Move to Jagran APP

पूर्व वित्‍त मंत्री ने केंद्र सरकार को दी सलाह, देश के आर्थिक हालात सुधारने को नोट छापे सरकार

पूर्व वित्त मंत्री पी चिदंबरम ने केंद्र सरकार को सलाह दी है कि देश की आर्थिक हालत को सुधारने के लिए सरकार को नोटों की छपाई करनी चाहिए। उन्‍होंने ये भी कहा है कि देश में करोड़ों लोग गरीबी रेखा से नीचे हैं।

By Kamal VermaEdited By: Published: Tue, 01 Jun 2021 08:14 PM (IST)Updated: Tue, 01 Jun 2021 08:14 PM (IST)
पूर्व वित्‍त मंत्री ने केंद्र सरकार को दी सलाह

नई दिल्ली (जागरण ब्‍यूरो)। कांग्रेस ने वित्त वर्ष 2020-21 में आर्थिक विकास दर में माइनस 7.3 फीसद की नकारात्मक वृद्धि को बीते चार दशक का सबसे काला वर्ष बताते हुए एनडीए सरकार की आर्थिक नीतियों को इसके लिए जिम्मेदार ठहराया। पूर्व वित्त मंत्री पी चिदंबरम ने कहा है कि जीडीपी और अर्थव्यवस्था में हुई गिरावट के कारण न केवल देश की प्रति व्यक्ति आय घटी है, बल्कि बीते दो साल में अधिकांश भारतीय पहले की तुलना में गरीब हुए हैं। अर्थव्यवस्था को मौजूदा मुश्किल दौर से उबारने के लिए चिदंबरम ने सरकार को नए नोट छापने के विकल्प पर भी गौर करने की सलाह दी।

loksabha election banner

जीडीपी के माइनस 7.3 फीसद के नकारात्मक स्तर पर पहुंचने के सरकारी आंकड़े सामने आने के बाद कांग्रेस की ओर से प्रेस कांफ्रेंस करते हुए चिदंबरम ने कहा कि 1979-80 के बाद ऐसा पहली बार हुआ है, जब भारत ने नकारात्मक वार्षिक वृद्धि दर्ज की है और 2020-21 ने चार दशकों में अर्थव्यवस्था का सबसे निराशाजनक समय देखा। उन्होंने कहा कहा कि पिछले साल जब महामारी की पहली लहर कम हो रही थी तो वित्त मंत्री और उनके मुख्य आर्थिक सलाहकार ने 'उज्जवल किरण' की मनगढ़ंत कहानी के साथ वी-आकार की रिकवरी की भविष्यवाणी कर डाली। जीडीपी के आंकड़ों से साफ है कि यह कहानी झूठी थी।

नोट छापना सरकार का संप्रभु अधिकार

करेंसी नोट छापने के नोबेल पुरस्कार विजेता डा. अभिजीत बनर्जी की सलाह के बारे में पूछे जाने पर पूर्व वित्त मंत्री ने कहा कि सरकार को वित्तीय घाटे की चिंता छोड़कर मौजूदा हालत में नए नोट छापना चाहिए। सरकार को इसका संप्रभु अधिकार है, मगर आर्थिक उपायों को लेकर उसका रुख हिचक वाला है। अगर कदम नहीं उठाए गए तो एक और साल बर्बाद हो जाएगा। चिदंबरम ने कहा कि चिंता की बात है कि प्रति व्यक्ति जीडीपी एक लाख से कम होकर 99,694 रुपये तक पहुंच गई। उससे भी अधिक चिंताजनक है कि ज्यादातर भारतीय दो साल पहले के मुकाबले आज और ज्यादा गरीब हो गए।

अधिकांश आर्थिक संकेतक ज्यादा खराब स्तर पर

पूर्व वित्त मंत्री ने कहा कि सरकारी आंकड़ों से खुलासा होता है कि अधिकांश आर्थिक संकेतक दो साल पहले के मुकाबले आज ज्यादा खराब स्तर पर आ गए हैं। अर्थशास्ति्रयों एवं प्रतिष्ठित संस्थानों की अच्छी सलाह को खारिज कर दिया गया। राजकोष के विस्तार एवं कैश ट्रांसफर के सुझावों की उपेक्षा कर दी गई। आत्मनिर्भर भारत जैसी खोखली योजनाएं विफल हो गईं। आलम यह है कि राज्यों को जीएसटी का उनका हिस्सा समय पर नहीं मिल रहा। पैसे की कमी के चलते कोरोना महामारी के खिलाफ राज्यों में टीकाकरण की गति धीमी पड़ने की आशंका बढ़ गई है।

23 करोड़ लोग गरीबी रेखा के नीचे आए

चिदंबरम ने कहा कि नौकरियों के नुकसान एवं बढ़ती बेरोजगारी पर सीएमआइ की रिपोर्ट बहुत चौंकानेवाली है। अजीज प्रेमजी यूनिवर्सिटी की शोध एवं सर्वे रिपोर्ट का निष्कर्ष है कि कोरोना काल में 23 करोड़ लोग गरीबी रेखा के नीचे एवं कर्ज के बोझ तले धकेल दिए गए हैं।


Jagran.com अब whatsapp चैनल पर भी उपलब्ध है। आज ही फॉलो करें और पाएं महत्वपूर्ण खबरेंWhatsApp चैनल से जुड़ें
This website uses cookies or similar technologies to enhance your browsing experience and provide personalized recommendations. By continuing to use our website, you agree to our Privacy Policy and Cookie Policy.