Move to Jagran APP

अर्थ आवर एक प्रभावशाली प्रयास, जो कहता है बदलते पर्यावरण की कहानी: शांतनु मोइत्रा

किसी भी बड़े काम की शुरुआत छोटे स्‍तर से ही होती है। अर्थ आवर भी एक छोटा-सा प्रयास हमारे पर्यावरण को बचाने के लिए है जिसका बड़ा प्रभाव हमें भविष्‍य में जरूर नजर आएगा। ऐसा कहना है प्रसिद्ध संगीतकार और डब्लूडब्लूएफ इंडिया के होप एंड हॉर्मनी एंबेसडर शांतनु मोइत्रा का।

By TilakrajEdited By: Published: Tue, 22 Mar 2022 02:37 PM (IST)Updated: Tue, 22 Mar 2022 02:37 PM (IST)
अर्थ ऑवर एक बेहद प्रभावशाली प्रतीक बन गया

नई दिल्ली, शुभाशीष दत्ता। ग्लोबल वॉर्मिंग की समस्या पूरी दुनिया के लिए एक बड़ी चुनौती बनती जा रही है। धरती का बढ़ता तापमान सभी के लिए एक चिंता का विषय बना हुआ है। इस बारे में बात करते हुए प्रसिद्ध संगीतकार और डब्लूडब्लूएफ इंडिया के होप एंड हॉर्मनी एंबेसडर शांतनु मोइत्रा ने कहा कि ग्लोबल वार्मिंग किसी एक व्यक्ति या देश की समस्या नहीं है। ये पूरी दुनिया के लिए चिंता का विषय है। इसको ध्यान में रखते हुए कई प्रयास किए जाने की जरूरत है। उन्होंने कहा कि अर्थ ऑवर के तौर पर हर साल 26 मार्च को सिर्फ कुछ समय के लिए पूरी दुनिया में रौशनी बंद कर दी जाती है। ये एक छोटा-सा प्रयास धरती को बचाने की हमारी चिंता का एक बड़ा प्रतीक है।

loksabha election banner

मोइत्रा ने कहा कि धरती का बढ़ता तापमान सिर्फ मेरी या आपकी समस्या नहीं है। ये यहां रहने वाले सभी लोगों की समस्या है। ऐसे में आम लोगों को ग्लोबल वार्मिंग की समस्या और इसके खतरों के प्रति जागरूक करने के लिए लगातार अलार्म बजाने की जरूरत है। इसी कड़ी में अर्थ ऑवर एक बेहद प्रभावशाली प्रतीक बन गया है।'

अपने सम्मोहक संगीत के लिए जाने जाने वाले शांतनु मोइत्रा कहते हैं कि मनुष्य प्रतीकों को समझता है, चाहे वह महात्मा गांधी का चरखा हो या सचिन तेंदुलकर की टोपी। वे सभी कहानियां सुनाते हैं। वह कहते हैं, "मुझे लगता है कि अर्थ आवर एक कहानी कहता है। पूरी दुनिया में एक साथ ऊर्जा को बचाने का प्रयास, कई लोग तर्क दे सकते हैं कि इसका क्या मतलब है। लेकिन हम इस भूल नहीं सकते कि प्रतीक स्वरूप उठाया गया एक छोटा कदम एक बड़ा अभियान बन सकता है। जिस तरह से स्कूलों में बच्चों को बताया गया कि पटाखों से प्रदूषण होता है और बच्चों ने अपने माता-पिता को पटाखे न खरीदने के लिए कहा और पटाखों से होने वाले प्रदूषण में कमी आई।''

वह आगे कहते हैं, ''बच्चों के लिए अर्थ आवर जैसे प्रतीक बेहद महत्वपूर्ण हो जाते हैं, जहां उन्हें एहसास होता है कि हम अपनी धरती को बचाने के लिए ऐसा कर रहे हैं। घर पर एक घंटे के लिए हम एक मोमबत्ती के साथ बैठे हैं क्योंकि हम संकट में हैं। यह संदेश वैश्विक प्रतीक के रूप में काफी अहम है। अर्थ ऑवर अभियान भारत में, पड़ोसी देशों या अमेरिका में क्या हो रहा है, इसके बारे में नहीं है। अगर कुछ भी इस दुनिया को एकजुट कर सकता है, तो यह वैश्विक पर्यावरण संकट है। इसी लिए अर्थ ऑवर अभियान बेहद अहम हो जाता है।''

'विकास जरूरी है, लेकिन सतत विकास उससे भी ज्यादा जरूरी है'

यह पूछे जाने पर कि क्या आर्थिक विकास स्थिरता के साथ असंगत है, इस पर शांतनु मोइत्रा ने असहमति व्यक्त की। वो कहते हैं "मुझे नहीं लगता कि इंसान के लिए कुछ भी असंभव हैं। इंसान चंद्रमा पर पहुंच चुका है। हम समुद्र के सबसे गहरे हिस्से में पहुंच चुके हैं। हमारे चारों ओर अविश्वसनीय काम हो रहे है। विकास महत्वपूर्ण है, लेकिन जिम्मेदार के साथ किया जा रहा विकास ज्यादा महत्वपूर्ण है। उन्होंने कहा कि हमें इस बात पर सोचना होगा कि सतत विकास को हमारे जीवन का हिस्सा बनाने के लिए प्रौद्योगिकी पर काम किया जा सकता है।

'जलवायु परिवर्तन पर बातचीत बाजार की ताकतों पर नहीं छोड़ी जानी चाहिए'

शांतनु मोइत्रा कहते हैं कि COVID-19 महामारी लोगों के जीवन में एक ठहराव की भावना लेकर आई, जिसके कारण लोगों ने देखा और महसूस किया कि उनके आसपास क्या हो रहा है। "संगीत उद्योग में मेरे कई सहयोगियों ने पहली बार गली के कुत्तों को खाना खिलाने जैसे छोटे काम किए हैं। लॉकडाउन में उनके पास उसके बारे में सोचने का समय था। उन्होंने उस कुत्ते को दो दिनों तक इधर-उधर घूमते देखा होगा और तीसरे दिन उन्हें लगा होगा कि उसे खाने की जरूरत है। यह विराम, जिसने वास्तव में उन्हें पहली बार आसपास क्या हो रहा है, यह नोटिस करने में सक्षम बनाया। शायद कुत्ता पहले भी आया करता था, लेकिन किसी ने उस पर ध्यान नहीं दिया होगा। "मैं बस उम्मीद करता हूं कि यह इस तरह के मुद्दों पर लगातार काम होना चाहिए। वहीं इंटरनेट पर की जाने वाले बातचीत में कम से कम 5 फीसदी बातचीत इस तरह के मुद्दों पर होनी चाहिए। इसे बाजार की ताकतों पर नहीं छोड़ा जाना चाहिए। ऐसा नहीं होना चाहिए हम इस तरह के काम सिर्फ इसलिए करें कि लोग इसके बारे में बात कर रहे हैं।

दुनिया भर के लोगों को इस बात को समझना होगा कि ग्लोबल वॉर्मिंग की समस्या सिर्फ मेरे और मैं के बारे में नहीं है। हम एक-दूसरे पर आश्रित हैं। आप अपने घर में आने वाले पानी को लेकर आज गैर-जिम्मेदार हो सकते हैं, लेकिन आपको सोचना होगा कि कल अगर पानी आना बंद हो जाता है तो क्या होगा? आप कहीं जाकर पानी मांग भी नहीं पाएंगे, क्योंकि किसी के पास पानी नहीं होगा। मोइत्रा कहते हैं कि मुझे लगता है कि यह एहसास इसे और भी महत्वपूर्ण बना देता है कि हम एक समुदाय के रूप में रहते हैं, हम एक समुदाय के रूप में सोचते हैं।


Jagran.com अब whatsapp चैनल पर भी उपलब्ध है। आज ही फॉलो करें और पाएं महत्वपूर्ण खबरेंWhatsApp चैनल से जुड़ें
This website uses cookies or similar technologies to enhance your browsing experience and provide personalized recommendations. By continuing to use our website, you agree to our Privacy Policy and Cookie Policy.