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ईसाई मिशनरी नहीं एडवेंचर का दीवाना था चाउ, कानून को ताक पर रखकर पहुंचा था सेंटिनेल द्वीप

अमेरिकी नागरिक एक ईसाई मिशनरी होने के बजाय एडवेंचर स्पो‌र्ट्स का दीवाना था। लेकिन उसने अंडमान के सर्वोच्च संरक्षित द्वीप में पहुंचने के लिए भारतीय कानूनों को ताक पर रख दिया था।

By Arti YadavEdited By: Published: Fri, 23 Nov 2018 08:13 AM (IST)Updated: Fri, 23 Nov 2018 08:43 AM (IST)
ईसाई मिशनरी नहीं एडवेंचर का दीवाना था चाउ, कानून को ताक पर रखकर पहुंचा था सेंटिनेल द्वीप

नई दिल्ली, एजेंसी। केंद्रीय गृह मंत्रालय का कहना है कि अंडमान एवं निकोबार द्वीप समूह में आदिवासियों के हाथों मारा गया अमेरिकी नागरिक दरअसल एक ईसाई मिशनरी होने के बजाय एडवेंचर स्पो‌र्ट्स का दीवाना था। लेकिन उसने अंडमान के सर्वोच्च संरक्षित द्वीप में पहुंचने के लिए भारतीय कानूनों को ताक पर रख दिया था।

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केंद्रीय गृह मंत्रालय ने गुरुवार को बयान जारी करके कहा है कि अंडमान एवं निकोबार की राजधानी पोर्ट ब्लेयर से 50 किमी दूर अति संरक्षित उत्तरी सेंटिनेल द्वीप में पहुंचने के लिए 27 वर्षीय अमेरिकी नागरिक जॉन एलेन चाउ ने स्थानीय कानून तोड़ते हुए वहां जाने के संबंध में पुलिस को कोई जानकारी नहीं दी थी। उन्होंने वन विभाग और स्थानीय प्रशासन से भी सेंटिनेल द्वीप पर जाने के लिए कोई अनुमति नहीं ली थी। गृह मंत्रालय के एक वरिष्ठ अधिकारी ने बताया कि पूर्व नवपाषाण युग के सेंटिनली आदिवासी बेहद आक्रामक स्वभाव के हैं। यह सुनामी से खुद को बचाने में कामयाब रहे थे।

भारतीय संविधान में संरक्षित इन 60 हजार साल से भी पुराने आदिवासियों को किसी भी बाहरी के संपर्क में आना पसंद नहीं। वर्ष 2006 में दो मछुआरों की नाव इस 60 वर्ग किमी क्षेत्रफल में फैले द्वीप के पास डूबने पर उनके शवों को लाने के भारतीय तटरक्षक दल के हेलिकॉप्टर को भेजा गया था। लेकिन आदिवासियों के हेलिकॉप्टर पर तीरों से हमला करने के बाद उन्हें बैरंग वापस लौटना पड़ा था। 

सेंटिनेल द्वीप की जनगणना भी नहीं कर पाते अफसर 
अधिकारी ने बताया कि इस द्वीप पर वह सही तरीके से जनगणना भी नहीं कर पाते हैं। वह वहां रहने वाले लोगों का अंदाजा केवल द्वीप का हवाई सर्वेक्षण करके लगाते हैं। उत्तरी सेंटिनेल द्वीप अंडमान के उन 29 द्वीपों में से एक है, जहां जून तक विदेशियों को जाने के लिए विशेषष अनुमति लेनी पड़ती है। इसे प्रतिबंधित क्षेत्र का परमिट (रैप) कहा जाता है। हालांकि रैप को अब हटा लिया गया है। लेकिन अभी भी दो अन्य अधिनियमों के तहत वहां जाने से पहले वन विभाग और स्थानीय प्रशासन की अनुमति लेनी जरूरी है। इसका मकसद स्थानीय लोगों और वन की सुरक्षा है। यह पूछे जाने पर कि क्या इस घटना के बाद सरकार फिर से रैप को लागू करेगी, उन्होंने कहा कि फिलहाल ऐसी कोई योजना नहीं है। आगे कोई भी कदम जांच के बाद ही उठाया जाएगा। 

पुलिस पेट्रोलिंग, तटरक्षकों और नौसेना का सुरक्षा घेरा तोड़ा 
इसी तरह बुधवार देर रात अंडमान और निकोबार द्वीप समूह के पुलिस प्रमुख दीपेंद्र पाठक ने बताया कि चाउ ने वहां अवैध तरीके से पहुंचने के लिए एक इलेक्ट्रानिक इंजीनियर एलेक्जेंडर और पांच मछुआरों की मदद ली थी। इनकी मदद से वह पुलिस की पेट्रोलिंग टीम, तटरक्षकों और नौसेना के सुरक्षा घेरे को तोड़ते हुए संरक्षित द्वीप तक पहुंचा था। चाउ ने इसके लिए मछुआरों को 25 हजार रुपये दिए थे। उन्होंने बताया कि वह 14 नवंबर की रात को आठ बजे उत्तरी सेंटिनेल द्वीप के लिए रवाना हुए और देर रात वहां पहुंचे। अगले दिन चाउ क्याक का इस्तेमाल करते हुए द्वीप के किनारे तक पहुंचे। मछुआरे उन्हें वहां छोड़ने के बाद नियत समय और स्थान पर मिलने की बात तय करके वहां से चले गए। 

17 को समुद्र तट पर चाउ का शव गड़ा देखा 
17 नवंबर की सुबह वह चाउ को लेने आए तो मछुआरों ने उनके शव को समुद्र तट पर गड़ा देखा। उसके बाद मछुआरों ने वापस लौटकर एलेक्जेंडर को इसकी जानकारी दी और चाउ का लिखा 13 पन्नों की डायरी सौंप दी। एलेक्जेंडर ने चाउ की मौत की खबर उसके अमेरिकी दोस्त बॉबी पा‌र्क्स को दी। बॉबी के जरिए खबर चाउ की मां को मिली जिन्होंने अमेरिकी कंसुलेट को जानकारी दी। उसके बाद 19 नवंबर को पुलिस को अलर्ट किया गया। 

चाउ के परिजन ने आदिवासियों को माफ किया
अमेरिकी नागरिक जॉन एलन चाउ के परिजन ने उन्हें मारने वाले आदिवासियों को माफ कर दिया है। चाउ के परिजन ने इंस्टाग्राम पर एक भावनात्मक संदेश जारी करते हुए कहा कि सेंटिनली आदिवासियों के प्रति उनके मन में नफरत और गुस्सा नहीं बल्कि प्यार है। उन्होंने इस पोस्ट में कहा कि चाउ दूसरों के लिए वह भले ही ईसाई मिशनरी हो, लेकिन उनके लिए प्यारा बेटा, भाई, अंकल और मित्र था। वह एक इंटनेशनल सॉकर कोच था, एक पर्वतारोही था। जिन आदिवासियों को उसकी मौत का जिम्मेदार बताया जा रहा है, उन्हें माफ कर दिया जाना चाहिए।


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