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आधार में पता बदलने की आसान प्रक्रिया बन रही साइबर धोखाधड़ी की प्रमुख वजह : दिल्ली पुलिस

साइबर संबंधी अपराधों की जांच में जुटे पुलिस अधिकारियों का मानना है कि आधार डेटा में व्यक्तियों के पते को अपग्रेड करने की सरल प्रक्रिया साइबर धोखाधड़ी के सबसे बड़े कारणों में से एक के रूप में उभरी है।

By Achyut KumarEdited By: Achyut KumarTue, 28 Mar 2023 09:46 AM (IST)
आधार में पता बदलने की आसान प्रक्रिया बन रही साइबर धोखाधड़ी की प्रमुख वजह : दिल्ली पुलिस
आधार में पता बदलने की आसान प्रक्रिया बन रहा साइबर धोखाधड़ी का प्रमुख कारण

नई दिल्ली, पीटीआई। साइबर अपराधों की जांच में लगे पुलिस अधिकारियों का मानना है कि आधार डेटा में व्यक्तियों के पते को अपग्रेड करने की सरल प्रक्रिया साइबर धोखाधड़ी के सबसे बड़े कारणों में से एक के रूप में उभरी है।

कई तरीकों से बदला जा सकता है पता

एक आधार कार्ड धारक कई तरीकों से अपना पता भारतीय विशिष्ट पहचान प्राधिकरण (यूआईडीएआई) से बदलवा सकता है, जो आधार कार्ड जारी करता है। उनमें से एक यूआईडीएआई की वेबसाइट से पता-परिवर्तन प्रमाण पत्र डाउनलोड करना है और इसे विभिन्न सार्वजनिक प्राधिकरणों, जैसे सांसद, विधायक, नगरपालिका पार्षद, समूह 'ए' और समूह 'बी' के राजपत्रित अधिकारी द्वारा हस्ताक्षरित होने के बाद अपलोड करना है। 

फर्जी रबर स्टाम्प और जाली हस्ताक्षर का इस्तेमाल

कई हल किए गए साइबर अपराध मामलों में जांचकर्ताओं ने पाया कि जालसाजों ने आधार डेटाबेस में अपने व्यक्तिगत विवरण को अपग्रेड करने के लिए फर्जी रबर स्टाम्प और सार्वजनिक अधिकारियों के जाली हस्ताक्षर का इस्तेमाल किया। कुछ मामलों में सार्वजनिक प्राधिकरण भी व्यक्तियों की साख की पुष्टि किए बिना लापरवाही से अपनी मोहर और हस्ताक्षर लगाते हैं।

विधायक के ऑफिस बॉय ने प्रमाणपत्रों पर किए हस्ताक्षर 

एक जांचकर्ता ने बताया, "साइबर धोखाधड़ी मामले में हमने पाया कि एक विधायक ने आरोपी के पते में परिवर्तन के प्रमाण पत्र पर हस्ताक्षर किए थे, जिसके आधार पर उसने आधार डेटाबेस में अपना पता बदलवाया। आगे की जांच में हमने पाया कि विधायक ने अपने ऑफिस बॉय को ऐसे प्रमाणपत्रों पर मोहरें और अपने हस्ताक्षर लगाने के लिए अधिकृत किया था।''

एनआरआई दूल्हा बनकर ठगी

मार्च 2022 में, इंस्पेक्टर खेमेंद्र पाल सिंह के नेतृत्व में दिल्ली पुलिस के मध्य जिले के साइबर पुलिस स्टेशन की एक जांच टीम ने एक मामले का पर्दाफाश किया, जिसमें दो नाइजीरियाई नागरिकों सहित छह लोगों ने एनआईआई दूल्हा बनकर  युवतियों को ठगा था। जांच के दौरान, टीम ने पाया कि आरोपियों ने एक डॉक्टर की मदद से आधार डेटाबेस में अपना पता बदलवाया था, जिसने केवल 500 रुपये चार्ज करके पते को अपग्रेड करने के लिए उनके प्रमाणपत्रों पर हस्ताक्षर किए थे।

इस तरह होती है ठगी

दिल्ली पुलिस के इंटेलिजेंस फ्यूजन एंड स्ट्रैटेजिक ऑपरेशंस (IFSO) के डिप्टी कमिश्नर प्रशांत गौतम ने कहा, "साइबर अपराधी अपने आधार डेटाबेस में कुछ मामलों में कई बार अपना पता बदलते हैं और पीड़ितों के खातों से पैसे ट्रांसफर करने के लिए अलग-अलग बैंकों में कई खाते खुलवाते हैं।"

अधिकारी ने कहा, "चूंकि पुलिस के पास आधार डेटा तक पहुंच नहीं है, इसलिए हमें प्रत्येक मामले में आरोपी के मूल विवरण का पता लगाने के लिए दिल्ली हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाना पड़ता है, जिससे देरी होती है और हमारा काम चुनौतीपूर्ण हो जाता है।"

पता बदलने की प्रक्रिया को और अधिक सुरक्षित बनाने की जरूरत

जांचकर्ताओं का कहना है कि ऐसा लगता है कि यूआईडीएआई की वेबसाइट पर अपलोड किए गए व्यक्तियों के बदले हुए क्रेडेंशियल्स को दोबारा सत्यापित करने का कोई तरीका नहीं है। वे महसूस करते हैं कि किसी ऐसे तंत्र की आवश्यकता है, जहां पते के बदलने की प्रक्रिया को और अधिक सुरक्षित बनाया जा सके और सार्वजनिक प्राधिकरणों के जाली टिकटों और हस्ताक्षरों से बचा जा सके।

गौतम ने कहा कि पते में बदलाव के अलावा, जो चिंता का एक बड़ा कारण है, साइबर ठग अपने व्यक्तिगत विवरणों में हेरफेर करने के लिए अन्य नए तरीकों का इस्तेमाल कर रहे हैं। हाल के एक मामले में, IFSO ने एक मास्टरमाइंड और दो आरोपियों को गिरफ्तार किया, जो आधार प्रणाली की भेद्यता का फायदा उठाकर बैंकों से ऋण प्राप्त करते थे।

आधार अपडेट प्रणाली में हेरफेर

पूछताछ के दौरान, आरोपियों ने दावा किया कि उन्होंने आधार में विवरण अपडेट करने की प्रणाली में हेरफेर किया। बाएं हाथ की उंगलियों के निशान को दाहिने हाथ की उंगलियों के निशान से बदल दिया और आंखों में रंगीन कॉन्टैक्ट लेंस लगाकर रेटिना को पहचानने की बायोमेट्रिक प्रक्रिया को धोखा दिया।

साइबर विशेषज्ञों के एक वर्ग का मानना है कि मौजूदा समय में वित्तीय जगत में साइबर अपराध तकनीक के इस्तेमाल का बहुत ही छोटा हिस्सा है और पता बदलने की प्रक्रिया को बोझिल बनाने से लोगों को इससे होने वाले फायदे की तुलना में ज्यादा परेशानी होगी। इसके बावजूद, नीति निर्माताओं के लिए प्रक्रिया को जटिल किए बिना कमियों को दूर करना महत्वपूर्ण है।