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देश में सिर्फ 4.5 फीसद मकान ही भूकंपरोधी

गुजरात, बिहार और समूचा पूर्वोत्तर क्षेत्र भूकंप की दृष्टि से अति जोखिम भरा है। हिमालयी राज्यों में भूकंप का खतरा बरकरार है।

By Sanjeev TiwariEdited By: Published: Wed, 21 Sep 2016 04:26 AM (IST)Updated: Wed, 21 Sep 2016 05:45 AM (IST)
देश में सिर्फ 4.5 फीसद मकान ही भूकंपरोधी

नई दिल्ली[सुरेंद्र प्रसाद सिंह]। देश के सिर्फ साढ़े चार फीसद भवन ही भूकंपरोधी हैं, बाकी भूकंप की स्थिति में जोखिमपूर्ण साबित होंगे। राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण (एनडीएमए) ने मंगलवार को भूकंप जोखिम वाले क्षेत्रों का एटलस जारी कर खतरे से आगाह किया। इसके मुताबिक गुजरात, बिहार और समूचा पूर्वोत्तर क्षेत्र भूकंप की दृष्टि से अति जोखिम भरा है। हिमालयी राज्यों में भूकंप का खतरा बरकरार है।

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इनमें बनाए जाने वाले मकान भी भूकंपरोधी नहीं हैं। यह एटलस बिल्डिंग मैटीरियल टेक्नोलॉजी प्रोमोशन काउंसिल (बीएमपीटीसी) ने भारतीय सर्वेक्षण, जियोलॉजिकल सर्वे ऑफ इंडिया, मौसम विभाग और जनगणना विभाग के सहयोग से तैयार की है। बीएमपीटीसी के कार्यकारी निदेशक शैलेश अग्रवाल ने बताया कि देश में इस समय 30.4 करोड़ मकान हैं।

इनमें से 95 फीसद भूकंप के जोखिम से भरे हैं। एटलस जारी करने के बाद केंद्रीय शहरी विकास मंत्री एम. वेंकैया नायडू ने कहा कि इसकी मदद से भवनों के निर्माण में जोखिम से बचाव को प्राथमिकता मिलेगी। भूकंप के सेस्मिक जोन के हिसाब से भवनों का निर्माण करने में सहूलियत होगी। जोन के हिसाब से ही भवन निर्माण सामग्री का चयन किया जा सकता है। सामान्य ईंट-पत्थर और सीमेंट से बनाए जाने वाले मकान सेस्मिक जोन चार में सबसे खतरनाक साबित होंगे।

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जोन-4 में राजधानी दिल्ली समेत राष्ट्रीय राजधानी प्रक्षेत्र (एनसीआर), पूर्वी उत्तर प्रदेश और पश्चिमी तटीय क्षेत्र शामिल है। एनसीआर में बनाई गईं ऊंची इमारतों के भूकंपरोधी होने पर भी संदेह जताया गया है। एटलस जारी करने का उद्देश्य भविष्य में होने वाले निर्माण की कार्ययोजना और उसमें प्रयुक्त होने वाली सामग्री आदि के जरिये नुकसान को कम करना है। जगह विशेष पर कैसी सामग्री का उपयोग होगा, इसका इसमें जिक्र है।

लिहाजा, इसका फायदा वास्तुकार और भवन निर्माताओं के साथ ही योजना बनाने वाली सरकारी एजेंसियों को भी होगा। पहली बार बनाए गए इस तरह के एटलस में राज्यों के साथ जिलों और तहसीलों को भी शामिल किया गया है। इसमें आवासीय और जनगणना के ब्योरे के साथ-साथ रेल लाइनों, राजमार्गों, जलाशयों और होने वाले भूगर्भीय बदलावों का भी विस्तार से जिक्र है।

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