इस गांव की हर दीवार देती है शिक्षा का संस्कार, दूसरों को देती हैं शिक्षा की सीख
गांव की दीवारों पर लिखे हैं किताबों के अंश, शत फीसद साक्षर है मध्य प्रदेश के नरसिंहपुर जिले का बघुवार गांव, 25 साल पहले हुई थी दीवारों को शिक्षा का साधन बनाने की पहल
जबलपुर [प्रवीण कुमार सिंह]। इस गांव की दीवारें खास हैं। शिक्षा का संस्कार देती हैं। ज्ञान बढ़ाती हैं। पढ़ने की ललक पैदा करती हैं। बघुवार गांव ऐसे ही पूर्ण साक्षर नहीं हो गया है। मध्य प्रदेश के नरसिंहपुर जिला स्थित इस गांव की दीवारों पर स्कूली किताबों के अंश हू-ब-हू लिखे हुए हैं। इतिहास, भूगोल, विज्ञान, सामान्य ज्ञान, गणित के सूत्र... मानो स्कूल का पूरा पाठ्यक्रम ही दीवारों पर उतर आया है।
हो गए 25 साल
दीवारों को सफेद पेंट से पोत कर इन पर साफ-सुथरे अक्षरों में लिखे गए किताबों के ये मूल अंश बच्चों को आसानी से याद हो जाते हैं। धुंधला जाने पर दीवारों को फिर से पोत कर इन पर नए सिरे से लिखा जाता है। दीवारों पर सामान्य ज्ञान से जुड़ी बातें लिखने की शुरुआत आज से 25 साल पहले शुरू हुई।
ऐसे आया विचार
यहां सचिव रहे हरिकिशन तिवारी बताते हैं कि उस समय गांव में पांचवीं तक स्कूल था। बच्चों और युवकों को अतिरिक्त ज्ञान मिले, इसलिए तत्कालीन सरपंच सुरेंद्र सिंह चौहान ने गांव के सुशिक्षित लोगों से कहा कि स्कूल की किताबों में लिखी ज्ञानवद्र्धक बातों को अपने घरों की बाहरी दीवारों पर लिखवाएं। इससे बच्चों की बौद्धिक क्षमता का विकास होगा। इसके बाद यह सिलसिला चल निकला। अब जब भी गांव के घरों की पुताई होती है तो उस पर नए तथ्य लिख दिए जाते हैं।
बड़ों को भी मिलता है ज्ञान
देश और प्रदेश में कितने जिले हैं, लोकसभा और राज्यसभा की सीटें कितनी हैं, अभयारण्य कितने हैं... ऐसी सैकड़ों जानकारियां गांव के घरों की दीवारों पर लिखी हैं। यहीं नहीं एक पेड़ से जिंदगी भर मिलने वाला लाभ तो पानी बचाने के फायदे भी बताए गए हैं। विभिन्न विषयों पर जागरूकता विषयक बातें भी इनमें शामिल हैं, जो बच्चों के साथ ही बड़ों को भी सीख देती हैं।
रंग लाई सरपंच की बड़ी सोच
स्व. सुरेंद्र सिंह ने 1970 में 12वीं की परीक्षा पास की थी, वह भी अपने गांव से 25 किमी दूर नरसिंहपुर में आकर। उन्हें शिक्षा का महत्व तभी पता चल गया था। वर्तमान में उनके छोटे भाई नरेंद्र सिंह सरपंच हैं। सरपंच के खुद के घर में चार सदस्य इंजीनियर हैं और 10 सरकारी नौकरी में हैं। सुरेंद्र सिंह के बाद की पीढ़ी पोस्ट ग्रेजुएट है।
100 फीसद साक्षर है गांव
2000 की आबादी वाला यह कृषि प्रधान गांव शिक्षा का महत्व बहुत ही पहले समझ चुका था। यहां प्राइमरी से लेकर हायर सेकेंडरी तक का सरकारी स्कूल है। ये स्कूल न केवल प्राइवेट स्कूल की तरह साफ- सुथरा है, बल्कि इसका रिजल्ट भी 100 फीसद होता है। इस बार भी 10वीं और 12वीं का रिजल्ट शतप्रतिशत रहा है।
गांव की ये सात खासियत
दूसरों को देती हैं सीख शिक्षा: साढ़े तीन साल की उम्र होते ही बच्चे को स्कूल भेजना अनिवार्य है।
पर्यावरण संरक्षण : गांव की गलियों- सड़कों के किनारे पेड़-पौधे लगे हैं। हर पौधे को ट्री-गार्ड की मदद से सुरक्षित किया गया है।
जल संरक्षण : गांव में तीन समृद्ध तालाब हैं। बारिश के बहाव को इन्हीं में मोड़ा गया है।
सुव्यवस्थित : गांव में 20 साल पहले से ही ड्रेनेज सिस्टम और पानी की सप्लाई लाइन है।