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जनसंख्या नियंत्रण के प्रभावी उपायों पर जोर, सभी पहलुओं पर दिया जाए ध्यान

भारत की भौगोलिक आर्थिक एवं सामाजिक स्थितियों को जनसंख्या वृद्धि दर के चश्मे से देखते हुए और अन्य विकसित देशों के तुलनात्मक अध्ययन करने का सही समय आ चुका है लेकिन कानून लाने से पहले देश को इसके लिए तैयार करना आवश्यक है।

By Sanjay PokhriyalEdited By: Published: Tue, 19 Oct 2021 10:51 AM (IST)Updated: Tue, 19 Oct 2021 10:52 AM (IST)
भारत में जनसंख्या और इससे जुड़े सामाजिक, आर्थिक व राजनीतिक पक्षों पर कुछ समय से व्यापक चर्चा हो रही है।

चिन्मय भट्ट। कृषि प्रधान होने से पहले भारत एक राजनीति प्रधान देश है। जनसंख्या नियंत्रण पर कानून लाने और उसकी संवैधानिक वैधता को अदालत में साबित करने से पहले यह साबित करना होगा कि यह कानून किसी धर्म विशेष के लोगों को परेशान करने की नीयत से नहीं लाया जा रहा है। कुछ माह पूर्व उत्तर प्रदेश सरकार ने इस संबंध में पहल की है। हालांकि उत्तर प्रदेश सरकार का यह प्रस्तावित कानून देश के कुछ अन्य राज्यों में पहले से ही लागू इसी तरह के कानूनों से प्रेरित बताया जा रहा है। गुजरात, तेलंगाना, आंध्र प्रदेश, राजस्थान, मध्य प्रदेश और महाराष्ट्र में ऐसा कानून पहले से है। कुछ माह पूर्व ही असम के मुख्यमंत्री भी ऐसा कानून बनाने की बात कह चुके हैं।

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वैसे समझना यह भी होगा कि जिन राज्यों में ऐसे कानून लागू हैं, वहां पर भी इनके लागू होने के बाद कोई खास संस्थागत समीक्षा नहीं की गई है कि ये कानून कितने कामयाब साबित हुए हैं। राज्यों में जनसंख्या वृद्धि की दर को देखते हुए लगता नहीं कि उससे कोई ज्यादा फायदा हुआ है। राजस्थान में इसमें 2018 में कई संशोधन करने पड़े, क्योंकि सरकारी कर्मचारियों ने इस कानून का विरोध किया। मध्य प्रदेश में भी इस कानून के कई प्रविधानों को बदला गया। पंजाब ने भी 2018 में ऐसा ही कानून बनाने की बात कही थी, लेकिन अभी तक यह पाइपलाइन में ही है। हरियाणा में यह कानून जरूर बना था, लेकिन उसकी संवैधानिक वैधता को उच्चतम न्यायालय में चुनौती दी गई थी। एक याचिका के संबंध में उच्चतम न्यायालय ने भी पिछले वर्ष केंद्र सरकार से ऐसे कानून लाने के बारे में जानकारी मांगी थी। केंद्र सरकार का जवाब था कि अभी वह ऐसी कोई नीति बनाने के पक्ष में नहीं है और अंतरराष्ट्रीय जनसंख्या और विकास सम्मेलन 1994 के नियमों से वह बंधा हुआ है।

अगर दुनिया के बड़े देशों की बात करें जहां जनसंख्या एक बड़ी समस्या है, तो चीन ने 1979 में इस समस्या से निपटने के लिए सख्त कानून बनाते हुए एक बच्चे की नीति लागू की थी और यह करीब 35 साल तक लागू रही। विशेषज्ञों की मानें तो इसने चीन के लिए कई समस्याएं खड़ी कर दीं। लिहाजा वर्ष 2016 में चीन ने इस नीति में बदलाव किया और दो बच्चों की अनुमति दी। इसके बावजूद वहां की समस्याएं खत्म नहीं हुईं तो हाल में चीन ने तीन बच्चे पैदा करने की छूट दी है। चीन के अलावा सिंगापुर, वियतनाम, ब्रिटेन और हांगकांग सहित कई अन्य देशों ने भी दो बच्चों की नीति को लागू किया। लेकिन बाद में अनेक देशों को इस नीति में बदलाव करना पड़ा, क्योंकि इससे उम्मीद के मुताबिक कामयाबी नहीं मिली और कई सामाजिक समस्याएं भी खड़ी हो गई थीं।

भारत में भी देखें तो आपातकाल के दौरान जबरन किए जाने वाले नसबंदी कार्यक्रम का पुरजोर विरोध हुआ था। दो से ज्यादा बच्चे पैदा करने वाले लोगों को दंडित करना उन्हें और उनके तीसरे बच्चे को तमाम सुविधाओं से वंचित करना काफी हद तक अमानवीय और अनैतिक होने के साथ असंवैधानिक भी प्रतीत होता है। ऐसा कोई भी कानून लाने से पहले केंद्र सरकार को ‘हम दो हमारे दो’ का नारा इतने वर्षो बाद कितना कारगर साबित हुआ है, इस पर भी विचार किया जाना चाहिए। आज के दौर में ऐसे कानून को जनता पर थोपना लाभकारी साबित नहीं होगा। कुछ समय के लिए उसके बदलाव नजर आ सकते हैं, लेकिन लंबे समय में उसके उद्देश्यों को हासिल नहीं किया जा सकता है।

[अधिवक्ता, उच्चतम न्यायालय]


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