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'रेलवे लाइनों का विद्युतीकरण बचाएगा हर साल 13,500 करोड़ रुपये'

तमिलनाडु का यह पुल रामेश्वरम से पामबन द्वीप को जोड़ता है। मुंबई ब्रांदा कुर्ला पुल से पहले पामबन ब्रिज इंडिया का सबसे लंबा सी ब्रिज हुआ करता था।

By Tilak RajEdited By: Published: Mon, 22 Oct 2018 10:38 AM (IST)Updated: Mon, 22 Oct 2018 10:38 AM (IST)
'रेलवे लाइनों का विद्युतीकरण बचाएगा हर साल 13,500 करोड़ रुपये'
'रेलवे लाइनों का विद्युतीकरण बचाएगा हर साल 13,500 करोड़ रुपये'

रामेश्‍वरम, एएनआइ। अगर रेलवे लाइनों का विद्युतीकरण हो जाता है, तो भारतीय रेलवे के 13,500 करोड़ रुपये हर साल बच सकते हैं। रेलवे बोर्ड के सदस्य (ट्रैक्शन) घनश्याम सिंह ने रविवार को बताया कि रेलवे लाइनों का विद्युतीकरण होने के बाद अगर ट्रैफिक का स्‍तर इतना ही रहता है, तो रेलवे के लगभग 13,500 करोड़ रुपये हर साल बचेंगे।

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सिंह पामबन रेलवे ब्रिज का निरीक्षण करने के लिए पहुंचे थे। 100 साल से भी पुराना तमिलनाडु का यह पुल रामेश्वरम से पामबन द्वीप को जोड़ता है। रेलवे इस लाइन पर विद्युतीकरण कर रही है, ताकि ये देश की अन्‍य रेलवे लाइनों से जुड़ सके। उन्‍होंने बताया कि रेलवे की कोशिश सिर्फ लाइनों का विद्युतीकरण करना नहीं है, बल्कि ऊर्जा के स्‍थानीय स्रोतों द्वारा ट्रेनों के प्रचालन की है।

उन्‍होंने बताया, 'भारत सरकार का मिशन भारतीय रेलवे की सभी ब्रॉड गेज रेलवे लाइनों का विद्युतीकरण करना है। इस दौरान पामबन द्वीप को तमिलनाडु से जोड़ने वाली लाइन का विद्युतीकरण भी शामिल है। इस अभियान का उद्देश्‍य लोगों को कम कीमत पर ग्रीन ट्रांसपोर्ट सिस्‍टम उपलब्‍ध कराना है। इसके तहत स्‍थानीय ऊर्जा के स्रोतों का उपयोग किया जाएगा। साथ ही नवीकरणीय ऊर्जा के स्रोतों जैसे, पवन सोलर और हाइड्रो पावर को भी बढ़ावा देना है।'

गौरतलब है कि तमिलनाडु का यह पुल रामेश्वरम से पामबन द्वीप को जोड़ता है। मुंबई ब्रांदा कुर्ला पुल से पहले पामबन ब्रिज इंडिया का सबसे लंबा सी ब्रिज हुआ करता था। तमिलनाडु में स्थित यह इंडिया का ऐसा पुल है जो समुद्र के ऊपर बना हुआ है तो आप अंदाजा लगा सकते हैं कि यहां से गुजरना कितना एक्साइटिंग और अलग एक्सपीरियंस होता होगा। यह नेचर और तकनीक का बेजोड़ मेल है। जो उच्च तीव्रता वाले भूंकप से भी नहीं हिल सकता। पामबन पुल को ब्रिटिश रेलवे द्वारा 1885 में शुरू किया गया था। ब्रिटिश इंजीनियरों की टीम के निर्देशन में गुजरात के कच्छ से आए कारीगरों की मदद से इसे खड़ा किया गया था और 1914 में ये बनकर पूरा हुआ था। फरवरी 2016 में इसने अफना 102 साल पूरा किया। इतना पुराना होने के बावजूद भी ये आज ज्‍यों का त्‍यों बना हुआ है।


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