराली प्रबंधन पर अपनी प्रस्तुति पेश की।


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