रेलवे की जमीन पर यूं फैलता चला गया अतिक्रमण, राज्यों से जुड़ा है लॉ एंड आर्डर का मसला
रेलवे की जमीन पर अतिक्रमण को हटाने का काम राज्य सरकारों का है क्योंकि लॉ एंड ऑर्डर की व्यवस्था राज्य सरकारों के अधीन आती है। लेकिन वहां पर सरकारें विफल हो जाती हैं।
सत्य प्रकाश त्रिवेदी। ऐसा नहीं है कि रेलवे ने पटरियों की सुरक्षा के लिए नई तकनीक और बदलाव को अपनाया न हो। संरक्षा तो पहले से बेहतर हुई है, लेकिन पटरियों के आसपास बसी बस्तियां और दूसरे अतिक्रमण इतनी तेजी से फैल रहे हैं कि उससे न तो ट्रेन सुरक्षित है और न ही उसमें सफर करने वाले। दरअसल 2008 में रेलवे की जमीन की सुरक्षा और विकास के लिए लैंड डवलपमेंट ऑर्थोरिटी बनाई। यहीं से रेलवे की जमीन में अतिक्रमण फैलता गया। यह विवाद रेलवे और अतिक्रमणकारियों के बीच नहीं बल्कि रेलवे और राज्य शासन के बीच है। राज्य शासन ने रेलवे और सेना को विस्तार के लिए जमीन दी। सेना ने तो जमीन की सुरक्षा के लिए कदम उठाए, लेकिन रेलवे ने नहीं। धीरे-धीरे रेलवे की करोड़ों की खाली जमीन पर अतिक्रमण पसरता गया। हालात इतने बुरे हो गए कि रेलवे ने इन्हें हटाने के लिए जो प्रयास किए, वह राज्य सरकार, जिला प्रशासन और राजनेताओं के दबाव में कमजोर साबित हुए।
2014-15 में यह कानून आया कि रेलवे अपनी अतिरिक्त जमीन का कमिर्शयल उपयोग कर सकता है, लेकिन यह मामला राज्य सरकारों के पास आकर फंस गया। राज्य सरकारें कहती हैं कि रेलवे के पास यदि अतिरिक्त जमीन है तो वह इसे राज्य सरकार को दे, वह इसे विकसित करेंगी। इसको लेकर रेलवे जोन और कई राज्य सरकारों के बीच सुप्रीम कोर्ट में मामले भी विचाराधीन है। रेलवे के पास इतनी शक्ति नहीं है कि वह अतिक्रमण हटा सके, चूकि लॉ एंड आर्डर से जुडे मामलों का रेलवे समाधान नहीं कर पाता है, इस वजह से सबसे ज्यादा अतिक्रमण रेलवे की जमीन पर होता है। रेलवे और राज्य सरकार के बीच जमीन को लेकर चल रहे विवाद की वजह ही है कि अब रेलवे परियोजना के विस्तार के लिए राज्य सरकारेंं जमीन नहीं देतीं।
दूसरा पहलू यह है कि रेलवे अपनी जमीन पर बेस किचन, वॉशिंग लॉड्री, प्लांट और कालोनियां बनाती है। रेलवे सिर्फ इस जमीन का उपयोग यात्री सुविधा को बेहतर करने में कर सकती है न कि उसका कामिर्शयल उपयोग। वह स्टेशन या रेलवे ट्रैक के पास बसे लोगों को इस जमीन का व्यावसायिक उपयोग के लिए नहीं दे सकती। जमीन को लेकर यही विवाद की वजह बनती है। जिस वजह से राज्य सरकार और रेलवे के बीच जमीन को लेकर तालमेल नहीं बैठता। हालांकि रेलवे अब इसको लेकर पॉलिसी बना रही है कि रेलवे जमीन का व्यावसायिक उपयोग कर अपनी आय बढ़ा सके। रेलवे को दृढ़ इच्छाशक्ति दिखानी होगी।
(लेखक पूर्वोत्तर रेलवे के पूर्व महाप्रबंधक हैं)