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धान के इन आभूषणों को देख हर कोई मंत्रमुग्ध, महिलाओं ने दिखाया कमाल का हुनर

छत्तीसगढ़ के बालोद जिले के गुंडरदेही ब्लॉक अंतर्गत पैरी गांव की कई महिलाएं व युवतियां आज इसी हुनर की बदौलत अपने पैरों पर खड़ी हैं।

By Sanjay PokhriyalEdited By: Published: Wed, 05 Dec 2018 12:20 PM (IST)Updated: Wed, 05 Dec 2018 12:21 PM (IST)
धान के इन आभूषणों को देख हर कोई मंत्रमुग्ध, महिलाओं ने दिखाया कमाल का हुनर
धान के इन आभूषणों को देख हर कोई मंत्रमुग्ध, महिलाओं ने दिखाया कमाल का हुनर

रायपुर [वाकेश कुमार साहू]। सोने-चांदी के गहनों के बारे में तो सभी जानते हैं, लेकिन धान के दानों से भी नौलखा हार, ईयर रिंग, टॉप्स समेत तरह-तरह के खूबसूरत आभूषण बनाए जा सकते हैं, सुनकर एकबारगी यकीन नहीं होता। हालांकि यह सच है। छत्तीसगढ़ के बालोद जिले के गुंडरदेही ब्लॉक अंतर्गत पैरी गांव की कई महिलाएं व युवतियां आज इसी हुनर की बदौलत अपने पैरों पर खड़ी हैं। इनके बनाए आभूषणों की मांग गांव के साप्ताहिक बाजार से लेकर मॉल तक है। इसकी कीमत 50 रुपये से शुरू होकर पांच हजार रुपये तक जाती है।

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चौका-चूल्हा व खेती-बाड़ी में हाथ बंटाने वाली महिलाएं व कॉलेज में पढ़ने वाली युवतियां इस कला की बदौलत आज अच्छी खासी आमदनी कर रही हैं। इतना ही नहीं, आसपास के गांवों की महिलाओं को भी प्रेरित कर रही हैं। पैरी गांव की महिलाओं ने धनधान्य लक्ष्मी स्व सहायता समूह बनाया है। देशीला साहू इसकी अध्यक्ष हैं। समूह में कॉलेज में पढ़ने वाली युवतियां भी हैं। देशीला बताती हैं कि छत्तीसगढ़ हस्तशिल्प विभाग की ओर से गांव की 20 महिलाओं को धान के दानों से आभूषण तैयार करने का प्रशिक्षण दिया गया था।

आज 11 महिलाएं इस काम से जुड़ी हैं। ये सभी धान के दानों से झुमका, टॉप्स, मंगलसूत्र, ब्रेसलेट, माला, चूड़ियां, कंगन, मोतीहार, देवरानी हार, राखी, मूर्तियां, साड़ी पिन आदि तैयार करती हैं। आभूषण बनाने के लिए पेंड्रा रोड से खास किस्म का धान मंगाया जाता है। इसमें कई वेराइटी होती है। बारीक और मोटे, सभी प्रकार के धान से आभूषण तैयार किए जाते हैं। इसमें धान की भूसी व प्राकृतिक रंगों का भी इस्तेमाल किया जाता है। हालांकि इन आभूषणों को पानी से बचाना होता है, अन्यथा ये अंकुरित हो जाएंगे।

सधते गए हाथ, बढ़ती गई आमदनी
आपस में चंदा कर यह काम शुरू किया गया था। पहले कमाई न के बराबर थी, लेकिन वक्त के साथ ज्यों-ज्यों हाथ सधते गए, आभूषणों की खूबसूरती बढ़ती गई। इसी के साथ मांग भी बढ़ती गई। कभी रोजाना 50 रुपये ही कमाई हो पाती थी, आज 500 रुपये से ज्यादा कमाई हो रही है। वह भी घरर की पूरी जिम्मेदारियां निभाते हुए। गांव के बाजार ही नहीं, रायपुर के मैग्नेटो व अंबुजा मॉल समेत पड़ोसी राज्यों से भी ऑर्डर मिलते हैं। यहां इन गहनों के शोरूम हैं। समूह की अध्यक्ष देशीला साहू बताती हैं कि कि शादीदी-ब्याह, रक्षाबंधन व भैया दूज आदि पर्व के मौकों पर उनके बनाए गहनों की मांग अधिक रहती है। इन्हें पहनने के साथ ही घर की सजावट के रूप में भी उपयोग किया जाता है।  


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