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Hindi Diwas 2020: सही नहीं अंग्रेजी व हिंदी मिश्रित भाषा का प्रयोग, हिंदी को दें प्राथमिकता

Hindi Diwas 2020 बच्चों की भाषा को विकृत होने से बचाने की सोचें और अपनी मानसिकता का विश्लेषण कर यह जानें कि बच्चा एक बार में एक भाषा सीखेगा तो भ्रम से बचा रहेगा।

By Sanjay PokhriyalEdited By: Published: Sat, 12 Sep 2020 01:26 PM (IST)Updated: Sat, 12 Sep 2020 01:30 PM (IST)
Hindi Diwas 2020: सही नहीं अंग्रेजी व हिंदी मिश्रित भाषा का प्रयोग, हिंदी को दें प्राथमिकता

नई दिल्‍ली, यशा माथुर। Hindi Diwas 2020 बच्चों की शब्दशैली बचपन में ही बन जाती है, जो भाषा के विकास का आधार बनती है। खिचड़ी भाषा अर्थात अंग्रेजी व हिंदी मिश्रित भाषा का प्रयोग बच्चे को कहीं का नहीं छोड़ेगा। क्यों न इस बार हिंदी दिवस के मौके से हम बच्चों की भाषा को विकृत होने से बचाने की सोचें और अपनी मानसिकता का विश्लेषण कर यह जानें कि बच्चा एक बार में एक भाषा सीखेगा तो भ्रम से बचा रहेगा।

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बेटा, फास्ट फास्ट ईट करो, बेटा, आईज क्लोज करके स्लीप करो, बेटा, हैंडवॉश कर लो, बेटा खाना प्रापरली खाओ, होमवर्क कंप्लीट कर लो, अब तुम्हें कंफर्टेबल लग रहा है न, फ्रूट्स जल्दी से फिनिश कर लो आदि-आदि। ऐसे कई जुमले हैं, जो पैरेंट्स बच्चे से उस समय बोलते हैं जब वह बहुत तेजी से चीजें पकड़ रहा होता है या भाषा सीख रहा होता है। ऐसे में हम खुद से सवाल करें कि हम बच्चों को क्या सिखा रहे हैं? क्या यह खिचड़ी भाषा, जो न ही हिंदी है और न ही अंग्रेजी। क्या हम पौधे में ऐसी गलत खाद-पानी तो नहीं दे रहे, जो उन्हें विकृत कर दे। बच्चा वही सीखेगा, जो हम सिखाएंगे। हमें हिंदी सिखाने से परहेज क्यों है? यही नहीं जो अभिभावक काफी पढ़े-लिखे हैं और अंग्रेजी बोल सकते हैं व हिंदी जानते हैं, वे भी ऐसी गलती कर रहे हैं। बच्चे से या तो पूरी अंग्रेजी बोलिए या फिर पूरी हिंदी। बच्चों को या खुद को अनावश्यक तौर पर अंग्रेज दिखाने की इस मानसिकता से पार पाना बच्चे के हित में होगा। आधुनिक मां के सोच का विषय है यह।

कौवे को क्रो ही समझेगा

अंग्रेजी के मोह में हमने बच्चों को अपनी मातृभाषा से ही दूर कर दिया है। भाषा मां होती है, जो हमें हर समय थामती है, जब हम परेशान होते हैं! जब हम खुश होते हैं, तब वह हमारे भीतर स्वत: ही फूटती है और उसके बाद कल्पना में हम भाषा का विस्तार करते हैं। कुछ इस तरह के विचार रखने वाली लेखिका सोनाली मिश्र कहती हैं, हम लोग परिवार की एक शादी में गए थे। खाना-पीना चल रहा था। खाना खाते-खाते अचानक से कानों में आवाज आई। बेटा, च्यु-च्यु करके राईटली खाओ, नहीं तो क्रो खाना ले जाएगा। देखा सामने महंगी साड़ी पहने और गहनों से लदी एक स्त्री अपने डेढ़-दो साल के बेटे को खाना खिला रही थी। मुझे उस समय तो हंसी आई, मगर बाद में मन व्यथित हो गया और चिंता से भर गया कि हम बच्चों को वह भाषा दे रहे हैं, जो न ही उसकी भाषा है और न ही उसके परिवेश की। इसका अंत क्या होगा? वह बच्चा जब भी कौवा देखेगा तो उसके मस्तिष्क में कौवे के स्थान पर क्रो ही आएगा। कौवे से जुड़ी सारी कल्पनाएं और रचनाएं कहीं खो जाएंगी। कौवे का संबंध हमारे जीवन में कितना अधिक है, यह हम इसी बात से समझ सकते हैं कि उस पर कविताएं, कहानियां और गाने बने हैं। घर के करीब कौवा बोलता है तो मेहमान आते हैं। ऐसी कितनी कहावतें भी हैं।

बचपन में ही अच्छी हिंदी सिखाएं

अक्षत जब बंगलुरु में अपने दोस्तों के बीच बैठकर वरदान और अनुशासन जैसे शब्द बोलता है तो उसके दोस्त हंसी उड़ाते हैं कि यार तुम ये सब कहां से सीखकर आए हो? लेकिन अक्षत जरा भी शर्म महसूस नहीं करता। वह कहता है हमारे घर में हिंदी ही बोली जाती है और मैंने बचपन से अच्छी हिंदी सीखी है। शुरू से अंग्रेजी स्कूल में पढऩे से अक्षत की अंग्रेजी तो अच्छी है ही, हिंदी का आधार भी बचपन में बन चुका है। अब उसकी दोनों भाषाओं पर अच्छी पकड़ है। कहने का तात्पर्य यह है कि बच्चे के साथ अच्छी हिंदी बोलने का मतलब यह कदापि नहीं है कि आप दूसरी कोई भाषा बच्चे को न सिखाएं। आप उसे कई भाषाओं में पारंगत कर सकती हैं, लेकिन उसके सामने भाषा की खिचड़ी बनाकर न पेश करें। आज भी बच्चे पूछते हैं, मम्मी, उन्हत्तर कितने होते हैं और मम्मी बताती हैं कि बेटा सिक्स्टी नाइन तो अफसोस होता है, लेकिन मां को लगता है कि बच्चे को अंग्रेजी के शब्द आने ही चाहिए।

संध्या नारंग होममेकर व टीचर हैं और घर में ट्यूशन लेती हैं। वह कहती हैं, मैं अपने बेटे रेयान से हिंदी और अंग्रेजी मिलाकर ही प्रयोग करती हूं, क्योंकि अंग्रेजी के कुछ शब्द बहुत सामान्य हैं, ये बच्चों को पता होना चाहिए। कारण, अगर कहीं पर बच्चा उन शब्दों को न समझ पाए तो उसे मुश्किल होगी। हिंदी तो बेसिक है ही। स्कूल में बच्चे को इंग्लिश में पढ़ाया जाता है। आज के समय में इंग्लिश भी महत्वपूर्ण है। हिंदी तो हमारी अपनी भाषा है। रेयान हिंदी भी समझता है और इंग्लिश भी।

शुरू से ध्यान नहीं तो मुश्किल होगी

श्वेता सावॢणक बच्चों की परवरिश को लेकर ब्लॉग लिखती हैं। वह मानती हैं कि आप अपने विचारों को जितनी सुंदर तरीके से हिंदी में रख सकते हैं उतना अंग्रेजी में नहीं। दूसरे देशों में मातृभाषा को इतना अपनाया गया है कि वे दूसरी भाषाएं समझते ही नहीं। हमारे देश में तो कई रंग हैं। भाषा जितनी आएं उतना अच्छा, लेकिन हिंदी अच्छी आनी चाहिए। वह कहती हैं, मेरा बेटा दिवित साढ़े तीन साल का है।

मैं मानती हूं कि बच्चे से एक बार में एक ही भाषा बोलने की आदत डालें, चाहे वह हिंदी हो या अंग्रेजी। मैं सोचती हूं कि घर में बच्चे के साथ हिंदी बोलने का वातावरण रखें और उसके साथ कोई और भाषा न मिलाएं। जिस समय बच्चे में भाषा की समझ विकसित हो रही है उसी दौरान अगर हमने ध्यान नहीं दिया तो आगे जाकर हमें ही मुश्किलें झेलनी पड़ेंगीं। श्वेता विदेश में रह रहीं अपनी बहन का जिक्र करती हैं कि मेरी बहन यूके में रहती हैं, उनकी बेटी उसी टोन की अंग्रेजी बोलती है, लेकिन वे इस बात का ध्यान रखती हैं कि हम भारत से हैं और हमारे बच्चे को हिंदी नहीं छोडऩी है। इसलिए वे घर में उसे हिंदी सिखाती हैं और घर में उससे हिंदी में ही बोलती हैं।

अंग्रेजी आधुनिकता की निशानी नहीं

अंकिता जैन खुद को एक हिंदी भाषी मम्मी बताते हुए फेसबुक पर लिखती हैं कि प्यारी मॉडर्न, एजुकेटेड, दिखावटी एलीट, हिंदी भाषी मम्मियों अपने बच्चों को हिंदी बोलने दें, अंग्रेजी सिखाने के चक्कर में बेटा सिट हो जाओ, न सिखाएं। कारण, बच्चे क्विक लर्नर होते हैं। आपने सिट बोला, कल को आपके बच्चे की किसी के सामने जुबान फिसल गई और उसने मम्मी शिट हो जाओ बोल दिया तो गड़बड़ हो जाएगी। वो क्या है कि छोटे बच्चों को स, श और ष का अंतर बाद में समझ आता है। हिंदी बोलना अपराध नहीं है, न ही अंग्रेजी बोलना ज्ञानी या मॉडर्न होने की निशानी। दोनों को मिलाकर कृपया गुड़ गोबर न करें। इस पर ऋतु भारद्वाज हास्य में कमेंट करती हैं कि मैंने भी एक बार एक मां को ये कहते हुए सुना बेटा फास्ट फास्ट ईट कर लो तो मैं सदमे में आ गई थी। इसी पोस्ट पर गरिमा चौरसिया कहती हैं कि मैंने बेटी को घर पर सब ङ्क्षहदी में बताया, अंग्रेजी तो वह स्कूल में सीख लेगी।

बच्चों को उनकी धरोहर सौंपनी है

लेखिका सोनाली मिश्र ने बताया कि भाषा हमारे चिंतन का विस्तार करती है। बच्चों के विकास के लिए मातृभाषा का क्या स्थान है। यह हमें गुरुदेव रविंद्र नाथ टैगोर के शब्दों से पता चलता है। उनका कहना था कि शिक्षा के माध्यम के रूप में अंग्रेजी मातृभाषा का स्थान नहीं ले सकती है। वह छात्रों को पथभ्रष्ट करने वाली है। हमारे पूर्वजों ने हमारे लिए भारी ज्ञानकोष छोड़ा है। हमें उन्हीं का अध्ययन करना चाहिए। इसी प्रकार महात्मा गांधी जी भी अंग्रेजी की गुलामी करने के खिलाफ थे।

उनका कहना था कि जैसे हर देश की अपनी एक भाषा होती है, वैसे ही भारत की भाषा हिंदी है। उन्होंने शिक्षा के माध्यम के लिए भी हिंदी की बात कही थी। वह कहते थे कि भारतीय भाषाओं में जो विकास बच्चों का हो सकता है, वह अंग्रेजी में नहीं। हर भाषा में एक-एक शब्द एक इतिहास और परंपरा लिए होता है तथा एक विशेष संदर्भ के साथ होता है। बच्चों द्वारा एक शब्द भूल जाना अर्थात एक पूरी की पूरी परंपरा, एक धरोहर का नष्ट होना है। यदि हम बच्चों को वह धरोहर नहीं सौंपकर जा पा रहे हैं, जो हमें अपने पूर्वजों से भाषा के माध्यम से प्राप्त हुई है तो यह बच्चों के साथ सबसे बड़ा अन्याय है। हमें अपने बच्चों के प्रति इस अन्याय से बचना चाहिए। उसे अपनी भाषा का ज्ञान अवश्य देना चाहिए। बच्चे को बाजार के कारण अंग्रेजी का ज्ञान होना आवश्यक है, परंतु प्रथम भाषा जिसमें उसकी कल्पनाएं आकार लें, वह हिंदी या उसकी मातृभाषा ही होनी चाहिए।

हिंदी भी आए और अंग्रेजी भी

ब्लॉगर श्वेता सावॢणक ने बताया कि हिंदी एक ऐसी भाषा है, जो हर बच्चे को आनी चाहिए, लेकिन जब बच्चा अंग्रेजी में बात करता है तो कई मांओं का चेहरा खिल जाता है। हम जिस देश में रहते हैं उसकी भाषा हमें बच्चों को अवश्य सिखानी चाहिए। मैं अपने बेटे से घर में हिंदी में बात करती हूं। हालांकि स्कूल में उसके अंग्रेजी बोली जाती है। मैं मानती हूं कि बच्चे को दोनों भाषाएं आनी चाहिए। स्कूल में तो सारा पाठ्यक्रम अंग्रेजी में इस तरह से डिजाइन किया गया है कि बच्चा विदेश जाए तो उसे मुश्किल न हो। अगर आप सोचती हैं कि घर में अंग्रेजी में बात करने से ही बच्चे को अंग्रेजी बोलना आएगा तो यह सही नहीं है। अगर बच्चे को भारत में ही काम करना है तो उसे हिंदी बहुत अच्छी तरह से आनी चाहिए। मैं चाहती हूं कि बच्चे को हिंदी भी आए और अंग्रेजी भी। घर में हम उसे हिंदी के अपनेपन से परिचित कराते हैं। ऐसा नहीं है कि मैं अंग्रेजी नहीं बोल पाती हूं, लेकिन बच्चे को घर में हिंदी सिखाती हूं। अंग्रेजी तो वह स्कूल में बोलेगा ही, क्योंकि वह इंग्लिश मीडियम स्कूल में पढ़ता है।

खिचड़ी तो पक ही चुकी है

होममेकर संध्या नारंग ने बताया कि हम बच्चे से बोलते हैं कि इसे डस्टबिन में थ्रो कर दो। कुछ शब्द ऐसे हैं जिनकी आदत हमें भी पड़ चुकी है। अब हम डस्टबिन को कूड़ेदान तो कह नहीं सकते। कारण, बहुत से शब्दों को हम रोजमर्रा की भाषा में ला चुके हैं खिचड़ी तो पक ही चुकी है। दोनों भाषाएं मिल चुकी हैं। स्कूल में बच्चों से बोलते हैं कि अंग्रेजी में बात करो। केवल ङ्क्षहदी से ही काम नहीं चल पाएगा। अगर अंग्रेजी भाषा का प्रयोग नहीं करेंगे तो उसके लिए इंग्लिश बोलना मुश्किल हो जाएगा।

हिंदी को प्राथमिकता दें

लाइफ स्टाइल एक्सपर्ट रचना खन्ना सिंह ने बताया कि आजकल होड़ लगी है कि छोटे बच्चों को भी अंग्रेजी आनी चाहिए, जबकि अंग्रेजी हमारी दूसरे नंबर की भाषा है। अंग्रेजी जरूर आनी चाहिए, लेकिन इसका मतलब यह नहीं है कि हम हिंदी को प्राथमिकता न दें। छोटे बच्चे को अंग्रेजी में निर्देश देने से अभिभावकों को गर्व होता है। बच्चा अगर अंग्रेजी माध्यम का है तो वह अंग्रेजी सीख ही जाएगा। उसको एक बार में एक ही भाषा सिखाइए। हिंदी को कम नहीं समझना चाहिए। खिचड़ी भाषा का कोई मतलब नहीं है। अभिभावकों को अंग्रेजी बेहतर समझने की सोच से बाहर आना होगा। इससे अच्छा तो अपने बच्चे को बचपन में ही अपनी प्रादेशिक भाषा सिखा दें।


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