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मनमोहन के दौर में ही रुक सकता था PNB घोटाला, चेताने वाले से ही मांग लिया गया इस्तीफा

दिनेश दुबे के अनुसार पीएनबी घोटाले की शुरुआत 2013 में इलाहाबाद बैंक की निदेशक मंडल की बैठक में ही हो गई थी।

By Kishor JoshiEdited By: Published: Fri, 16 Feb 2018 05:46 PM (IST)Updated: Fri, 16 Feb 2018 07:57 PM (IST)
मनमोहन के दौर में ही रुक सकता था PNB घोटाला, चेताने वाले से ही मांग लिया गया इस्तीफा
मनमोहन के दौर में ही रुक सकता था PNB घोटाला, चेताने वाले से ही मांग लिया गया इस्तीफा

नई दिल्ली (जेएनएन)। पंजाब नेशनल बैंक को 11 हजार करोड़ रुपये का चूना लगाने वाले नीरव मोदी के मामा और गीतांजलि जेम्स के मालिक मेहुल चौकसी के गोरखधंधे के खिलाफ इलाहाबाद बैंक के स्वतंत्र निदेशक एवं पत्रकार दिनेश दुबे ने 2013 में ही न केवल आगाह किया था, बल्कि इसे लेकर डिसेंट नोट भी दिया था कि जब मेहुल ने बकाया 1500 करोड़ रुपये नहीं चुकाए तब उसे नए सिरे से 50 करोड़ का लोन क्यों दिया जा रहा है? इस पर कार्रवाई के बजाय उन्हें न केवल बैंक की बोर्ड मीटिंग में अपमानित किया गया, बल्कि तत्कालीन वित्त सचिव राजीव टकरू ने उन्हें इस्तीफा देने के लिए भी बाध्य किया।

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'घोटाले के बारे में चेताने पर मुझे दी गई धमकी'

विभिन्न टीवी चैनलों से बात करते हुए राजस्थान के पूर्व पत्रकार दिनेश दुबे ने बताया,  'जब मैंने नीरव मोदी के मामा मेहुल चोकसी की कंपनी गीतांजली ज्वैलर्स को लोन दिए जाने का विरोध निदेशक स्तर की बैठक में किया तो बोर्ड मेरे खिलाफ ही हो गया। उन्होंने मुझे राजी करने के लिए बहुत कोशिश की यहां तक कि धमकी देने की कोशिश भी की लेकिन मैंने कहा कि वसूली के बिना कंपनियों को इस तरह का लोन देने का मतलब है एनपीए में वृद्धि करना। मैंने भारतीय रिजर्व बैंक और वित्त मंत्रालय के सचिवों को भी इस बड़े घोटाले के बारे में लिखित चेतावनी दी थी। मैंने अनुरोध किया था कि चोकसी से जुड़ी सभी फर्मों पर नजर रखी जाएं क्योंकि उन्हें बैंक में भुगतान के बगैर ही लोन दिया जा रहा था।"

'लोन देने का किया था विरोध लेकिन फिर भी दे दिया गया'

रिजर्व बैंक के डिप्टी- गवर्नर केसी चक्रवर्ती को लिखे अपने मेल में दुबे ने आरोप लगाते हुए लिखा, '14 सितंबर, 2013 को इलाहाबाद बैंक के निदेशक मंडल की बैठक हुई। गीतांजलि ज्वैलर्स को 1500+50 करोड़ को आवंटित करना प्रस्तावित हुआ। मैंने इसका विरोध किया, लेकिन उन्होंने मेरे प्रस्ताव का विरोध किया और लोन को मंजूरी दे दी।'

बैठक की जानकारी दुबे ने भारतीय रिजर्व बैंक के तत्कालीन डिप्टी गवर्नर केसी चक्रवर्ती को भी दी थी जिसके बाद बैंक अधिकारियों को तलब भी किया गया, बावजूद इसके मेहुल चोकसी को बैंक की हांगकांग शाखा से भुगतान कर दिया गया। केंद्रीय वित्त सचिव और आरबीआई को इस फैसले की जानकारी भी लगी, लेकिन कोई कार्रवाई नहीं की गई। 

'मुझ पर इस्तीफा देने के लिए बनाया गया दवाब'

दिनेश दुबे ने आगे बताया,  'मैंने बोर्ड को बताया था कि चोकसी और उसकी कंपनी एक दिन बड़ा घोटाला करेगी,यहां तक कि उन्होंने मेंरी बात सुनी भी थी। इस घोटाले को रोका जा सकता था। मुझे याद है कि पीएनबी के वर्तमान प्रबंध निदेशक उस समय इलाहाबाद बैंके के जनरल मैनेजर थे और उन्हें पता था कि बोर्ड की बैठक में क्या हुआ था।'

दुबे ने बताया कि कई सरकारी अधिकारियों द्वारा मुझ पर दवाब बनाया गया, 'वित्त मंत्रालय और इलाहाबाद बैंक के अधिकारी मेरा इस्तीफा चाहते थे। मैंने बताया कि सरकार ने मेरी नियुक्ति इसलिए की है कि बैंक की गतिविधियों पर नजर रखी जा सके और गड़बड़ियों को रोका जा सके। यदि मैं अपना कार्य नहीं कर सकता तो इससे अच्छा है कि मैं आगे बढ़ू। फिर मुझसे कहा गया कि यदि मैं इस्तीफा देता हूं तो मुझे यह हाईलाइट करना होगा कि मैंने स्वास्थ्य कारणों की वजह से इस्तीफा दिया है। मैंने ऐसा किया और फरवरी 2014 में इस्तीफा दे दिया।'


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