कैलाश मानरसरोवर यात्रा: विदेश मंत्री डॉ. एस जयशंकर ने रवाना किया यात्रियों का पहला जत्था, चीन को लेकर कही ये बात
इस साल के लिए कैरसाश मानसरोवर यात्रा के लिए तीर्थ यात्रियों का पहला जत्था रवाना हो गया है।
नई दिल्ली, एएनआइ। कौलाश मानसरोवर यात्रा के लिए इस साल का पहला जत्था रवाना हो गया है। विदेश मंत्री डॉ. एस जयशंकर ने इर यात्रा के लिए तीर्थयात्रियों के पहले जत्थे को रवाना करते हुए कहा कि मैं चीन सरकार द्वारा यात्रा के आयोजन में दिए गए समर्थन को भी देखना चाहूंगा। यह दोनों देशों के लोगों के लिए एक महत्वपूर्ण कदम है।
जानकारी के लिए बता दे कि 12 जून से कैलाश मानसरोवर यात्रा शुरू हो रही है। इसे लेकर प्रशासन ने अपनी तैयारी पूरी कर ली है। रवाना हुआ यह पहला जत्था दिल्ली से उत्तराखंड़ पहुंचेगा। हल्द्वानी और अल्मोड़ा पहुंचने पर यात्रियों का भव्य स्वागत किया जाएगा। गौरतलब है कि यह यात्रा 12 जून स शुरु होगी और आठ सितंबर तक चलेगी। इस साल यात्रा में 18 दल शामिल होंगे। एक दल में कम से कम 60 यात्री शामिल होंगे। इस दल का नेतृत्व लाइजनिंग विदेश मंत्रालय द्वारा किया जाएगा।
कैलाश मानसरोवर यात्रा का महत्व
कैलाश मानसरोवर को शिव-पार्वती का घर माना जाता है। पौराणिक कथाओं के अनुसार मानसरोवर के पास स्थित कैलाश पर्वत पर शिव-शंभू का धाम है। यही वह पावन जगह है, जहां शिव-शंभू विराजते हैं। पुराणों के अनुसार यहां शिवजी का स्थायी निवास होने के कारण इस स्थान को 12 ज्येतिर्लिगों में सर्वश्रेष्ठ माना गया है। कैलाश बर्फ से आच्छादित 22,028 फुट ऊंचे शिखर और उससे लगे मानसरोवर को कैलाश मानसरोवर तीर्थ कहते हैं और इस प्रदेश को मानस खंड कहते हैं।
हर साल कैलाश-मानसरोवर की यात्रा करने, शिव-शंभू की आराधना करने, हजारों साधु-संत, श्रद्धालु, दार्शनिक यहां एकत्रित होते हैं, जिससे इस स्थान की पवित्रता और महलाा काफी बढ़ जाती है। कैलाश-मानसरोवर उतना ही प्राचीन है, जितनी प्राचीन हमारी सृष्टि है। इस अलौकिक जगह पर प्रकाश तरंगों और ध्वनि तरंगों का समागम होता है। इस पावन स्थल को भारतीय दर्शन के हृदय की उपमा दी जाती है, जिसमें भारतीय सभ्यता की झलक प्रतिबिंबित होती है।
परम पावन कैलाश पर्वत हिंदू धर्म में अपना विशिष्ट स्थान रखता है। हिंदू धर्म के अनुसार यह भगवान शंकर एवं जगत माता पार्वती का स्थायी निवास है। कैलास पर्वतमाला कश्मीर से लेकर भूटान तक फैली हुई है। कैलाश पर्वत समुद्र सतह से 22,028 फीट ऊंचा एक पत्थर का पिरामिड जैसा है, जिसके शिखर की आकृति विराट शिवलिंग की तरह है। पर्वतों से बने षोडशदल कमल के मध्य यह स्थित है। यह सदैव बर्फ से आच्छादित रहता है। तिब्बत चीन के अधीन है, अत: कैलाश चीन में आता है। जो चार धर्मो तिब्बती धर्म, बौद्ध धर्म, जैन धर्म और हिंदू धर्म का आध्यात्मिक केंद्र है।
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